आलोक धन्वा को मिला ‘जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान’

बिहार विधान परिषद् के सभागार में जनकवि नागार्जुन स्मारक निधि, नई दिल्ली की ओर से आयोजित किए गए कार्यक्रम में वर्ष 2019 का “जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान” प्रख्यात कवि आलोक धन्वा को प्रदान किया गया. लेखक एवं विचारक प्रेम कुमार मणि द्वारा आलोक धन्वा को स्मारक निधि की ओर से शॉल, स्मृति चिह्न एवं प्रशस्ति पत्र के साथ पन्द्रह हजार रुपये की सम्मान राशि का चेक भेंट किया.

आफो बात दें, जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान की शुरुआत वर्ष 2017 से की गयी है. यह सम्मान 2017 में नरेश सक्सेना, 2018 में राजेश जोशी, 2019 में आलोकधन्वा और 2020 में विनोद कुमार को प्रदान किया गया. वर्ष 2021 के इस पुरस्कार के लिए कवि ज्ञानेन्द्रपति के नाम की घोषणा हुई है. ज्ञातव्य हो कि कोरोना महामारी के कारण पिछले तीन वर्षों का पुरस्कार घोषणा के बावजूद नहीं नहीं दिया जा सका था.

जनकवि नागार्जुन स्मारक निधि, नई दिल्ली के निर्णायक मण्डल के सदस्यों ने आलोकधन्वा के रचनात्मक अवदान को रेखांकित करते हुए कहा है कि ”सत्तर के दशक में हिंदी कविता की दुनिया में आलोकधन्वा नये तेवर, नई भाषा और अपनी अनूठी भंगिमा के साथ आए और स्थापित हुए. वे नागार्जुन की तरह जन आन्दोलन से निकले कवि हैं. साथ ही वे जनान्दोलन के प्रखर प्रवक्ता भी हैं.

संख्या के बदले उन्होंने सदैव कविताओं की गुणवत्ता को स्थापित करने की कोशिश की, इसीलिए उनकी कविताओं में सर्वत्र कलात्मक तराश है और उनकी कविताएँ भीड़ में भी अलग से मुट्ठी ताने खड़ी दिखती हैं. आलोकधन्वा की कविताएँ जनसंघर्ष को ताकत देती हैं, जिसकी धमक 1972 में छपी उनकी शुरुआती कविता ‘जनता का आदमी’ और ‘गोली दागो पोस्टर’ में सुनाई पड़ती है. 1998 में प्रकाशित उनका एकमात्र काव्य-संग्रह ‘दुनिया रोज बनती है’ आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय संग्रह है. ”

इस अवसर पर जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के हिंदी विभाग के अस्सिटेंट प्रोफेसर कुमार वरुण ने कहा कि आलोकधन्वा कविता गढ़ते नहीं बल्कि जीवन से कविताओं को चुनते हैं. युवा आलोचक एवं सत्राची पत्रिका के संपादक आनंद बिहारी ने कहा कि आलोकधन्वा सिर्फ विचार के कवि नहीं हैं बल्कि गहरी संवेदना के विस्तार के कवि हैं. पटना के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. विनय कुमार ने आलोकधन्वा से जुड़े संस्मरणों को साझा किया और उनके लिए लिखी अपनी कविता का पाठ भी किया.

प्रख्यात साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने आलोकधन्वा को रेणु एवं नागार्जुन की परंपरा का लेखक बताया. उन्होंने कहा कि आलोकधन्वा वैचारिक राजनीति को अपनी रचनाओं में सँवारते हैं और संवेदना के तह में जाते हैं। उनकी कविता उत्पीड़ितों के पक्ष की कविता है. इस सम्मान के लिए आलोकधन्वा ने ‘जनकवि नागार्जुन स्मारक निधि’ के प्रति आभार व्यक्त किया. उन्होंने अपने जीवन से जुड़े विविध संस्मरणों को साझा किया एवं अपनी कविताओं का काव्य-पाठ भी किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध लेखक एवं अनुवादक यादवेंद्र जी ने किया. यादवेंद्र जी ने कहा कि आलोकधन्वा उम्मीद के कवि हैं. मंच संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन ‘जनकवि नागार्जुन स्मारक निधि’ के प्रतिनिधि पीयूष राज ने किया. इस अवसर पर बिहार के कई गणमान्य कवि, लेखक, संस्कृतिकर्मी एवं बुद्धिजीवी मौजूद थे.

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