जनाधार खो रही बसपा यूपी विधानसभा चुनाव से वापसी करेगी?

पांच राज्यों के साथ उत्तर प्रदेश के 403 सदस्यीय विधानसभा पर सबकी निगाहें टिकी हुई है. जहाँ राज्य में मायावती की पार्टी बसपा को 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में महज 19 सीटें मिली थी. उन 19 में से अब सिर्फ तीन विधायक ही पार्टी के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा बैकफुट पर रही थी. ऐसे में जनाधार खो रही पार्टी को फिर से चुनाव के मैदान में जीत की ओर बढ़ाना मायावती के लिए आसान नहीं होगा.

बहुजन समाजवादी पार्टी-बसपा का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश है और पार्टी ने इस प्रदेश में कई बार अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार भी बनाई है. बसपा की अध्यक्ष मायावती हैं. मायावती अबतक उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. पहली बार 1995 में 137 दिनों के लिए; जिसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था, दूसरी बार 1997 में 184 दिनों के लिए, तीसरी बार 2003 में 1 वर्ष 118 दिनों के लिए और चौथी और आखिरी बार 2007 में पूरे पाँच वर्षों के लिए.

अब आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर फिर से बसपा ‘2007 से दमदार जीत’ दुहराने के दावे कर रही हैं. जबकि 75% विधायक बसपा से दूरी बना चुके हैं. 1984 में बसपा का गठन से लेकर आजकर पार्टी ने कई बार उतार-चढ़ाव देखें हैं. मगर उत्तर प्रदेश में हुआ आखिरी विधानसभा चुनाव में जीते 19 में से अब सिर्फ तीन विधायक ही पार्टी के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. ऐसे में बसपा का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है.

इन पाँच राज्यों में बसपा की स्थिति

जिन पाँच राज्यों में हालिया दिनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं वे हैं, यूपी (403 सीट), पंजाब (117 सीट), उत्तराखंड (70 सीट), मणिपुर (60 सीट) और गोवा (40 सीट). इन राज्यों में से गोवा और मणिपुर में बसपा का इतिहास नहीं रहा है. जबकि अन्य तीन राज्यों में बसपा ने खूब दम खम के साथ चुनाव में अपनी भागीदारी स्थापित है. कुछ चुनाव में रिजल्ट बसपा के पक्ष में रहें तो कुछ में बसपा शून्य पर सिमट कर रह गई.

शुरुवात पंजाब से करते हैं. पिछले तीन विधानसभा चुनाव की बात करें तो पंजाब में बसपा को तीनों ही बार शून्य प्राप्त हुआ है. 2017 में बसपा ने 111 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिनमे से एक ने भी जीत दर्ज नहीं की. कुछ ऐसा ही साल 2012 और साल 2007 के चुनाव में भी देखने को मिला. साल 2012 और 2007 में बसपा ने क्रमशः 117 और 115 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे जिनमे से किसी ने भी जीत का स्वाद नहीं चखा.

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी बसपा ने अपनी भागीदारी स्थापित करने की कोशिश की. मगर यहाँ भी उसे मुह की ही खानी पड़ी. साल 2017, 2012 और 2007 में बसपा ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में क्रमशः 69,70 और 69 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. चुनाव के परिणाम आने के बाद को जो आंकड़ें प्राप्त हुए वो तीनों सालों के क्रमशः 0, 3 और 8 सीट हैं.

अब बात उस राज्य की करते हैं जिसे बसपा का मुख्य आधार कहा जाता है. उत्तर प्रदेश. उत्तर प्रदेश में बसपा का इतिहास बहुत पुराना रहा है.  1984 में बसपा की स्थापना हुई. उत्तर प्रदेश विधानसभ चुनाव में बसपा 1993 में ही अपनी खास उपस्थिति दर्ज करा चुकी है. खैर हम ज्यादा पुराने आंकड़ों की बात नहीं करेंगे. बात अंतिम तीन विधानसभा चुनाव की करें तो बसपा का ग्राफ गिरता गया है. साल 2007 में बंपर जीत के साथ मायावती के 403 में से 206 विधायक जीते. इसके बाद के विधानसभा चुनाव 2012 में बसपा एक झटके में लुढ़क कर 80 सीटों पर सिमट गई. वहीं 2017 में 403 सीटों वाली विधानसभा में 19 सीटों के साथ बसपा को संतुष्ट रहना पड़ा. अब इन19 में से अब सिर्फ तीन विधायक ही पार्टी के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं.

2007 से मजबूत सरकार बनाने का दावा कितना सफल होगा

1984 से राजनीति में जुड़ीं मायावती पहली बार 1989 में लोकसभा का चुनाव जीती थीं. 1990 के बाद से देखें तो बसपा का वोट बैंक धीरे-धीरे बढ़ा. 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 40.43 प्रतिशत वोट मिले. वहीं 2012 में उत्तर प्रदेश में मायावती का वोट महज 26 प्रतिशत रह गया. बसपा अध्यक्ष मायावती ने इस बार दावा किया है कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी 2007 से भी ज्यादा मजबूत सरकार बनाएगी. अब देखना यह है कि मायावती का यह दावा बीते सालों के आंकड़ों का काट साबित होती हैं या बसपा और भी कम अंकों के साथ सिमट कर रह जाएगी.

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