विशेष रिपोर्ट – बिहार में सूचना आयोग बदहाल, पिछले चार वर्षों में सर्वाधिक लगभग 20 हजार मामले लंबित

बिहार के सूचना आयोग की बदहाली की कहानी बयां करने के लिए एक नया आंकड़ा सामने आया है. आयोग में इस समय करीब 20 हजार मामले लंबित हैं, जो कि पिछले चार सालों में सबसे अधिक है.

ट्रस्ट न्यूज द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से ये खुलासा हुआ है.

बिहार सूचना आयोग ने जो जानकारी मुहैया कराई है, उसके मुताबिक जून 2021 तक आयोग में 19,732 अपीलें एवं शिकायतें लंबित थीं.

इतनी बड़ी संख्या में मामलों का लंबित होना ये दर्शाता है कि आयोग कितनी धीमी गति से आरटीआई केस का निपटारा कर रहा है. नतीजन आरटीआई एक्ट का इस्तेमाल कर सूचना मांगने वालों को काफी देरी से जवाब मिल रहा है.

मालूम हो कि आरटीआई एक्ट के तहत सूचना आयोग सर्वोच्च अपीलीय निकाय है, जहां विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पर सूचना आयुक्त ये तय करते हैं कि किसी संबंधित जानकारी का खुलासा करना है या नहीं.

हालांकि राज्य के नागरिकों को इसका फायदा तभी हो सकेगा जब एक निश्चित समयसीमा के भीतर मामलों का निपटारा किया जाए. लेकिन आंकड़ों से स्पष्ट है कि नागरिकों को सूचना के लिए सालों-साल इंतजार करना पड़ रहा है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इससे पहले जुलाई 2020 तक बिहार सूचना आयोग में 18,692 मामले और मार्च 2020 तक 17,457 मामले लंबित थे. वहीं दिसंबर 2019 तक आयोग में 16,014 केस लंबित थे.

इसी तरह जुलाई 2018 तक 12,615 केस और मार्च 2017 तक 14,426 मामले लंबित थे. इनसे यह स्पष्ट होता है कि किस तरह सूचना आयोग में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

आयोग कितने मामलों को निपटा रहा है

आरटीआई एक्ट के तहत प्राप्त दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि बिहार सूचना आयोग ने अगस्त 2020 से जून 2021 यानी कि इन दस महीनों में महज 5,401 मामलों का निपटारा किया है.

इसका मतलब है कि इस दौरान इसने हर महीने औसतन सिर्फ 540 मामलों का ही निपटारा किया. यह इसके पुराने प्रदर्शनों की तुलना में काफी कम है.

इसी आयोग ने अप्रैल 2016 से मार्च 2017 (12 महीनों) के दौरान 17,681 केस का निपटारा किया था. यानी कि उस समय हर महीने औसतन 1,473 केस का फैसला किया गया था.

इससे पहले इसने अप्रैल 2015 से मार्च 2016 के बीच 14,659 मामलों का निपटारा किया था. इसके अलावा अप्रैल 2017 से मार्च 2018 के बीच आयोग ने 11,530 मामलों पर फैसला दिया था.

हालांकि इसके बाद बिहार सूचना आयोग का प्रदर्शन लगातार गिरता ही गया.

आंकड़ों के मुताबिक आयोग ने अप्रैल 2018 से जुलाई 2018 के बीच 2,696 केस, अगस्त 2018 से दिसंबर 2019 के बीच 14,087 केस, जनवरी 2020 से मार्च 2020 के बीच 2,081 केस और अप्रैल 2020 से जुलाई 2020 के बीच सिर्फ 521 मामलों का निपटारा किया.

बिहार के सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त समेत सूचना आयुक्तों के लिए कुल चार पद हैं. आयोग में मामलों के लंबित होने की एक बड़ी वजह ये है कि राज्य सरकार समय पर यहां नियुक्ति नहीं करती है.

सूचना आयोग में पद खाली होने पर किसी न किसी कार्यकर्ता को न्यायालय का रुख करना पड़ता है और जब तक कोर्ट फटकार नहीं लगाती है, तब तक सरकार नियुक्ति नहीं करती है.

राज्य सूचना आयोग से नियुक्तियों के संबंध में जानकारी मांगी गई थी, लेकिन उन्होंने ‘मनमाना दलील’ के आधार पर सूचना देने से मना कर दिया.

आयोग ने राज्य लोक सूचना पदाधिकारी संजय कुमार मिश्र ने बिहार सरकार कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग की एक अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा, ‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन सूचना के लिए लिखित अनुरोध एकमात्र विषय से संबंधित होगा. यदि कोई आवेदक एक से अधिक विषयों पर सूचना चाहता है तो वह अलग-अलग आवेदन लोक सूचना पदाधिकारी के समक्ष दे सकता है.’

मिश्र की ये दलील आरटीआई आवेदनकर्ताओं को परेशान करने का एक तरीका है. ट्रस्ट न्यूज द्वारा भेजे गए आवेदन में सूचना आयोग के ही संबंध में जानकारी मांगी गई थी, इसलिए इसे अलग-अलग विषय नहीं कहा जा सकता है.

आरटीआई एक्ट को उचित तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी संभाल रहे सूचना आयोग में ये कानून किस तरीके से लागू किया जा रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ट्रस्ट न्यूज ने तमाम जानकारियों के लिए 22 मार्च को आवेदन दायर किया था और आयोग ने छह महीने बाद 23 सितंबर को अपना जवाब भेजा.

यह आरटीआई कानून का खुला उल्लंघन है, क्योंकि इसके तहत जन सूचना अधिकारी को सिर्फ 30 दिन के भीतर जवाब भेजना होता है.

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One thought on “विशेष रिपोर्ट – बिहार में सूचना आयोग बदहाल, पिछले चार वर्षों में सर्वाधिक लगभग 20 हजार मामले लंबित

  1. तथ्यात्मक रिपोर्ट! यह रिपोर्ट बताता है कि कैसे दिन प्रतिदिन कानून के नियमों को ताख पर रख कर जनता को ठेंगा दिखाया जा रहा है। वाकाई बिहार से जुड़े ऐसे मुद्दों पर ऐसे रिपोर्ट की सख्त जरूरत थी।

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