काशी, मथुरा और अयोध्या में यूपी पुलिस ने किए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम. सुरक्षा में 150 पीएसी की कंपनी के साथ सीआरपीएफ की 6 कंपनी को भी सुरक्षा में उतारा गया.
आज 6 दिसंबर को बाबरी के विवादित ढांचे के विध्वंस की 29वीं बरसी बरसी है. इसे लेकर देश भर में सतर्कता बरती जा रही है और किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए कई संवेदनशील जगहों पर सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए गए हैं. इसके मद्देनजर यूपी पुलिस भी हाई अलर्ट पर है. जानकारी के अनुसार, बाबरी विध्वंस की बरसी को लेकर सुरक्षा में 150 पीएसी की कंपनी लगाई गई है जबकि सीआरपीएफ की 6 कंपनी को भी सुरक्षा में उतारा गया है. वाराणसी, मथुरा और अयोध्या में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं.
दरअसल, 6 दिसंबर को मुस्लिम समुदाय काला दिवस के तौर पर मानते हैं तो वहीं हिंदू समुदाय के लोग इसे शौर्य दिवस के तौर पर मनाते हैं. कुछ असमाजिक तत्व 6 दिसंबर को माहौल बिगाड़ने की कोशिश भी करते हैं. बीते दिनों कुछ हिंदू संगठनों ने ऐलान किया था कि वो मथुरा की शाही ईदगाह में पूजा अर्चना करेंगे. इस ऐलान के चलते पूरे मथुरा को छावनी में तब्दील कर दिया गया है. साथ ही धारा 144 लगा दी गई है और दुकानों को बंद करा दिया गया है. अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि, मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि व वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ धाम की सुरक्षा में पहले से तैनात सुरक्षाकर्मियों के अतिरिक्त सुरक्षा के लिए पीएसी व सीएपीएफ की उपलब्धता कराई गई है.
इस बावत पुलिस महानिदेशक ने बताया कि शासन के स्पष्ट निर्देश हैं कि परंपरा से हटकर किसी को भी कोई आयोजन नहीं करने दिया जाएगा. इस संबंध में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई है. प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर 150 कंपनी पीएसी और छह कंपनी सीआरपीएफ तैनात की गई हैं.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने एक ट्वीट किया था. जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘अयोध्या, काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है… मथुरा की तैयारी है.’ उनके इस ट्वीट के बाद भाजपा के विधानसभा चुनाव के दौरान हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे में अयोध्या की तरह ही मथुरा में भी सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए गए हैं.
बता दें कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया गया. उस वक्त केंद्र में पीवी नरसिंहराव की सरकार थी और राज्य में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे. इसके बाद से यह जगह दो धर्मों के बीच विवादित रहा. इस मामले में साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना था. जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया था.