एक साल पहले सैन्य शासन के बाद से ही म्यांमार में हिंसा चरम पर है. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के हिसाब से पिछले एक साल में देश में करीब 12 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. सैन्य तख़्तापलट के बाद, सेना ने देश भर में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए जो कार्रवाई की, उसमें काफ़ी लोग मारे गए थे.
म्यांमार में हाल के दिनों में सेना और सैन्य शासन के विरोधी लोगों के समूह के बीच हिंसक संघर्षों में बढ़ोत्तरी हुई है. एक साल पहले टुंडा के सैन्य शासन पर काबिज होने के विरोध में यह संघर्ष हो रहा है. यह संघर्ष इतना ज़्यादा बढ़ चुका है कि अब स्थिति संघर्ष से कहीं ज़्यादा गंभीर गृह युद्ध तक पहुंच चुकी है.

संघर्ष निगरानी समूह एकलेड (आर्म्ड कंफ्लिक्ट लोकेशन ऐंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट) के आंकड़ों के मुताबिक पूरा देश अब हिंसा की चपेट में है. ज़मीनी हालत के मुताबिक भी हिंसक संघर्ष अब कहीं ज़्यादा संगठित तौर पर देखने को मिल रहा है और अब यह शहरों तक पहुंच चुका है. पहले शहरी हिस्सों में सशस्त्र संघर्ष की स्थिति नहीं थी.
म्यांमार में सरकारी सेना के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले लोगों को सामूहिक तौर पर पीपल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ़) कहा जा रहा है, जो सशस्त्र नागरिक समूह का एक नेटवर्क है. जिसमें मुख्य तौर पर युवा शामिल हैं. सैन्य तख़्तापलट के बाद युवाओं को दूसरे लड़ाका समूहों से मदद और प्रशिक्षण मिल रहा है, दूसरे लड़ाका समूह सीमावर्ती इलाके में सेना के साथ दशकों से संघर्षरत हैं.
पिछले कुछ महीनों में म्यांमार में ऐसी घटनाएं लगातार देखने को मिली हैं जहां सेना ने आम लोगों की हत्याएं की हैं, जुलाई महीने में कम से कम से चालीस लोगों की हत्या हुई वहीं दिसंबर महीने में 35 लोगों की हत्या की गई, इनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थे.