जहाँ न्यायिक अधिकारी ही असुरक्षित और न्याय की आस में बैठे हैं, तो उस राज्य में आम आदमी की क्या स्थिति होगी ये सोचने वाली बात है.
यह बात तो बहुत ही साधारण है कि वकील के बगैर किसी भी न्यायालय का काम नहीं चल सकता, चाहे वह जिला अदालत हो या सुप्रीम कोर्ट ही क्यों ना हो. अब अदालत में अगर वकील होंगे तो वकीलों की बुनियादी सुविधाओं का होना भी लाज़मी है. बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ वकीलों की सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है. लेकिन बिहार सरकार को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके राज्य के अधिवक्तागण सुरक्षित रहें या उनकी हत्या हो जाए. अदालत परिसर में उनके लिए पुस्तकालय, शौचालय या बैठने की व्यवस्था हो या उनके चैम्बर में घुस कर उन पर बंदूक तान दी जाए. बिहार सरकार को कोई फरक नहीं पड़ता कि एक वकील के हत्या के 10 दिन बाद भी अपराधियों की पहचान तक नहीं की जा सकी है और एक वकील के हत्या का मामला सुलझाने में चार वर्ष का समय लग जाता है.
बुनियादी सुविधाएं के नाम पर केवल “शून्य”
सोमवार को बिहार स्टेट बार काउंसिल के चेयरमैन रमाकांत शर्मा की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने सोमवार को एक आदेश दिया. चूँकि बिहार राज्य की अदालतों में वकीलों के लिए बुनियादी सुविधाएं के नाम पर जो है वो शून्य है. ना तो वकीलों के बैठने की जगह है और ना ही शौचालय की व्यवस्था. इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने सख्त रूख अपनाते हुए राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. रमाकांत शर्मा ने राज्य की अदालतों में बुनियादी सुविधाओं के दयनीय स्थिति में होने को लेकर पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

राज्य के वकालतखानों में ना तो वकीलों के बैठने की जगह है और ना ही शौचालय की उचित व्यवस्था. इस वजह से महिला वकीलों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. पुस्तकालय और स्वास्थ्य संबंधी आपात व्यवस्था को तो छोड़िए. राज्य में वकीलों के लिए भवन निर्माण तक नहीं कराया जा रहा है. बार-बार गुहार लगाने के बावजूद जब वकीलों की समस्याओं का समाधान नहीं निकला, किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई तो अंततः मजबूर होकर वकीलों को हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा.
हक के बदले आश्वासन के सहारे वकील
सूबे के तमाम निचली अदालतों में संसाधन उपलब्ध कराने के लिए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने का आदेश तो दिया है. लेकिन यहाँ बिजली, पानी, शौचालय आदि की व्यवस्था सही नहीं होने के साथ-साथ बिहार स्टेट बार काउंसिल में अधिवक्ताओं का मेडिकल क्लेम, टीए और डीए, पेंशन योजना, डेथ क्लेम की राशि एवं अधिवक्ता वेलफेयर फंड के पैसों के भुगतान आदि की भी समस्याएं हैं.
दूसरी तरफ कोरोना काल में फिजिकल कोर्ट लगातार 18 महीनों तक बंद रहे. इस वजह से वकीलों की आजीविका पर भी बुरा असर पड़ा. अदालत से जुड़े वकीलों को किसी भी माध्यम से संतोषजनक सहायता नहीं मिली. मगर हाँ, बार काउंसिल की तरफ से आश्वासन जरूर मिला. मगर इस बात से कैसे भागा जा सकता है कि जीवन जीने के लिए आश्वासन नहीं रोटी की आवश्यकता होती है. परिणामतः लगभग 20 से 30 प्रतिशत वकीलों ने प्रैक्टिस छोड़ दी. देश की दिशा बदलने के लिए हुए महत्वपूर्ण आंदोलनों और समाज को न्याय दिलाने के लिए एक वकील हमेश संघर्षरत रहा है. वही एक वकील कोरानाकाल में आर्थिक संकट झेल सरकार व बार काउंसिल से आर्थिक सहायता की मांगने को मजबूर भी है.
जिला अदालत से लेकर हाईकोर्ट के वकील तक त्रस्त
अब राज्य के वकील तो अपनी समस्याओं को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं. इस मामले में अगली सुनवाई पाँच हफ्ते बाद की जाएगी. मगर स्वयं हाईकोर्ट के वकील ही समस्याओं से घिरे हुए हैं. पटना हाईकोर्ट वकीलों को अपने अनुभव प्रमाणपत्र के लिए जूते घिसने पड़ रहे हैं. पटना हाईकोर्ट में विधि पदाधिकारी की नियुक्ति के लिए आवेदन देने वाले वकीलों को वकालत का अनुभव प्राणपत्र प्राप्त करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अनुभव प्रमाणपत्र किस रजिस्टार के किस दफ्तर से मिलेगा इस संबंध में ना तो कोई स्पष्ट जानकारी दी गई और ना ही कोई निश्चित फॉर्म. वकीलों द्वारा इस मामलें में भी शिकायत की गई. मगर राज्य के बाकी समस्याओं के साथ इसका भी कोई समाधान मिलता नजर नहीं आ रहा.
वकीलगण कृपया ध्यान दें, अपनी जान की सुरक्षा स्वयं करें!
वहीं राज्य में वकीलों की सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिन्दु बन चुकी है. आए दिनों वकीलों पर जानलेवा हमले के मामले सामने आ रहे हैं. पुलिस प्रशासन वकीलों की सुरक्षा को भगवान के हाथों सौंप कर खुद शराब की तलाश में व्यस्त है. 10 दिनों पहले गोपालगंज में अपराधियों ने दिनदहाड़े हाईवे पर गोली मारकर एक वकील की हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड के बाद जिले की पुलिस ने यह दावा किया था कि 48 घंटे के अंदर अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा लेकिन पुलिस के हाथ अब तक खाली हैं. गोपालगंज हो या समस्तीपुर, मधुबनी हो या राजधानी शहर पटना, वकीलों को ना तो पुलिस द्वारा पर्याप्त सुरक्षा मिल रहा है और ना ही न्याय.
यहाँ रक्षक ही भक्षक बन गए हैं?
अपराधियों को तो छोड़िए, यहाँ रक्षक ही भक्षक का रूप धारण करने पर तुले हैं. बात बिहार पुलिस की हो रही है क्योंकि वकीलों के प्रति इनका रवैया भी चिंताजनक है. यहाँ के थानेदार किसी जज को उसी की कोर्ट में घुस कर पीट डालते हैं और उस पर पिस्तौल तक तान देते हैं. पिछले महीने, बिहार के मधुबनी जिले में झंझारपुर के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के चैम्बर में पुलिस अधिकारी ने घुसकर गाली गलौच करते हुए उन पर लात-घूंसा और थप्पड़ों की बौछार कर दी थी. ऐसे में जब बड़े अधिकारी ही पुलिसिया ज्यादती से सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी की क्या स्थिति होगी ये तो सोचने वाली बात है.
बात चाहे वकीलों के सुरक्षा की हो या उनके लिए बुनियादी सुविधाओं का होना, दोनों ही बिन्दु पर बिहार सरकार का उदासीन रवैया साफ-साफ नजर आता है. जिस राज्य में वकीलों को ही अपने परेशानियों के साथ दफ्तर-दफ्तर चक्कर काटने पड़े, अपनी सुरक्षा के लिए पल-पल चिंतित रहना पड़े, ऐसे राज्य में आम नागरिकों की समस्याएं जो जनाब बहुत मामूली हैं. दूसरों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने वाला खुद के लिए न्याय की गुहार लगाने को मजबूर है, इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात क्या हो सकती है “बिहार” के लिए.