प्रतीत होता है कि कलियुग का अंत आ गया है। हालाँकि इस कंप्यूटर युग में कथित राम-राज की स्थापना के साथ ही आशंका तो थी कि चरम अवस्था को प्राप्त कर लेने के पश्चात बहुचर्चित विकास एक न एक दिन अपनी मूलगामी यात्रा भी प्रारंभ कर देगा लेकिन यह इतनी शीघ्र घटित हो गया, यह चौकाने वाला है। अब जैसे भी हो लेकिन धरती अपने धर्म के साथ सतयुग में प्रवेश कर के रहेगी। न समूची धरती तो कम से कम भारत तो अवश्य। यदि सम्पूर्ण भारत का संभव नहीं हुआ तो उत्तर प्रदेश को तो इस युग परिवर्तन से कोई बचा ही नहीं सकता।
शुरुआत कानपुर से हुई है, जहाँ नगर निगम ने डीजल की बढती कीमत और पैसे की कमी के कारण यह निर्णय लिया है कि अब बैलगाड़ी से कूड़ा उठाया जाएगा। यह बहुअर्थी निर्णय है और कई प्रश्न भी खड़े करता है। जैसे; लखीमपुर में किसानों को कुचलने वाली मंत्रीपुत्र की मोटर गाड़ी पर डीजल-पेट्रोल की बढती कीमत का असर क्यों नही हुआ? उनके गोदामों में इतना पैसा कहाँ से आता है कि जनता से उगाही कर बनाई गई सड़क को वे अपने बाप की खरीदी समझने लगते हैं ? इतना जघन्य अपराध कर वह इतने दिनों तक अंतर्ध्यान रहा और उत्तर प्रदेश की पुलिस पालथी मार उसका आह्वान करती रही, क्या उत्तर प्रदेश पुलिस के पास भी अपनी गाड़ियों में तेल भरवाने लायक पैसा नहीं है या उनके रीढ़ में कोई बीमारी है? जिनके ऊपर इन बीमारियों का उपचार करने का दायित्व है, कहीं वे और बड़ी बीमारियों के शिकार तो नहीं है?
इस समय देश में इन सब प्रश्नों से बड़ा एक प्रश्न यह है कि हिंदू सोया क्यों है। उसे जगाने का प्रयास होते रहना अति आवश्यक है। लखीमपुर जैसी घटनाएँ इस जागने-जगाने के प्रयास में बाधा उत्पन्न करती हैं। कानपुर नगर निगम द्वारा मोटर गाड़ी का प्रयोग बंद करना लखीमपुर में मोटर गाड़ी के दुरूपयोग के विरोध का गाँधीवादी तरीका भी हो सकता है। हालाँकि यह सरकार गाँधी की तस्वीर पर माला अवश्य चढ़ाती है लेकिन गाँधी के आदर्शों को नहीं मानती, फिर भी यह अच्छा है कि अन्य समकालीन आंदोलनों और विरोधियों के प्रति गोडसे जैसा व्यवहार करने वाली सरकार के शासनकाल में गाँधीवाद अंकुराया तो!
इस युगान्तकारी निर्णय के पीछे एक कारण और हो सकता है। जनता को चींटी समझने वाले छोटे नेता अपने से बड़े नेता के सामने अत्यंत विनीत होकर निहुरे होते है और उन्हें प्रसन्न करने के अनेक धतकर्म भी करने से नहीं कतराते। प्रदेश के मुखिया आदित्यनाथ योगी भले ही विधर्मी स्त्रियों को कब्र से निकाल कर बलात्कार करने की मंशा रखने वालों के साथ उठते-बैठते हों लेकिन उनका पशु प्रेम अद्भुत है। महापौर-कानपुर नगर निगम के इस निर्णय से एक ओर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी अत्यंत प्रसन्न होंगे, वहीँ दूसरी ओर भाजपा के कार्यकाल में घास-फूस की तरह उग आए गौशालाओं के लिए अतिरिक्त खाद-पानी भी मिलेगा। गौशालाएं केवल अनुदान ले कर पचा जाने तक सीमित न रहकर संभवतः नगर पालिका को जीवित बैल भी उपलब्ध करा सकेंगी और जो गोवंश पहले सड़कों पर या कसाईखाने में मरते थे, उनके गौशालाओं में मारे जाने की घटनाओं में कमी आएगी।
बैल बहुत ही कर्मठ पशु है। समाज में ऐसे कुछ मनुष्य भी है, जिन्हें बैल की उपमा दी जा सकती है, वैसे ही कर्मठ और उतने ही निरीह। दुनिया मुट्ठी में आ जाने के बाद तो हर गली में कूड़े का बोझ उठाए ऐसे बैल दिख जाते हैं, जिनकी स्थिति और अवस्था पर दया ही आती है कि जो खेत जोत देने की शक्ति से भरे थे, आज कूड़ा ढो रहे हैं। अस्तु…, ध्यातव्य यह है कि यदि इसी रेखा में मानव जाति और चेतना का व्युत्क्रमिक विकास होता रहा तो वह दिन भी आएगा, जब जनता पत्ते पहनेगी, पत्ते खाएगी और पत्ते ही ओढ़ेगी-बिछाएगी। लेकिन पूंजीपतियों के चरणों में समूचा जंगल चढ़ा देने वाली जो सरकारें वृक्षों के असल बेटों की हत्याएँ कराती हैं, वे भला पत्ता-युग में कब जाना चाहेंगी! उस समय जब राज्य की अवधारणा ही नहीं थी तो राजा-राजनेताओं की आवश्यकता भी नहीं होगी। सरकार को चाहिए कि वह भाँग खाकर विकास न करे। चेत जाए और विकास के इस दिव्य रथ को पत्ता-युग में न लेजाकर वास-अधिवास के समय में ही रोक दे जहाँ ईश्वर भी होता हैं और राजा भी। बैल तो होंगे ही।
आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने नारा दिया था कि “वेदों की और लौटो”। आगे, आर्यसमाजियों ने आर्यसमाज मंदिर में शाखा लगवाकर यह संकेत दे दिया कि उनका गंतव्य क्या होने वाला है। उत्तर प्रदेश में आर्यसमाजियों की जनसंख्या और प्रदेश के आगामी चुनाव के परिप्रेक्ष्य में इस निर्णय का उद्देश्य आर्य समाज को लुभाना भी हो सकता है कि मोटर गाड़ी से उतर बैल तक तो पहुँच ही गए हैं पाँव, अब दो चार कदम और…। इसी के साथ आर एस एस का आर्यसमाज को लुभाने का दशकों से किया जाने वाला प्रयास सफलता की एक सीढ़ी और चढ जाएगा। आर एस एस का नारा होगा कि “वेदों की ओर कूच करो” और आर्यसमाज “मंदिर वहीँ बनाएँगे” की धुन पर नाचेगा।
भाजपा की अंदरूनी सरचना में आर एस एस को प्रसन्न रखने का बड़ा राजनितिक अर्थ है। इसे घी पीना भी कह सकते हैं व् गोबर खाना भी, और यदि संतुलनवादी, श्लील और अध्यात्मिक हों तो गोबर पर घी चढ़ाना समझ लें। कुछ भी कह लेने से इष्ट और अभीष्ट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पिछले विधान सभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के रूप में आदित्यनाथ योगी के राजतिलक का रहस्य छुपा नहीं है। केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के कान में मानों पिघला शीशा उतर रहा था लेकिन दिनों तक नारा गूँजता रहा कि “राज तिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं भगवा धारी”। यह विडम्बना ही है कि लोकतंत्र की इक्कीसवीं सदी में भी “राजतिलक” होता है और जनता सोहर गाती है।
अपनी मूर्खता में आनंदित जनता राजनेताओं की सबसे बड़ी उपलब्धि है लेकिन उत्तर प्रदेश ने अपने बैलगाड़ी प्रयोग द्वारा दिल्ली दरबार को नाथ देने का जो उद्यम रचा है, वह और बड़ी उपलब्धि में बदल सकता है। विकल्पहीनता का रट्टा मारने वाली बहुसंख्य जनता को नरेन्द्र मोदी का वह विकल्प दिया जा रहा है जो भविष्य में मोदी को अडवाणी में बदल सकता है। मनोरंजन प्रिय जनता का इससे अधिक और क्या मनोरंजन होगा कि नरेन्द्र मोदी पेट्रोल-डीजल की बढती कीमतों पर देश के विकास का तर्क दें और इधर आदित्यनाथ योगी कहें कि “हम तो खरीदेंगे ही नहीं”। उधर को मोदी जी उद्घोष करें कि “शौचालय चइये कि नहीं चइये” और इधर से योगी जी शंख बजा दें कि “हम तो धेले से पोछेंगे”।
यदि दोनों एक ही जात-बिरादर के न हों तो यह एकदम देवासुर संग्राम जैसा दृश्य होता। जागे हुए हिन्दुओं की देशभक्ति इस तरह उछाल मार रही होती कि कानपुर नगर पालिका परिषद को उत्तर प्रदेश मंत्री मंडल समेत पाकिस्तान भेजने का प्रबंध कर दिया गया होता। लेकिन क्या करें ! अपने लोग हैं। आपसी टकराव की स्थिति में गाँव के बड़े-बूढ़े यह समझाते है कि “बच्चा अगर जाँघ पर हग दे तो जाँघ नहीं काटते, धो लेते हैं”। धोने के काम में लगे इस देशभक्त ब्रिगेड को भी शेष देश की तरह बड़ी-बड़ी समस्याओं से जूझना पड़ता है। उन्हें जब तक यह ज्ञात होता है कि पोंछना है तब तक वे लीप चुके होते हैं। हालाँकि इनकी समस्याओं का निदान है। राहुल को पप्पू, नेहरु को अय्यास और मोदी को शेर बताकर वे दुर्गन्ध से अंटे अपने कमरे में स्वर्ग उतार सकते हैं। बना रहे बाकी देश नर्क, उन्हें क्या…!
ये लेखक के अपने विचार है.