तीनों ने फिर पारी बाँधी. लड़की को थप्पड़ मारते रहे. एक दूसरे को गालियाँ देते रहे. एक ने सिगरेट जलाकर उसके तलवों में छुवा दी. इससे पहले एक ने सिगरेट से उसके दोनों स्तनों पर दाग बना दिए थे. तीसरे ने पेट के ठीक नीचे पेन से ‘आई लव यू’ लिखकर दिल का चित्र बना दिया था. तीर के निशान के साथ. वो लड़का सिगरेट, दारू कुछ नहीं पीता था. (“क्रिक पांडा पों पों पों” पृष्ट संख्या 16)
ऊपर की ये पंक्तियाँ एक किताब से है. किताब का नाम “क्रिक पांडा पों पों पों” है. भले ही नाम से हंसी-ठिठोली या बच्चों की कहानियों की किताब लग रही हो मगर वास्तविकता यह है कि किताब खुरदरी है और तीखी भी. ये आपको चुभेगी और हो सकता है इतनी तेज चुभे की आपके ज़हन से खून निकाल दे.
किताब को लिखा है ऋषभ प्रतिपक्ष ने. इस क़िताब में कुल 14 कहानियाँ हैं. जिनमें धर्म, जाती और राजनीति से जुड़े तमाम पहलुओं को दर्शाया गया है. साथ ही महिलाओं के प्रति पुरुषों की मानसिकता और महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं ये सच भी सामने लाया गया है. हर कहानी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. सभी कहानियों के पात्रों ने अपनी-अपनी बातें रखी हैं. तमाम त्रासदियों को बड़ी ही सहजता से प्रस्तुत किया गया है जिसके लिए आप लेखक को डीएम कर के “तारीफ रूपी संदेश” भेज सकते हैं.
खैर, किताब में मौजूद सारी कहानियां कठोर हैं. चाहे वह “यहां रण्डी मूतती है” हो, “मर्द” हो, “पहला पीरियड” हो, “फौजी” हो या फिर “सुसाइड वाला लड़का” हो, सब के सब सामाजिक भयावहता को दिखने में कामयाब साबित हुए हैं. कहा जा सकता है कि किताब क़ाफी क्रूर और भयावह है मगर सच्चाई भी. वैसे मंटो से तुलना करना सही है या नही मैं नही जानता. अपनी उम्र के हिसाब से मैंने मंटो को काफी गहराई से पढ़ा है और शायद इसी वजह से इस किताब ने मुझे मंटो की याद दिला दी.
“क्रिक पांडा पों पों पों” कहानी संग्रह में एक कहानी इसी नाम से है. कहानी में कुछ लोग अपनी कुंठा निकालने या गुस्सा दिखने के लिए इस फ्रेज का इस्तेमाल करते हैं.

इस किताब के लेखक का मानना है कि जब तक इंसान को ठोकर ना लगे तब तक लिखने का कोई मतलब नही है. तो ज़ाहिर सी बात है वे काफ़ी ठोकरे खा चुके हैं. लेखक के द्वारा कम से कम बातें बोली गई हैं परंतु समाज की सच्चाई और समाज के क्रूर भाग के प्रति कड़वाहट और गुस्सा भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, जो उचित भी है. इसी वजह से जैसे-जैसे आप इस किताब के अंदर जाएंगे, आप अपने अंदर वर्तमान समय और समाज के प्रति घृणा महसूस करेंगे. क्योंकि आपका सामना सच्चाई से होने वाला है.
वास्तव में यह किताब आपकी आत्मा को झकझोरने के लिए ही लिखी गई है. अगर आप एक सामाजिक व्यक्ति हैं तो निःसंदेह यह किताब आपके लिए है. एक पाठक के तौर पर यह वही “एक किताब” है जो हर पुस्तक प्रेमी के घर में होनी चाहिए. इस किताब को पढ़ने के बाद आप इतना ज़रूर समझ जाएंगे कि किसी किताब को उसके नाम से नहीं आंकना चाहिए.
- उपन्यास : क्रिक पांडा पों पों पों
- लेखक : ऋषभ प्रतिपक्ष
- प्रकाशक : हिंद युग्म प्रकाशन
- पृष्ठ : 128
यह समीक्षा एक पाठक के तौर पर महसूस की गई बातों का संकलन है.समीक्षा लिखने वाले के निजी विचार के तौर पर इसे पेश किया जा रहा है.