बिहार विधान परिषद् के 75 में से 24 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं. चुनाव को लेकर तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां इस चुनाव के लिए पूरे जोश से प्लानिंग कर रही हैं. चुकी जुलाई 2021 को 19 विधान पार्षद रिटायर हुए. इसके बाद तीन विधान पार्षद चुनाव लड़कर विधायक हो गए. दो विधान पार्षदों का निधन हो गया. इस वजह से इन 24 सीटों पर चुनाव होने हैं. कुछ पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भी कर दी है. राजद, जदयू, बीजेपी और कांग्रेस समेत तमाम दलों के दावेदार अपनी दावेदारी की ताल ठोकने लगे हैं. हालांकि अभी तक चुनाव के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने अधिसूचना जारी नहीं की है.
जानते हैं बिहार विधान परिषद् के बारे में
गठन: बिहार के बंगाल से अलग होने के बाद 1912 में एक अलग प्रांत भारत के मानचित्र पर उदित हुआ. उस वक्त शासन लेफ्टिनेंट गवर्नर के हाथों होती थी तो उन्हे सलाह देने के लिए इण्डियन कौंसिल ऐक्ट, 1861 और 1909 में संशोधन कर गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट,1912 द्वारा बिहार विधान परिषद् का गठन किया गया. गठन के समय परिषद् में 3 पदेन सदस्य, 21 निर्वाचित सदस्य एवं 19 मनोनीत सदस्य रखे गए.
बिहार विधान परिषद् का योगदान: गठन के बाद से बिहार विधान परिषद् जनता की समस्याओं को दूर करने संबंधी अपने मूलभूत कर्त्तव्यों के प्रति सचेष्ट रही. परिषद् में 1913 में बच्चों की शिक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण वाद-विवाद हुआ था. महात्मा गांधी द्वारा चम्पारण में किए गए प्रथम अहिंसक सत्याग्रह के बाद तिनकठिया व्यवस्था से रैयतों को मुक्ति दिलाने के लिए चम्पारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918 बिहार विधान परिषद् में पारित हुआ. 1921 में तिब्बी और आयुर्वेदिक दवाखाना खोलने संबंधी प्रस्ताव भी यहां ही पारित हुआ था.

पटना में गंगा नदी पर पुल बनाए जाने का प्रस्ताव भी बिहार विधान परिषद् में लाया गया था. इसी पुल हो हम महात्मा गांधी सेतु के नाम से जानते हैं. 22 नवम्बर, 1921 को बिहार विधान परिषद् में महिलाओं को मताधिकार दिए जाने संबंधी विधेयक पारित हुआ जो बिहार के गौरवशाली लोकतांत्रिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण बिन्दु है.
सदस्यों की संख्या: बिहार विधान परिषद् में समय-समय पर सदस्यों की संख्या में वृद्धि और कमी की गई है. 26 जनवरी, 1950 को लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद-171 में वर्णित उपबन्धों के अनुसार विधान परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या 72 निर्धारित की गई. जिसे विधान परिषद् अधिनियम, 1957 द्वारा 1958 में 72 से बढ़ाकर 96 कर दिया गया.
कुछ समय बाद बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा बिहार के 18 जिलों तथा 4 प्रमंडलों को मिलाकर 15 नवम्बर, 2000 ई. को बिहार से अलग कर झारखंड राज्य की स्थापना की गई. झारखंड के अस्तित्व में आने के बाद बिहार विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 96 से घटकर 75 हो गई. वर्तमान में बिहार विधान परिषद् में 27 सदस्य बिहार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से, 6 शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, 6 स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से, 24 स्थानीय प्राधिकार से जबकि 12 मनोनीत सदस्य हैं.

चुनाव की प्रक्रिया: परिषद के लगभग एक तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से चुने जाते हैं जो इसके सदस्य नहीं हैं. एक तिहाई निर्वाचिका द्वारा, जिसमें नगरपालिकाओं के सदस्य, जिला बोर्डों और राज्य में अन्य प्राधिकरणों के सदस्यों सम्मलित हैं, द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्यों का चुनाव निर्वाचिका द्वारा ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जिन्होंने कम से कम तीन वर्षों तक राज्य के भीतर शैक्षिक संस्थाओं में अध्यपन में लगे रहे हों. इसके अलावे 1/12 सदस्यों का चुनाव पंजीकृत स्नातकों द्वारा किया जाता है जो तीन वर्ष से अधिक समय पहले पढ़ाई समाप्त कर लिए हैं. शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहयोग आन्दोलन और सामाजिक सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाते हैं.
इसे आसान भाषा में समझे तो विधान परिषद् सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुने जाते हैं. यानी किसी भी प्रत्याशी का चुनाव सीधे मतदाता नहीं करते बल्कि मतदाता उन लोगों का चुनाव करते हैं जो प्रत्याशियों का चुनाव करेंगे. कुछ सदस्यों को राज्यपाल मनोनित करते हैं.
कार्यक्षेत्र और सुविधाएं: विधान परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल छह साल का होता है. अपने कार्यकाल के दौरान एक सदस्य अपने क्षेत्र में विकास के लिए हर साल 3 करोड़ यानी कुल 18 करोड़ खर्च कर सकता है. इसके अलावा उसे करीब 40 हजार वेतन के रूप में मिलते हैं और इस वेतन से ज्यादा उन्हें क्षेत्रीय भत्ते के रूप में हर महीने दिया जाता है. ये राशि करीब 50 हजार रुपए हैं. इन सब के अलावे एक विधान परिषद का सदस्य सालाना खर्च के लिए 3 करोड़ रुपए रेकमेंड कर सकते हैं. भत्ते और वेतन के अलावा भी इन्हे ढेरों सुविधाएं मिलती है.

सदस्य को मोबाइल के नाम पर 1 लाख रुपए तक राशि सालाना प्रदान की जाती है. जबकि गाड़ी खरीदने के लिए 5 प्रतिशत के साधारण ब्याज दर पर 15 लाख रुपए तक दिया जाता है. यात्रा के लिए रेलवे का कूपन या हवाई जहाज का टिकट जो 3 लाख के अंदर का हो, दिया जाता है. आखिर इन सारी सुख सुविधाओं के सामने कोई क्यों ना एक एमएलसी बनना चाहे.
एक एमएलसी बनने की योग्यताएं: किसी भी व्यक्ति को एमएलसी बनने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करना होता है. अगर आप एमएलसी बनना चाहते हैं तो आपको भारत का नागरिक होना चाहिए. आपनी उम्र कम से कम 30 वर्ष की होनी चाहिए. इसके अलावा आप मानसिक रूप से असमर्थ, व दिवालिया ना हो. इन सब के अलावे आप जहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं उस क्षेत्र की मतदाता सूची में आपका नाम भी होना आवश्यक है. एक और जरूरी शर्त यह है कि ठीक उस वक्त जब आप एमएलसी के लिए चुनाव लड़ रहे हो तो आप संसद के सदस्य नहीं हो सकते. सदस्यों का कार्यकाल छह वर्षों का होता है लेकिन प्रत्येक दो साल पर एक तिहाई सदस्य हट जाते हैं. यानी, एक परिषद के सदस्यों में से एक तिहाई की सदस्यता हर दो साल में समाप्त हो जाती है.
अब आप जान चुके हैं बिहार विधान परिषद् के बारे में और आप जान चुके हैं विधान परिषद् का सदस्य कैसे बना जा सकता है. जिन 24 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं वहाँ के उम्मीदवार पूरे दमखम के साथ तैयारियों में जुटे हैं. आप भी नजरे बनाए रखें अपने विधान परिषद् पर और पार्षदों पर.