जिनके जन्मदिन पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है, उन्हें कितना जानते हैं आप!

हर साल आज ही के दिन यानी 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है. भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के उपलक्ष्य में इस दिवस को मनाया जाता है. अबुल कलाम स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे.

फिरोज बख्त

जन्म के समय उन्हें नाम मिला फिरोज बख्त, जो अपने युवा अवस्था में मोहिउद्दीन अहमद के नाम से जाने गए. बाद में उन्होंने अबुल कलाम आजाद के उपनाम को अपनाया. वो एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय में हेरात से भारत आया था और उनके पूर्वज अपने समय के लोकप्रिय विद्वान और प्रशासक थे.

मौलाना अबुल कलाम आजाद जब दो साल के थे तब उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन मक्का चले गए और 1857 के विद्रोह के बाद उनका परिवार कलकत्ता में बस गया.

शिक्षा, राजनीति और विदेश यात्राएं

मौलाना की शिक्षा घर पर ही उनके पिता और निजी शिक्षकों द्वारा पूरी हुई. 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उन्हें राजनीतिक प्रेरणा मिली. उन्होंने इराक, मिस्र, तुर्की और फ्रांस की अनेकों यात्राएं की परंतु पिता की बीमारी के कारण लंदन नहीं जा पाए और 1908 में उन्हें घर लौटना पड़ा.

अल हिलाल

जुलाई 1912 में मौलाना आजाद ने कलकत्ता में उर्दू साप्ताहिक पत्रिका “अल हिलाल” की शुरुआत की थी. यूरोप में 1914 में युद्ध छिड़ने के बाद प्रेस अधिनियम के तहत इस पत्रिका पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

अल बलाघ

इस प्रतिबंध के बाद भी मौलाना आजाद ने हार नहीं मानी और नवंबर 1915 में कलकत्ता से एक और साप्ताहिक पत्रिका “अल बलाघ” की शुरुआत की जो मार्च 1916 तक प्रकाशित होती रही जब तक की उन्हें को भारत की रक्षा विनियमों के तहत निष्काषित नहीं कर दिया गया. बॉम्बे, पंजाब, दिल्ली और संयुक्त प्रांत की सरकारों ने उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया.

निष्कासन के बाद बिहार

निष्कासन के बाद मौलाना बिहार आ गए और 1 जनवरी 1920 तक रांची में नजरबंद रहे. रिहाई के बाद उन्हें 1920 के भारतीय खिलाफत समिति के कलकत्ता सत्र का और 1924 के दिल्ली के यूनिटी कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया गया.

1928 में उन्होंने राष्ट्रवादी मुस्लिम सम्मेलन की अध्यक्षता भी की और 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भी अध्यक्ष चुने गए. 1940 में उन्हें दुबारा से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया जिसके बाद 1946 तक वो इस पद पर बने रहे. 1946 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की ओर से ब्रिटिश कैबिनेट मिशन से वार्ता का नेतृत्व भी किया.

कलकत्ता और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में एक विशिष्ट अकादमिक करियर के बाद, उन्होंने पहले वाल्टेयर में आंध्र विश्वविद्यालय में और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय में 1933-45 में लेक्चरर के रूप में योगदान दिया.

1937 में, वे किसान पार्टी के नेता के रूप में बंगाल विधान परिषद के लिए चुने गए. उन्होंने 1956 तक भारत सरकार के शैक्षिक सलाहकार के रूप में कार्य किया. उन्होंने 1957 में इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में संसद के लिए चुने गए. उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक मामलों के लिए नागरिक उड्डयन मंत्री नियुक्त किया गया.

शिक्षा मंत्री और साहित्य

स्वतंत्र भारत में मौलाना आजाद को शिक्षा मंत्री का पद मिला जिस पर वो अपने जीवन के अंतिम दिन यानी 22 फरवरी 1958 तक बने रहे. राजनीति के साथ-साथ मौलाना आजाद की सक्रियता साहित्य में भी रही. उन्होंने दर्शन, साहित्य, राजनीति और संस्कृति पर अंग्रेजी और बांग्ला में बीस से अधिक पुस्तकों का लेखन किया.

उनकी लिखी पुस्तक “इंडिया विन्स फ्रीडम” काफी लोकप्रिय है. इसके अलावा उनकी लिखी अल-बयान, तर्जुमन-उल-कुरान, तजकिरह, घुबर-ई-खातिर और चिट्ठियों का संग्रह भी प्रकाशित हो चुकी है.

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