बॉलीवुड: कैश कराने वाले राष्ट्रवाद पर तमाचा है सरदार उधम का सादगी भरा राष्ट्रवाद

1919 में जलियाँवाला बाग में हुए हिंसा के विरोध में आवाज उठाने वाले क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह पर आधारित फिल्म सरदार उधम को भारतीय जूरी ने ऑस्कर की सूची से बाहर कर दिया है. हालांकि फिल्म की बारीकियों के लिहाज से इसे किसी भी प्रतिष्ठित पुरस्कार से बाहर करना पचता नहीं है. इस फिल्म ने बॉलीवुड में प्रचलित राष्ट्रवाद को कैश कराने के फैशन पर भी करारा तमाचा मारा है.

ऑस्कर से बाहर करने का कारण फिल्मी की लंबाई को बताया गया है. साथ ही ये भी बताया गया है कि वैश्वीकरण के इस दौर में ये फिल्म अंग्रेजों से नफरत को बढ़ावा देती है. जबकि इस फिल्म की खासियत है कि निर्देशक ने सिर्फ भारतीयों का पक्ष नहीं दिखाया है बल्कि ब्रिटिश अधिकारियों की मानसिकता को भी टटोलने का प्रयास किया है.

फिल्म में एक दृश्य है जिसमें सरदार उधम सिंह जलियाँवाला बाग हत्याकांड के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ’ डायर के यहाँ नौकरी करते हैं. जबकि इतिहास में ऐसी कोई घटना नहीं मिलती. निर्देशक ने अपनी रचनात्मकता से ये दिखाने का प्रयास किया है कि भारत में लोगों की हत्या करने के बाद ब्रिटिश अधिकारी खुद को और अपने देश को क्या सफाई दे रहे थे? उन्हें सैकड़ों लोगों की मौत का कोई पछतावा नहीं था.

“सरदार उधम को प्रतिशोध की कहानी नहीं बनाना चाहता था”

शूजीत सरकार

मेलोड्रामा से परे स्वतंत्रता संग्राम और क्रांतिकारियों पर आधारित ये पहली फिल्म है, जो वास्तविकता के बेहद करीब है. फिल्म को देखते हुए सिंडलरस् लिस्ट (Schindler’s List) और द पियानिस्ट (The Pianist) जैसी फिल्म की बारीकियाँ याद आती हैं. साथ ही इस फिल्म से हॉलीवुड की टक्कर वाली फिल्म ना बनने की शिकायत भी कम होती है.

मुझे इस बात की जानकारी थी कि ये फिल्म पहले इरफान खान करने वाले थे. उनके असामयिक निधन के बाद इसे विक्की कौशल कर रहे थे. एक तो इरफान भाई से मैं भावनात्मक रूप से भी जुड़ा रहा हूँ और दूसरा मैं विक्की से इरफान वाली ऐक्टिंग की उम्मीद नहीं कर सकता था. विक्की कौशल ने सिर्फ मेरे पूर्वाग्रह को नहीं तोड़ा बल्कि उन्होंने फिल्म में कहीं भी इरफान खान की कमी नहीं खलने दी.

फिल्म जितनी शूजीत सरकार की है, उतनी ही विक्की कौशल की भी है. पटकथा इतिहास पर ही आधारित है लेकिन शूजीत ने इसे अपनी कल्पना से भी सींचा है जो तारीफ के काबिल है.

फिल्म

16 अक्टूबर 2021 को फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर रिलीज हो चुकी है. इस लेख के लिखे जाने तक आईएमडीबी पर इसे 22k ने रेट किया है. 9.1 रेटिंग के साथ ये फिल्म प्रतिष्ठित फिल्मों में शामिल है. फिल्म की लंबाई 2 घंटे और 45 मिनट की है.

सरदार उधम सिंह कौन थे?

जलियाँवाला बाग हत्याकांड में सैकड़ों लोगों की मृत्यु ने सरदार उधम सिंह को अंदर से तोड़ दिया था. अंग्रेजी हुकूमत से इस हिंसा का बदला लेने के लिए सरदार उधम ने कई विदेश यात्राएं की. जिसमें अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका जैसे देशों की यात्राएं शामिल हैं.

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्में उधम की माता का निधन 1901 में और पिता का निधन 1907 में हो गया. जिसके बाद उन्हें अपने बड़े भाई मुक्तासिंह के साथ अनाथालय में शरण लेनी पड़ी.

उधम के बचपन का नाम तो शेर सिंह था परंतु अनाथालय में रहते हुए उन्हें दो नए नाम मिले- उधम सिंह और साधु सिंह. सर्वधर्म समभाव के प्रतीक माने जाने वाले उधम सिंह ने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्म हिंदू, मुस्लिम और सिख का प्रतीक है.

1917 में बड़े भाई के देहांत के बाद उधम पूरी तरह से अकेले पड़ गए थे. 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों से जुड़ गए.

21 साल का प्रतिशोध

सैकड़ों भारतीयों के मौत के दुख में डूबे उधम ने इसके प्रतिशोध के लिए पूरे 21 साल का इंतजार किया. रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की लंदन के कॉक्सटन हॉल में 13 मार्च 1940 को हो रही बैठक में माइकल ओ’डायर बोल रहे थे. मौका देख कर उधम ने माइकल को गोलियां दाग दी.

उन्होंने अपनी रिवॉल्वर को एक मोटी पुस्तक के अंदर उसके पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में काट कर छिपाया था. भागने की कोशिश किए बगैर उधम सिंह ने अपनी गिरफ्तारी दे दी. 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.

जलियाँवाला बाग हत्याकांड

दो नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में, रोलेट एक्ट और अंग्रेजों की नीतियों के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी.

शहर में कर्फ्यू होने के बावजूद भी सभा में नेताओं के भाषण सुनने के लिए सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए थे. दूसरी तरफ बैशाखी का दिन होने के कारण भी कुछ परिवार वहाँ आए हुए थे.

जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहाँ पहुंचा और गोलियां चलवा दी. लगभग 1650 राउंड चली गोलियों में सैकड़ों लोग मारे गए. हालांकि मरने और घायल होने वालों की संख्या स्पष्ट नहीं है. आधिकारिक तौर पर अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है लेकिन जलियाँवाला बाग में यही संख्या 388 है. ब्रिटिश सरकार के अभिलेख में इस घटना के कारण शहीद होने वाले लोगों की संख्या 379 और घायल होने वाले लोगों की संख्या 200 है.

लेकिन अनाधिकारिक आंकड़ों की माने तो 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और 2000 से अधिक घायल हुए थे.

रॉलेट एक्ट

जलियाँवाला बाग में हो रही सभा का एक महत्वपूर्ण मुद्दा रॉलेट एक्ट का विरोध था जिसे काला कानून भी कहा जाता है. 18 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार ने भारत में चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से इस कानून को बनाया था. इसे सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिश पर बनाया गया था. इसलिए इसे रॉलेट एक्ट कहा जाता है.

आधिकारिक रूप से इस कानून को अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 कहा जाता है. इस कानून ने ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार दे दिया था कि वो बिना किसी अदालती कार्रवाई के भी किसी भी भारतीय को जेल में बंद कर सकते थे. गिरफ्तार व्यक्ति को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वाले का नाम जानने का भी अधिकार नहीं था.

हालांकि फिल्म में इस कानून के दुष्परिणामों की चर्चा नहीं मिलती है लेकिन जलियाँवाला बाग में हुए हिंसा की पृष्ठभूमि में इस कानून का विरोध भी शामिल था.

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