भारत के बिहार राज्य के सुपौल जिला का एक छोटा मगर खुशहाल शहर, बीरपुर. बीरपुर, एक मिश्रित जनसंख्या वाला शहर है, ऐतिहासिक कोशी बैराज के पास भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है. प्रकृति की गोद में बसा यह शहर साल भर शांति और सुकून में रमा रहता है. ना ज्यादा गर्मी, ना ज्यादा ठंड, मगर आसपास पहाड़ होने की वजह से इस क्षेत्र में बारिश काफ़ी ज्यादा होती है. जिससे बाढ़ का खतरा भी बना रहता है. गर्मी के दिनों में उत्तर दिशा में देखने पर हिमालय पर्वत श्रृंखला के दर्शन होंगे और पैदल घूमते घूमते “कोसी नदी” दिखेगी. सुबह सुबह सड़कों पर गश्त लगाते एसएसबी के जवान दिखेंगे और ठंड के मौसम में कुछ जंगली जानवर भी.
एक रोचक तथ्य के माध्यम से बीरपुर का परिचय
यहां के बच्चे जब दूसरे किसी शहर या अपने रिश्तेदारों के घर जाते है, वहां उन बच्चों से बीरपुर शहर के बारे में पूछे जाने पर वे कुछ कहें ना कहे मगर एक बात कहना नहीं भूलते, “जब हमलोग क्रिकेट खेलते हैं ना, तो चौका लगने पर गेंद नेपाल में चली जाती है.”
जी हां, ये बात महज हंसी मजाक के लिए नहीं है, बल्कि ये सच भी है. बीरपुर, भारत नेपाल सीमा रेखा पर स्थित है और यहां खुला बॉर्डर है. बड़े–बड़े खाली खेत हैं, जहां आमतौर पर दोनों ही प्रांत के बच्चे एक साथ आकर खेला करते हैं. ऐसे में गेंद का मैदान के सीमा रेखा के पार जाना, भारत–नेपाल सीमा रेखा के पार जाना होता है. यह बात भले ही आपको बहुत आश्चर्यजनक लग रही हो मगर यहां के लोगों के लिए यह बात आम है. शायद बॉर्डर का नाम सुनते ही आपलोगों के मन में पाकिस्तान या चीन के बॉर्डर का चित्र उभर आता होगा. तार और दीवार से घिरा क्षेत्र, बहुत सारे जवान, हथियारों से लैस गाड़ियां, इत्यादि इत्यादि. मगर एक सीमा क्षेत्र होने के बावजूद, बीरपुर बुद्ध के समान शांत मालूम होता है.
शांति का शहर बीरपुर
इतिहास पलट कर देखें तो यहां हमेशा से शांति का माहौल रहा है. भारत और नेपाल के बीच इस शहर ने रोटी-बेटी के संबंध स्थापित करने में अपना अहम योगदान दिया हैं. बता दें कि नेपाल इकलौता ऐसा देश है, जहां किसी भारतीय को जाने के लिए न तो वीजा की जरूरत होती है और न पासपोर्ट की. ऐसी ही सुविधाएं नेपाल के लोगों के पास भी हैं इंडिया आने के लिए. इसीलिए आमतौर पर बीरपुर के सड़कों पर आपको नेपाल प्रांत के लोग घूमते नजर आ जाएंगे. प्रतिदिन नेपाल के सैकड़ों मजदूर भारतीय इलाके में मजदूरी करने आते हैं. दिन भर मजदूरी के बाद शाम को बीरपुर बाजार से चावल, दाल, नमक, साग-सब्जी खरीदकर लौट जाते हैं. उनका कहना है कि हमारा सिर्फ घर नेपाल में है. सारी व्यवस्था भारत पर निर्भर है. दिन भर हम बीरपुर में कमाते हैं, उसके बाद खाने और सोने के लिए नेपाल चले जाते हैं.
भारत-नेपाल एक समान
वैसे तो सामान्य तौर पर यहां हिंदी भाषा बोली जाती है, मगर सीमा क्षेत्र से सटे भारतीय निवासी टूटी फूटी नेपाली बोल लेते हैं. नेपाल के निवासी भी टूटी फूटी हिंदी बोलने में सक्षम है. मिथिलांचल कहलाए जाने वाले इस सम्पूर्ण क्षेत्र में हिंदी और नेपाली भाषा के अलावे मैथिली भाषा का प्रयोग भी होता है. मैथिली भाषा ही दोनों क्षेत्र के लोगों को आपस में जोड़ने का काम करती है. दोनों ही देश के लोग आपस में कुछ ऐसे जुड़े है कि अक्सर जब समाचारों में सीमा विवाद का ज़िक्र आता है, तो यहां के बड़े बुजुर्ग कहते हैं, “भले ही यहां चापाकल भारत के क्षेत्र में लगा हो मगर उससे निकलने वाला पानी नेपाल से ही आ रहा होता है.” जानकारी के लिए बता दें कि हिमालय के आंगन से निकलने वाली कोसी नदी पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर आती है. इस पानी को ही आसपास के क्षेत्र में सिंचाई समेत पानी से जुड़े तमाम कार्यों में लाया जाता है.
पिछले कुछ सालों से इस क्षेत्र में ठंड के दिनों में जंगली हाथियों और बंदरों के झुण्ड का दिख जाना भी आम हो गया है. आपको बता दें, बैराज से महज 03 मील दूर कोशी टप्पू वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित है और खुली सीमा क्षेत्र होने के कारण अक्सर ही अभ्यारण से जानवर, मानव आबादी वाले क्षेत्र में खाने की तलाश में आते जाते हैं. इन जानवरों की वजह से फॉरेस्ट विभाग इस क्षेत्र में काफी एक्टिव है. फ़िर भी ठंड के दिनों में सीमा से सटे परिवारों में डर बना रहता है. हाल यह है कि किसी भी नए परिवार के बीरपुर में आने पर उन्हें पहले इस बात कि चेतावनी दे दी जाती है, यहां ठंड के महीने में आपको जंगली जानवरों से सतर्क रहने कि आवशयकता है. परन्तु कोरोना काल में यह जानवर मानव बस्ती से दूर हैं, यह एक अच्छी खबर है.
शिक्षा के क्षेत्र में भी अव्वल
शिक्षा के क्षेत्र में परचम लहराने में भी बीरपुर पीछे नहीं रहा है. यहां से कई नामी गिरामी अधिकारियों ने शिक्षा हासिल की है. यहां का कोशी हाई स्कूल कभी पूरे कोशी क्षेत्र में सबसे अधिक नामी स्कूल माना जाता था और आज भी सुपौल जिले में इस स्कूल के विद्यार्थियों के चर्चे होते रहते हैं. ललित नारायण मिश्रा के नाम पर ललित नारायण मिश्रा स्मारक महाविद्यालय नाम से एक सरकारी कॉलेज भी है, जो 1973 से 1975 तक भारत के रेल मंत्री थे और जिनकी 1975 में समस्तीपुर में एक बम विस्फोट में मृत्यु हो गई थी. उनका जन्मस्थान,बलुआ, बीरपुर से दक्षिण की ओर 13 किलोमीटर दूर है. ख़ैर अब तो काफी सारे निजी स्कूल खुल चुके हैं. कोचिंग सेंटर हर गली गली खुलने लगी हैं. इन सब के बीच बीरपुर शहर की साक्षरता दर राज्य के औसत 61.80% से 79.91% अधिक है. बीरपुर में, पुरुष साक्षरता लगभग 86.67% है जबकि महिला साक्षरता दर 71.92% है. (2011 की जनगणना के अनुसार) शहर में खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी एक केंद्र है, जिसे “कोशी क्लब” के नाम से जाना जाता है.
ऐतिहासिक संबंध
आपको बता दें इस शहर में एक ऐतिहासिक हवाई पट्टी है, जिसका आधुनिकीकरण किया जा रहा है और बाद में इसका उपयोग वाणिज्यिक और रक्षा उपयोग के लिए किया जाएगा. यह तब बनाया गया था जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कोशी बैराज की आधारशिला रखने के लिए यहां पहुंचे थे. ब्रिटिश शासन समाप्त होने के बाद सन् 1954 में भारत सरकार ने नेपाल के साथ एक समझौता किया और यहां बाँध बनाया गया. यह बाँध नेपाल की सीमा में बना और इसके रखरखाव का काम भारतीय अभियंताओं को सौंपा गया. यह भारत और नेपाल के मैत्री संबंध को भी दर्शाता है. कोसी बैराज स्थानीय निवासियों के लिए अब एक प्रसिद्ध पिकनिक स्थल बन चुका है. वैसे तो बांध बनने के बाद से अब तक सात बार ये बाँध टूट चुका है और नदी की धारा की दिशा में भी छोटे-मोटे बदलाव होते रहे हैं. बीरपुर तथा आसपास के क्षेत्रों में जगह जगह आपको ये बदलाव दिख जाएंगे. मगर साल 2008 में आए बाढ़ से उबरने के बाद, बीरपुर लगातार तरक्की करता आ रहा है.
कोसी नदी परियोजना से जुड़े होने की वजह से शहर में ज्यादातर कोशी परियोजना के कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए बनी कॉलोनियां हैं. यहां जगह जगह कोसी परियोजना के स्थापना काल मे कोसी बराज के निर्माण को लेकर विदेशों से आयात किए गए भारी–हल्की मशीनें आज भी दिख जाएंगी, जो कि अपने आप में एक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं. सोशल मीडिया पर आए दिन लोग इन मशीनों के साथ तस्वीर डालते रहते हैं. जबकि कोसी परियोजना की कोसी रेल परिसंपत्ति की नीलामी कर सरकार ने नए पीढ़ी के लिए धरोहर के रूप में इसे संजोकर रखना भी मुनासिब नहीं समझा.
पर्यटन का सेंटर प्वाइंट
यह क्षेत्र यात्रा का एक स्थान है. पर्यटन के दृष्टी से बीरपुर, आसपास के क्षेत्रों में जाने के लिए एक सेंटर प्वाइंट माना जाता है. एक सीमा नदी है जो बिहार और नेपाल के बीच बहती है, हिमालय के दर्शन, कई पिकनिक स्पॉट जैसे कोशी डैम, कटैया पावर प्रोजेक्ट, काली मंदिर इत्यादि, साथ ही नेपाल देश के करीब होना, ये तमाम बातें बीरपुर को खास बनाती है. हां मगर कभी कभी आपके भारतीय सिम कार्ड में नेपाली कम्पनी के नेटवर्क का आना जाना भी हो सकता है. मगर यह चिंता की बात नहीं है. आप पर किसी भी प्रकार से राष्ट्रीय सुरक्षा संकट की घंटी नहीं बजेगी. ये महज सीमा क्षेत्र के आसपास नेटवर्क का ओवरलैप होना है. ख़ैर! कभी मौका मिले तो ठंडी हवा के साथ, हाथों में चाय लिए, सामने हिमालय को देखते हुए साथ ही जंगली हाथियों के झुंड से दूरी रख कर, देखने जरूर जाइए कि कैसे “चौका लगने पर गेंद एक देश से दूसरे देश में जा पहुंचती है.”
ये लेख लेखक के निजी विचार है.