बिहार के मधुबनी जिले में एक स्थानीय युवा पत्रकार की निर्दयता से हत्या कर दी गई है. मृतक पत्रकार मधुबनी जिले के नर्सिंग होम और अस्पतालों के खिलाफ़ भ्रष्टाचार की शिकायतें दर्ज करा रहे थे.
मृतक 22 साल के बुद्धिनाथ झा थे जो मधुबनी के बेनीपट्टी प्रखंड के ही एक न्यूज पोर्टल बीएनएन न्यूज़ बेनीपट्टी के लिए काम करते थे. वे मूल रूप से बेनीपट्टी के ही थे और पिछले दो सालों से पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे.
उनके परिजनों का आरोप है कि यह हत्या अस्पताल संचालकों द्वारा रची गई एक साजिश है. हत्या की जाँच पड़ताल करते हुए उसी इलाके के एसएचओ अरविंद कुमार का कहना है कि “सभी बिंदुओं पर उनके द्वारा जांच की जा रही है. उन्होंने लगातार छापेमारी कर कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया है और छापेमारी भी जारी है. हालांकि उनके द्वारा यह सूचना नहीं दी गई कि हिरासत में लिए गए लोग अस्पताल के हैं या नहीं.”
मामले की गहराई
मधुबनी जिले के सिविल सर्जन सुनिल कुमार झा का दावा है कि मारे गए पत्रकार, बुद्धिनाथ झा नियमित तौर पर निजी नर्सिंग होम के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराते थे. उन्होंने यह भी कहा कि उनके द्वारा शिकायत किए जाने पर बेनीपट्टी के चार नर्सिंग होम पर कुछ महीनों पहले 50-50 हज़ार का जुर्माना लगाया गया था.
बुद्धिनाथ झा के बड़े भाई ने एक बयान में यह कहा है कि “पहले बुद्धिनाथ ने एक क्लिनिक की शुरुआत की थी जिसमें बाहर के डॉक्टर स्थानीय लोगों का इलाज किया करते थे. मगर स्थानीय नर्सिंग होम संचालकों से यह बर्दाश्त नहीं होता था और उन्होंने उन्हें परेशान करके रख दिया, जिससे की उन्हें यह काम मजबूरन बंद करना पड़ा. फिर उन्होंने ठान लिया कि वो फर्ज़ी नर्सिंग होम द्वारा चलाए जा रहे धंधे और भ्रष्टाचार को खत्म करेंगे.”
बुद्धिनाथ झा बीते तीन सालों से लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के पास अपने क्षेत्र में कई नर्सिंग होम से जुड़ी शिकायतें भेज रहे थे. बिहार में 5 जून 2016 को लोक शिकायत निवारण अधिनियम लागू किया गया था. जिसका उद्देश्य 60 कार्य दिवस के अंदर आम लोगों की शिकायतों की सुनवाई करना था. इसके अलावा बुद्धिनाथ सूचना के अधिकार का भी इस्तेमाल करते थे.
बीते तीन साल से बेनीपट्टी में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी एसएन झा नियुक्त हैं. उनका कहना है कि “बीते तीन सालों में बुद्धिनाथ ने नर्सिंग होम और पैथलैब को लेकर लोक शिकायत निवारण के अंदर खूब शिकायतें की थीं. जिस पर यहां से जांच के बाद कार्रवाई की अनुशंसा भी की गई और नर्सिंग होम के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी हुई.”
उनके इस पहल के चलते फरवरी 2021 बेनीपट्टी और धकजरी के 19 जांच घर और नर्सिंग होम को बंद करने का सरकार ने आदेश जारी किया था. इसी तरह दिसंबर 2019 में भी जांच करवाई गई जिसमें में 9 नर्सिंग होम और पैथलैब को बंद करने का आदेश जारी हुआ. अगस्त 2021 में सिविल सर्जन ने 4 निजी नर्सिंग होम पर 50 हज़ार का जुर्माना भी लगाया था.
अच्छे कर्मों की बुरी सजा
बुद्धिनाथ झा निरंतर निजी नर्सिंग होम के खिलाफ लिख रहे थे और शिकायतें दर्ज करा रहे थे. उन्होंने 7 नवंबर को अपने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट अपलोड करते हुए लिखा था, ‘द गेम विल रीस्टार्ट ऑन द डेट 15.11.2011’.
बुद्धिनाथ के चचेरे भाई और न्यूज़ पोर्टल के प्रमुख बीजे विकास बताते हैं कि “इस पोस्ट के बाद बुद्धिनाथ झा 9 नवंबर को गायब हो गए और उनके द्वारा इसकी शिकायत अगले दिन की गई और 11 नवंबर को रिपोर्ट दर्ज हो गई. सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक वो रात 9 बजे से 9.58 बजे तक घर की गली के आगे पड़ने वाली मेन रोड पर फोन पर बात करते दिख रहे थे. वो आख़िरी बार रात 10.10 बजे बाज़ार में दिखाई पड़े थे.
घरवालों और परिजनों ने अगले दिन बेनीपट्टी थाने में सूचना दी. पुलिस के द्वारा जब बुद्धिनाथ के मोबाइल को ट्रेस किया तो लोकेशन बेनीपट्टी थाने से पांच किलोमीटर दूर बेतौना गांव में मिली.
फिर 10 नवंबर की सुबह 9 बजे के बाद उनका फ़ोन भी बंद हो गया. स्थानीय पुलिस ने उनकी अंतिम लोकेशन पर पहुंचकर जानकारी लेने का प्रयास किया, लेकिन कुछ ठोस सबूत या गवाह नहीं मिला.
बुद्धिनाथ के लापता होने की सूचना सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दी गई तो 12 नवंबर को बुद्धिनाथ के चचेरे भाई बीजे विकास के फोन पर पड़ोस के उड़ेन नाम के गांव से एक स्थानीय व्यक्ति ने फ़ोन किया और एक अनजान शव के मिलने की सूचना दी.
बीजे विकास का कहना है कि लाश अधजली हालत में थी. लोगों ने उसकी पहचान हाथ की अंगूठी, पैर के मस्से और गले की चेन से की.
परिजनों ने लापता होने के वक्त की गई शिकायत और दर्ज कराई गई एफ़आईआर में बहुत सारे स्थानीय क्लिनिकों के संचालकों के ख़िलाफ आरोप लगाए हैं.
कब तक पत्रकारों का होगा यह हाल?
बुद्धिनाथ झा का शव संदिग्ध दशा में बरामद होने के बाद कई लोगों द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा का भी सवाल उठाया गया है.
एक पत्रकार की हत्या के बारे में जब मधुबनी के ज़िलाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनको इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
वहीं बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के दरभंगा प्रमंडल यूनिट के महासचिव शशि मोहन का कहना है कि अंदरूनी इलाकों में काम करने वाले पत्रकार असुरक्षित हैं और उनकी यह लगातार मांग रही है कि पत्रकार सुरक्षा कानून लाई जाए.
करीब एक महीने पहले ही पूर्वी चंपारण में विपिन अग्रवाल नाम के सूचना अधिकारी कार्यकर्ता की भी हत्या कर दी गई थी.
सूचना अधिकारी कार्यकर्ता महेन्द्र यादव का मानना है कि स्वास्थ्य के मामले में एक ऐसे आदमी को मार दिया गया, जो आदमी भ्रष्टाचार का पर्दाफाश कर रहा था. इसकी सबसे ज्यादा जरूरत कोविड के वक्त महसूस की गई. उनका दावा है कि ये बड़े पदाधिकारियों की भागीदारी के बिना संभव नहीं है. उनका कहना है कि अगर सुशासन लाना है तो आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा भी करनी होगी.
द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट की मानें तो सूचना का अधिकार लागू होने के बाद से बिहार में 11 साल में 20 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है.
अच्छे पत्रकार समाज के कई पहलुओं में मददगार साबित होते हैं और उनकी सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है. अगर इसी दर से उनकी हत्या की जाएगी और उनपर हमला होगा तो समाज की कुरीतियां हर जगह को घेर लेंगी और लोगों के साथ अन्याय होता रहेगा.