देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके है. हर क्षेत्र में भारत तरक्की कर रहा है. मगर इतने साल बीत जाने के बाद भी देश से जातिवाद खत्म नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, देश में जाति-प्रेरित हिंसा के मामले इस बात को दिखाते हैं कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष के बाद भी जातिवाद खत्म नहीं हुआ है.
कोर्ट ने कहा कि जाति-आधारित प्रथाओं की वजह से आज भी समाज कट्टर है. इससे संविधान में दिया गया समानता का अधिकार भी बाधित होता है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की खंडपीठ ने कहा, ‘जातिगत सामाजिक बंधनों का उल्लंघन करने के आरोप में दो युवकों और एक महिला पर लगभग 12 घंटे तक हमला किया गया. इसके बाद उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई. देश में जाति-प्रेरित हिंसा के मामले इस बात को दिखाते हैं कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष के बाद भी जातिवाद खत्म नहीं हुआ है. कोर्ट ने लोगों से अपील की है कि वे इस कुप्रथा के खिलाफ खड़े होने का साहस करें.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 1991 में झूठी शान की खातिर की गई हत्या से संबंधित मामले में दायर याचिकाओं के समूह पर फैसला सुनाते हुए कहा, आजादी के 75 साल बाद भी यह समस्या खत्म नहीं हो पाई है और यह सही समय है जब लोग ऐसे अपराधों को अस्वीकार करें और कड़ा विरोध जताएं.
कोर्ट ने कहा कि जाति-आधारित प्रथाओं की कट्टरता आज भी प्रचलित है और यह सभी नागरिकों के समानता के अधिकार को बाधित करती है. सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टर बी. आर. आम्बेडकर को कोट करते हुए कहा, अंतर-जातीय विवाह समानता प्राप्त करने के लिए जातिवाद से छुटकारा पाने का एक उपाय है.