नोटबंदी- मोदी सरकार का एक जोखिम भरा फैसला?

आज से पांच साल पहले 8 नवंबर 2016 की रात को प्रधानमंत्री मोदी ने 500-1000 के नोटों को प्रतिबंधित करते हुए नोटबंदी की घोषणा की थी. भारत सरकार के इस एक फैसले ने देश के करोड़ों लोगों को सारे काम छोड़कर एटीएम और बैंकों के सामने लाइन में खड़े रहने को मजबूर कर दिया. नोटबंदी के तीन महत्वपूर्ण मकसद थे- काला धन बरामद करना, नकली नोटों को बाज़ार से खत्म करना और भारतीय अर्थवयवस्था को कैशलेस बनाना.

अब सवाल यह उठता है कि क्या पांच साल बाद नोटबंदी के तीनों उद्देश्य पूरे हुए? अब तक के आंकड़ों के मुताबिक जवाब है – नहीं.

नोटबंदी का पहला मकसद कलाधन बरामद करना था. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के बाद प्रतिबंधित 500 और 1000 के लगभग 99% नोट बैंक में जमा हो गए. फरवरी 2019 में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया कि काला धन जब्त करने के उपायों के कारण करीब 1.3 लाख करोड़ जब्त किया गया है. जबकि सरकार ने अकेले नोटबंदी के कारण 3-4 लाख करोड़ के काले धन को जब्त करने की उम्मीद जताई थी. इस प्रकार आंकड़े बताते हैं कि काले धन का पता लगाने में नोटबंदी अप्रभावी था.

नोटबंदी का दूसरा मकसद नकली नोटों को बाज़ार से खत्म करना था. 2016 में नोटबंदी के कारण देश भर से करीब 6.32 लाख नकली नोट जब्त किए गए. जबकि नवंबर 2020 तक के आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक 100, 500 और 2000 के करीब 18.87 लाख नकली नोट जब्त किए गए जो कि 2016 की तुलना में करीब 200% ज्यादा है. ऐसे में नोटबंदी का क्या फायदा जब अब भी बाज़ार में नकली नोट आसानी से उपलब्ध हैं.

इसके अलावा नोटबंदी का एक महत्वूर्ण उद्देश्य कैशलेस अर्थव्यवस्था का निर्माण करना भी था. इसके लिए डिजिटल पेमेंट को भी काफी बढ़ावा दिया गया. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक डिजिटल पेमेंट करने वाले लोगों के प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है. वित्त वर्ष 2020 में करीब 1251.86 करोड़ का लेनदेन ऑनलाइन किया गया. इन सबके बावजूद अभी भी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा नोट से ही लेनदेन करता है.

8 अक्टूबर 2021 तक 28.30 लाख करोड़ करेंसी इन सर्कुलेशन (सीआईसी) था. सीआईसी का मतलब वो पैसा जो खरीद-बिक्री के लिए बाज़ार में उपलब्ध है. 23 अक्टूबर 2021 के आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक दीवाली के पहले सीआईसी में करीब 15,582 करोड़ की बढ़ोतरी पाई गई. जबकि नोटबंदी के कारण नवंबर 2016 में सीआईसी करीब 17.97 करोड़ मात्र थी. इसका मतलब भारत के कैशलेस अर्थव्यवस्था का सपना पूरे होने से अभी काफी दूर है.

सार यह है कि आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के तीनों में से किसी भी उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सका है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला अब तक सफल होते हुए नहीं दिख रहा है. इसके असर से उभरने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी समय लगेगा.

One thought on “नोटबंदी- मोदी सरकार का एक जोखिम भरा फैसला?

  1. Demonetization happened on 8th November that year because Modiji didn’t want to attend Advaniji’s birthday & couldn’t find an excuse. This would still make more sense than trying to get black money back 😭😭😭

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