असम में पुलिस ने गोली मारी फिर अधमरे शरीर पर फोटोग्राफर उछला

असम के दरांग जिला में एक गाँव है धौलपुर. हाल के दिनों में इस गाँव से आयी एक वीडियो फुटेज ने देश-दुनिया में सुर्खियां बटोरी है. कहा जा रहा है कि बीते 23 सितंबर को पूरे दल-बल के साथ पुलिस यहाँ कथित तौर पर अवैध अतिक्रमण हटाने गई थी. स्थानीय लोगों ने पुलिस के करवाई का विरोध किया. पुलिस और अतिक्रमणकारियों के बीच हिंसा की स्थिति बन गई. पुलिस ने फायरिंग शुरू की और दो लोगों की मौत हो गई. 

इस घटना का एक वीडियो वायरल है. वीडियो में एक आदमी हाथ में लाठी लिए पुलिस की ओर दौड़ता है. पुलिस गोली चलाती है और वो आदमी वहीं गिर जाता है. इसके बाद 10-15 पुलिस उस पर टूट पड़ते हैं. पुलिस आश्वस्त होती है कि अब उस व्यक्ति को गोली लग चुकी है और वो नुकसान नहीं पहुँचा सकता. पुलिस दूर हटती है पर अचानक एक फोटोग्राफर दौड़ता हुआ उस अधमरे व्यक्ति पर बार-बार कूदता है. उसके साथ एक पुलिस वाला भी लाठियों से वार करता है. फोटोग्राफर मुक्के भी मारता है. एक पुलिस वाला उसे पकड़ कर दूर हटाता है लेकिन तब तक वो आदमी मर चुका होता है. उस आदमी का नाम मोईनुल हक़ है.

सोशल मीडिया पर असम सरकार और पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे है. क्या 30-40 बंदूकधारी पुलिस एक लाठी/डंडे वाले आदमी को जिंदा नहीं पकड़ सकती थी? 

इस मामले में एक अन्य व्यक्ति शेख़ फरीद की भी मौत हुई है. 9 पुलिसकर्मियों के घायल होने की भी सूचना है.

क्या है पूरा मामला 

असम सरकार जिले के सिपाहझार इलाके में सामुदायिक खेती कराना चाहती है. असम सरकार ने अपने बचाव में कहा है कि यहाँ के 25 हजार एकड़ जमीन पर 3000 लोगों ने अवैध रूप से कब्जा जमा लिया है. सरकार का दावा है कि पिछले कई दिनों की अवैध अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में 1000 एकड़ जमीन खाली करवाई गई है. जहाँ लगभग 800 परिवार रह रहे थे. गुरुवार को इसमें हिंसक मोड़ आ गया.

असम में बीजेपी सरकार का दूसरा कार्यकाल है. अब तक के सरकार के अवैध अतिक्रमण के नाम पर बेघर किए गए सारे परिवार बंगाली मूल के मुसलमान है.

राज्य सरकार ने अपनी आलोचना होते देख न्यायायिक जाँच की घोषणा की है. जिसकी अध्यक्षता गुवाहाटी हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड न्यायधीश करेंगे. फिलहाल, आरोपी फोटोग्राफर को गिरफ्तार कर लिया गया है.

काँग्रेस नेता राहुल गाँधी ने इस घटना के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि असम सरकार ही आग लगा रही है.

न्यूजलॉन्ड्री हिंदी ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया कि असम के सभी क्षेत्रीय अखबारों ने इस हिंसा की एकतरफा रिपोर्टिंग की है. अधिकतर अखबारों ने पुलिस के द्वारा आत्मरक्षा में गोली चलाने की बात कही.

मृतक पर उछलने वाला युवक कौन था !

हिंसा का पर्याय बन चुके उस फोटोग्राफर का नाम बिजय शंकर बनिया है. दरांग जिले में ही फ्रीलान्स फोटोग्राफी का काम करता है. असम विधानसभा चुनाव से ही जिला अधिकारी कार्यालय के संपर्क में है और उनके सभी कार्यक्रम में फोटोग्राफी एवं वीडियोग्राफी करता है. अभी तक किसी मीडिया संस्थान से जुड़े होने की खबर नहीं है.

पुलिस उसे जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग के लिए अपने साथ ले गई थी. घटना के बाद फोटोग्राफर की खूब आलोचना हो रही है. फिलहाल वो पुलिस हिरासत में है.

एसपी सुशांत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के छोटे भाई है 

विपक्षी दल स्थानीय एसपी पर सख्त कारवाई की माँग कर रहे हैं। बीबीसी से बात करते हुए काँग्रेस नेता रिपुन बोरा ने मुख्यमंत्री पर भाई होने की वजह से एसपी के बचाव करने की बात कही.

सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर खूब बहस हो रही है. लोगों ने इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताते हुए लिखा कि जब बड़ा भाई राज्य का मुख्यमंत्री हो तो गोली चलवाने में डर कैसा?

असम मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इंडिया टुडे से इस घटना की निंदा करते हुए जाँच में दोषी पाए जाने वालों पर कड़ी कारवाई करने की बात कही.

बिहार में भी घट चुकी है ऐसी ही घटना 

 देश में आतंक और हिंसा का ये चेहरा नया नहीं है. असम जैसा ही मानवाधिकार का उल्लंघन 3 जून 2011 को बिहार के अररिया, फारबिसगंज में हुआ था. एक फैक्ट्री परिसर में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प हुई. पुलिस की गोलीबारी में एक आठ महीने का बच्चा और एक महिला समेत 4 लोग मारे गए. 

यहाँ भी अधमरे शव पर कूदते हुए एक पुलिस वाले की तस्वीर सामने आई थी. जिसकी खूब आलोचना हुई.

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