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आमतौर पर मीडिया संस्थान व्यावसायिक घरानों और सत्ता प्रतिष्ठानों के साथ नाभि-नाल बद्ध मिलते हैं.

आर्थिक और सामाजिक हितों के चलते वो इन संस्थानों-प्रतिष्ठानों के साथ गलबहियां करते नज़र आते हैं. जो ख़बरों को अपने मन मुताबिक बदलाव कर प्रस्तुत करते हैं. इसी प्रभाव में अब जनहित की ख़बरें तक दबाई जाने लगीं हैं.

ये मीडिया संस्थाएं ऐसी ख़बरों को महीनों छापतीं, चलातीं और दिखातीं हैं जो कि उनके आर्थिक हितों की रक्षा करता हो. मगर जिनका देश, राज्य और हाशिये के समुदाय से कोई सरोकार नहीं होता है.

कुछ बड़े वेबसाईट हैं, जहाँ ख़बरें छपने पर संसद से लेकर समाज के कुछ हिस्सों में बहस ज़रूर होती है. मगर उनमें सुदूर ग्रामीण खबरों को जगह नहीं मिल पाती है. उनका भी अपना वर्गीय सरोकार होता है.

वे महानगरीय खबरों को प्रमुख मानते हैं जहाँ पर समाज के एक खास वर्ग को तरज़ीह दी जाती है. जबकि देश के बड़े हिस्से के संघर्ष और उसकी दास्तान की सुध भी नहीं ली जाती. इनके अलावा साहित्यिक और सांस्कृतिक उठा-पटक की ख़बरें भी हैं. जिन्हें न तो अब अखबार ही छापते हैं और न टीवी की दुनिया ही कोई जगह देती है.

हालांकि, लोकप्रिय वेबसाईट कभी-कभार अपने हित के मुताबिक उन्हें जगह दे देते हैं. विस्फोटक सूचना के इस दौर में ताबड़तोड़ ख़बर देने की होड़ में हमें ज़रा ठहर कर घटना के पीछे की पूरी प्रक्रिया को बताने की प्रतिबद्धता महसूस हुई.

Trust News

ऐसे में Trust News की आवश्यकता जान पड़ी ताकि ऐसी खबरों और विचारों को जगह दी जा सके, जिन्हें अभी तक नज़रअंदाज़ किया गया था.

किसी घटना के पीछे की जटिल प्रक्रिया को सरलता से जनहित में सामने लाने और सुदूर ग्रामीण इलाकों से लेकर मुल्क की राजधानी में हो रही हलचल को शब्दशः प्रस्तुत करने की ज़िम्मेदारी को लेकर इस वेबसाइट के निर्माण की परिकल्पना रही.

इसे दोस्तों, कुछेक सहयोगियों और जनसहयोग के माध्यम से लोगों तक समाचार पहुँचाने और इस बेबसाईट को आगे ले जाने को हम कृत-संकल्प है.

Trust News इन छोड़ दी गई बहसों को आगे बढ़ाने के लिए आप सबके सामने है ताकि जो सच में हो रहा हैं आप उसे जान सकें, समझ सकें, और हम सत्ता और ताकत के बरअक्स आपकी मुकम्मल आवाज़ बन सकें.