भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी और भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिवस पर आज 18 नवंबर को पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर में इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों व नागरिक समुदाय के द्वारा जक्कनपुर स्थित बटुकेश्वर दत्त लेन में एक सभा आयोजित की गई और विधानसभा मुख्य द्वार पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया.

बटुकेश्वर दत्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे. इनका जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. छात्र जीवन में ही इनके भीतर देश प्रेम की भावना जगी. अपनी स्नातक स्तरीय शिक्षा पीपीएन कॉलेज कानपुर में सम्पन्न करने के बाद 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई.
इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया. इसी क्रम में इन्होंने बम बनाना भी सीखा. 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया. बम धमाके में गिरफ्तारी हुए बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को 12 जून 1929 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बटुकेश्वर दत्त 1938 में रिहा हुए लेकिन गांधी के चलाए असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए. जिसके चलते उन्हे फिर जेल यात्रा करनी पड़ी.

इस तरह बटुकेश्वर दत्त का पूरा जीवन आजादी के संघर्ष में रमा रहा. बटुकेश्वर दत्त ने अपने क्रांतिकारी जीवन में उग्रवादी दल के सभी नेताओं के साथ काम किया. आगे 1945 में वे जेल से रिहा हुए और 1947 में देश को आजादी मिल गई. आजादी के बाद वे पटना में रहने लगे. बाद में उन्हें बिहार विधानसभा परिषद का सदस्य बनाया गया. 1965 के शुरूआती महीने मे बटुकेश्वर दत्त की हालत बहुत बिगड़ गई थी. कैंसर से जूझते दत्त कि मृत्यु 20 जुलाई 1965 को दिल्ली के एक अस्पताल में हुई.
बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिवस पर इस आयोजन में इतिहासकार प्रो.ओपी जायसवाल ने कहा कि “भाजपा व संघ का आजादी के आंदोलन में विश्वासघात का इतिहास रहा है. ये लोग आज इतिहास को विकृत कर रहे हैं. इसके खिलाफ एक व्यापक एकता बनाना और आजादी के 75 साल की मूल भावना को याद करना व उस संघर्ष को आगे बढ़ाना हम सबका दायित्व बनता है.”
प्रो. जायसवाल ने अगले दो सालों तक इस जन अभियान को संचालित करने का निर्णय लिया है. इस मौके पर माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि “बटुकेश्वर दत्त व सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता. अंडमान की जेल में सावरकर का इतिहास माफी मांगने का है, जबकि बटुकेश्वर दत्त अनवरत जेल में लड़ते रहे. इतिहास को हम संभालेंगे. भाजपा व संघ सत्ता के बल पर उस इतिहास को तोड़-मरोड़ देना चाहते हैं.”

इस मौके पर प्रो. जायसवाल, माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, कवि अरूण कमल, प्रो. भारती एस. कुमार, प्रो. विद्यार्थी विकास,पूर्व सांसद अली अनवर आदि वक्ताओं ने अपने विचार रखे.
कन्वेंशन ने अभिनेत्री कंगना रनौत से अविलंब पद्म श्री का पुरस्कार वापस लेने की भी मांग की.