बिहार के सीतामढ़ी में रामायण रिसर्च काउंसिल के बैनर तले 251 फीट की ऊंची मां सीता की प्रतिमा व मंदिर निर्माण के लिए 30 एकड़ जमीन का अनुबंध हो गया है। इसमें से 12 एकड़ 43 डिसमिल जमीन का निबंधन भी हो चुका है।
शेष भूमि का निबंधन शुल्क माफ कराने के लिए डीएम के माध्यम से विभाग से आग्रह किया गया है। जैसे ही निबंधन शुल्क माफी की अनुमति मिलती है, शेष जमीन की रजिस्ट्री करा ली जाएगी। यह बातें गुरुवार को बीआईए सभागार में भगवती सीता तीर्थ क्षेत्र न्यास के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के बाद कामेश्वर चौपाल ने पत्रकारों से कही।
उन्होंने कहा कि 30 एकड़ में 14 एकड़ जमीन अकेले राघोपुर बखरी के महंत ने दी है। प्रतिमा निर्माण के लिए श्रीलंका, बाली, जावा आदि देशों से भी मदद की पेशकश की गई है। जमीन रजिस्ट्री के बाद मुहूर्त देखकर निर्माण कार्य शुरू होगा। भूमि पूजन में राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने की योजना है।
आईआईटी पटना का मिलेगा सहयोग
भगवती सीता तीर्थ क्षेत्र समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सीतामढ़ी सांसद सुनील कुमार पिंटू ने कहा कि सीतामढ़ी में मां सीता की प्रतिमा स्थापित करने में आईआईटी पटना सहयोग देगा। मंदिर निर्माण में 51 शक्तिपीठों की मिट्टी व जल मंगाया जाएगा। मध्य प्रदेश के नलखेड़ा में माता बगलामुखी सिद्ध पीठ से ज्योत लाकर मां सीता को भगवती के रूप में स्थापित किया जाएगा। मंदिर निर्माण के लिए आर्किटेक्ट के चयन की प्रक्रिया चल रही है।
सांसद ने कहा कि बखंड़ी महंत सहित वहां के किसानों ने अब तक माता सीता की प्रतिमा को लेकर 24.40 डिसमिल जमीन दान में दिए है, जिनका इकरारनामा भी हो चुका है। उन्होने कहा कि जल्द ही अयोध्या धाम की तरह माता सीता की नगरी सीतामढ़ी में लाखों की संख्या में पर्यटक आएंगे और माता सीता की नगरी को देखेंगे। सांसद ने कहा कि इसको लेकर राज्य और केंद्र सरकार भी पहल कर रही है।
डिजिटल लाइब्रेरी व शोध केंद्र भी बनेगा
रामायण रिसर्च काउंसिल के अध्यक्ष चंद्रशेखर मिश्र ने कहा कि प्रतिमा के चारों ओर वृत्ताकार रूप से 108 प्रतिमाओं के माध्यम से मां सीता के जीवन दर्शन को प्रदर्शित किया जाएगा। प्रतिमाओं को नौका विहार तरीके से विकसित किया जाएगा। प्रतिमा का एक तिहाई भाग (84 फीट) में चार तल होंगे।
उन्होंने कहा कि पहले तल पर सत्संग भवन, दूसरे तल पर डिजिटल संग्रहालय, तीसरे पर योगा, हेल्थ वेलनेस सेंटर और चौथे तल पर थियेटर विकसित होंगे। मंदिर के ठीक सामने तीन एकड़ भूमि में शोध केंद्र और प्राचीन व दुर्लभ ग्रंथों पर आधारित पुस्तकालय का अध्ययन केंद्र बनेगा।
कहा जा रहा है कि अयोध्या में भगवान के मंदिर निर्माण पर जितनी लागत आ रही है, कमोबेश उतना ही खर्च इस योजना पर होगा। इस पवित्र कार्य में सीतामढ़ी के हर धर्म और हर वर्ग का उन्हें काफी सहयोग मिल रहा है।