आज का बनारस रेलवे स्टेशन पहले मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता था. वर्तमान सरकार द्वारा जगहों के नाम बदलने के क्रम में जुलाई 2021 में इसके नाम को भी बदल दिया गया. नाम के साथ-साथ पूरे स्टेशन परिसर के रूप को भी बदल दिया गया. लग्जरी सुविधाएं, आकर्षक रूप, साफ-सफाई जैसे तमाम बदलाव मंडुआडीह के बनारस होने के बाद जमीन पर उतरते देखे गए.
17 सितंबर 2020 को यूपी के राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने पूर्वोत्तर रेलवे के मंडुवाडीह स्टेशन का नाम बदलकर बनारस किए जाने की अनुमति दी थी. 10 महीने के बाद मंडुवाडीह स्टेशन का नाम पूरी तरह बदलकर बनारस कर दिया गया. गौरबतल है कि बनारस के नाम विशेष से उत्तर प्रदेश की एक अलग पहचान है. लोग ट्रेन से बनारस तो जाते थे मगर उत्तर प्रदेश में बनारस नाम का कोई स्टेशन ही नहीं था. लेकिन अब है. अब मंडुवाडीह स्टेशन इतिहास के पन्नों में बंद हो चुका है और बनारस रेलवे स्टेशन अपनी भव्यता के साथ अस्तित्व में है.

परिसर की दीवारें रंगीन पेंटिंग से सजी हैं. महात्मा गांधी की थ्री-डी कलाकृति और ‘आइ लव बनारस’ लोगों का ध्यान अपनी ओर खिचने में कामयाब हो रहे हैं. साफ-सफाई इतनी है मानो पूरे उत्तर प्रदेश के सफाईकर्मियों की ड्यूटी यहाँ लगा दी गई है. काशी विश्वनाथ कॉरिडर को ध्यान में रखते हुए इस स्टेशन पर विशेष ध्यान दिया जाता है.

अतीत में मंडुवाडीह स्टेशन के नाम से जाने जाने वाले इस स्टेशन पर महज तीन प्लेटफार्म हुआ करते थे लेकिन वर्तमान समय में यहां आठ प्लेटफार्म हैं. प्लेटफार्म नंबर 08 की तरफ यात्रियों के लिए एक बड़ा लाउंज बनाया गया है. रेलवे स्टेशन पर वीआईपी लाउंज के साथ-साथ खानपान के भी कई स्टॉल खोले गए हैं. अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए स्टेशन के दोनों तरफ फुटओवर ब्रिज बनाए गए हैं. एक वेटिंग हॉल भी बनाया गया है. जिसकी क्षमता 161 यात्रियों के बैठने की है. इसके अलावे 108 सीट का अपर क्लास वेटिंग हॉल भी है. जिसमें पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग वेटिंग रूम की व्यवस्था की गई है. ये तमाम सुविधाएं मंडुवाडीह के बनारस में बदलाव को दर्शाते हैं.

स्थयनीय लोगों से बातचीत के दौरान नाम बदले जाने का कारण पूछा गया. लोगों ने कारण बताया कि यह स्टेशन वाराणसी के अंदर ही आता है. लेकिन दूरदराज से आने वाले यात्रियों को इसके पिछले नाम से कुछ भ्रम हो जाता था और लोग इस स्टेशन को बनारस से कनेक्ट नहीं कर पाते थे. जिसे दूर करने के लिए इस स्टेशन का नाम बदलकर बनारस कर दिया गया. एक रिपोर्ट के अनुसार इस स्टेशन को विकसित करने के लिए पिछले 6 सालों में तकरीबन 100 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.
स्थयनीय निवासी ऋषिकेश कुमार दुबे बताते हैं कि पहले यहाँ कुछ भी नहीं हुआ करता था. 7 साल पहले यहां एक छोटा स्टेशन हुआ करता था. एक ही गेट था और लोगों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ता था. काफी गंदगी रहती थी. मगर अब यहाँ से आने-जाने में काफी सुविधा हो गई है. अब ट्रेन की संख्या भी बढ़ गई है. आसपास के लोगों के लिए यह स्टेशन अब एक वरदान बन चुकी है.

प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थित इस रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्टेशन की श्रेणी में विकसित किया गया है. जहां पर भारतीय रेलवे द्वारा यात्रियों को एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं देने की कोशिश की गई है. काशी विश्वनाथ कॉरिडर के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री इस स्टेशन का दौरा कर तारीफ कर चुके हैं.