अफ्रीका, भारत ने की विकसित देशों से जलवायु वित्त में प्रति वर्ष $1.3 ट्रिलियन की मांग

जहाँ विकसित देशों ने जलवायु वित्त पोषण के लिए प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का भी योगदान करने का वादा नहीं किया है, वहीं अफ्रीकी देशों और भारत सहित कई अन्य लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज (LMDC) ने वित्त के बढ़ते पर एक प्रवाह नया आंकड़ा रखकर दुनिया को भौंचक्का कर दिया है. आने वाले समय में, यानि वर्ष 2030 से प्रति वर्ष विकसित देशों को जलवायु वित्त में कम से कम 1.3 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करना ही पड़ेगा.

24 राष्ट्रों का एक समूह अपने आपको लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज़ (LMDCs) कहते हैं. इनमें अफ्रीका के भी देश शामिल हैं. उन्होंने सोमवार को इस मांग को वित्त प्रवाह के प्रस्ताव में रखा है.

इस निर्णय पर हामी ग्लासगो में हो रही जलवायु सम्मेलन में भरी जाएगी.

ज्ञात हो कि भारत भी LMDC समूह का हिस्सा चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, इरान, बांग्लादेश, श्रीलंका, फिलीपींस और अन्य देशों के साथ है.

अपने रखे गए प्रस्ताव में देशों इन का कहना है कि विकसित देश, जो कि जलवायु परिवर्तन से बचाव में सहायता करने के लिए बाध्य हैं, उन्हें “2030 तक प्रति वर्ष कम से कम 1.3 ट्रिलियन डॉलर संयुक्त रूप से जुटाने के लिए कहा जाना चाहिए. “

उन्होंने यह भी कहा कि इस राशि का लगभग आधा हिस्सा अनुकूलन आवश्यकताओं के लिए निर्धारित कर देना चाहिए, जिसके लिए विशेष रूप से विकासशील और सबसे कमजोर देश चिंतित होते हैं.

प्रस्ताव के अनुसार यह भी कहा गया है कि बढ़े हुए जलवायु वित्त का “महत्वपूर्ण प्रतिशत” मतलब कि 1.3 ट्रिलियन डॉलर का लगभ 100 ट्रिलियन डॉलर, अनुदान के रूप में होना चाहिए.

इन देशों का तर्क है कि पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि को रोकने की उम्मीदों को जिंदा रखने के लिए यह नई राशि जरूरी है. इनका यह भी मानना है कि अकेले अफ्रीका में ही प्रति वर्ष कम से कम 700 बिलियन डॉलर की जरूरत है.

विकासशील देशों की यह भी मांग है कि जलवायु वित्त और अन्य मौजूदा वित्तीय प्रवाहों को मिश्रित न किया जाए और जलवायू वित्त को स्पष्ट तरीके से परिभाषित किया जाए व समझाया जाए. भारत के द्वारा मंगलवार के बैठक में यह भी जोड़ा गया कि पेरिस समझौते का कहना है कि विकसित देशों द्वारा जुटाई जा रही जलवायु वित्त नई और अतिरिक्त होनी चाहिए. मतलब कि शमन और अनुकूलन के लिए भी संसाधन प्रवाह समान रूप से उपलब्ध की जानी चाहिए. भारत और LMDCs के अन्य देशों की यही उम्मीद कि उनके प्रस्ताव को “सार्थक तरीके से” माना जाएगा.

इसी बीच, अनुकूलन रकम के लिए मंगलवार को 232 मिलियन डॉलर देने का वादा किया गया, जो विकासशील देशों में अनुकूलन परियोजनाओं के पूंजी लगाने के लिए है. अगर यह अमल हो जाता है, तो यह अनुकूलन रकम में प्रवाहित होने वाली अब तक की सबसे बड़ी राशि होगी.

साथ ही मंगलवार को, विशेष रूप से लीस्ट डेवलप्ड कंट्रीज (LDCs) के लिए 413 मिलियन डॉलर के नए वित्त पोषण की घोषणा की गई, जो जलवायु प्रभावों के कारण सबसे कमजोर हो जाते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 12 दानकर्ताओं के एक समूह द्वारा वित्त पोषण की शपथ ली गई थी.

COP अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा कि यह समय शपथों को योगदानों में बदलने का भी है ताकि दुनिया में इस प्रक्रिया में विश्वास विकसित हो.

शर्मा ने कहा कि सोमवार शाम और मंगलवार सुबह सम्मेलन के कई पहलुओं पर कुछ प्रगति हुई थी और अंतिम निर्णय समझौते का पहला ड्राफ़्ट बुधवार सुबह तक आने की उम्मीद है.

उन्होंने कहा, “अब विचलन के क्षेत्रों पर राजनीतिक सहमति खोजने का समय आ गया है, और हमारे पास केवल कुछ दिन शेष हैं. हम सीओपी 26 में प्रगति कर रहे हैं लेकिन हमारे पास अभी भी अगले कुछ दिनों में चढ़ाई करने के लिए एक पहाड़ है।”

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