बिहार के लिए अप्रैल से सितंबर तक के लिए केंद्र सरकार ने 11.22 लाख टन यूरिया का आवंटन किया था. 19 सितंबर तक बिहार को उसके हिस्से के 38% यूरिया की आपूर्ति नहीं हुई है.
बिहार सरकार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है, “यूरिया की किल्लत चल रही है और उसका कारण है, भारत सरकार से हमलोगों को 30% यूरिया कम मिल रही है”. कृषि मंत्री ने 1 सितंबर को केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसूख मांडविया से मुलाकात कर, उन्हें स्थिति से अवगत भी कराया था.
31 अगस्त 2021 तक बिहार को 5.90 लाख टन यूरिया की आपूर्ति हुई थी. पिछले साल इस अवधि में बिहार को 8.12 लाख टन यूरिया मिला था.
पिछले साल की तुलना में बिहार को अगस्त तक के लिए 2.22 लाख टन कम यूरिया मिला है. सितंबर में भी अभी तक बिहार को उसके आवंटन का 4.25 लाख टन यूरिया की आपूर्ति नहीं हुई है.
16 से अधिक जिलों में हाहाकार
बिहार में 16 से अधिक जिलों से यूरिया के किल्लत की खबरें आ रहीं हैं.
नवादा एवं नालंदा में यूरिया के लिए सड़क जाम एवं मार-पीट भी हुई है. गया, बेगूसराय, अरवल, बाढ़, नालंदा, औरंगाबाद समेत कई अन्य जिलों में भी किसान रात भर लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
बारी आने तक स्टॉक खत्म हो जा रहा है या जरूरत से कम यूरिया की आपूर्ति हो रही है.
कई जगहों पर भीड़ और हंगामा देख कर वितरक दुकान छोड़ कर भाग खड़े हुए. औरंगाबाद से यूरिया के लिए किसानों के झारखंड जाने की बात भी सामने आ रही है.
धान की फसल में यूरिया देने का ये उपयुक्त समय है। इस अवधि में यूरिया नहीं देने पर धान की फसल खराब हो जाएगी. धान प्रमुख खरीफ फसल है जिस पर किसानों का जीवन-निर्वाह टीका हुआ है.
भारत सरकार उर्वरक विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़े विरोधाभास पैदा कर रहे है.
urvarak.nic.in पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार अप्रैल से सितंबर तक बिहार मे 9.44 लाख टन यूरिया की खपत बताई गई है. इसमें 10.14 लाख टन अर्थात 0.7 लाख टन अतिरिक्त यूरिया का सप्लाइ हो चुका है. किसानों की स्थिति तो कुछ और ही कह रही है.
यूरिया
यूरिया में 46% नाइट्रोजन होता है। सभी तरह के फसलों में नाइट्रोजन साइकिल बनाये रखने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण खाद है.
नियंत्रण आदेश के प्रावधान के तहत केंद्र सरकार इसके मूल्यों को निर्धारित करती है.
केंद्र सरकार ही अलग-अलग मौसम के आधार पर अलग-अलग राज्यों को यूरिया का आवंटन भी करती है.
मूल्य-वृद्धि और कालाबाजारी से किसान पहले ही पस्त है. उत्तर बिहार के जिले बाढ़ की दोहरी मार झेल रहे है. ऐसे में धान की फसल ही उनके पूरे वर्ष के लिए एकमात्र उम्मीद है. वैशाली-मुजफ्फरपुर क्षेत्र में तो बाढ़ ने धान की फसल को भी लगभग नष्ट ही कर दिया है.
ऐसे में केंद्र से आवंटित मात्रा में यूरिया न मिलने से किसानों की समस्या बढ़ती जा रही है.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जब नीतीश सरकार को इस मुद्दे पर घेरा तो कृषि मंत्री ने बचाव करते हुए कहा कि आयात कम होने के कारण बिहार को यूरिया की आपूर्ति कम हुई है. अभी तक मुख्यमंत्री की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
अमूमन हर साल ही खरीफ और रबी मौसम में खाद देने के उपयुक्त समय पर पूरे बिहार में यही स्थिति बन जाती है.
किसान मालगुजारी रसीद और आधार कार्ड दिखा कर यूरिया प्राप्त करते हैं. परंतु किल्लत के समय उनकी आवश्यकता से कम एक या दो बोरी यूरिया ही दिया जाता है.
कृषि विभाग, बिहार के मुताबिक 45 किलो यूरिया के लिए 266 रुपए की कीमत तय है.
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