राजनीति का अपराधीकरण: लोकतंत्र के लिए खतरा

नेताओं का अपराधियों से गठजोड़ और राजनीति में धर्म का जुड़ाव ये दोनों बातें किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था, मूल्यों और सिद्धांतों के लिए खतरा उत्पन्न करती हैं. धीरे धीरे समय गुजरने के साथ-साथ राजनीति में अपराधियों और बाबाओं के प्रभाव बढ़ने लगते हैं. एक समय ऐसा भी आता है जब एक आपराधिक चरित्र का व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद को हासिल कर लेता है.

इसके बाद देश को बर्बाद करने का खेल शुरू होता है. इसमें जनता की भी गलती होती है. लोगों को काफी सोच समझ कर देश के शीर्ष नेतृत्व का चयन करना चाहिए.

एक आपराधिक छवि का व्यक्ति, वो भी अनपढ़ और कॉरपोरेट का गुलाम ऐश मौज करना और कॉरपोरेट दोस्तों को फायदा पहुँचाना ही जिसकी मुख्य प्राथमिकता हो, वह किस तरह देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद कर सकता है, इसका नतीजा हम सबके सामने है.

देश की जनता महँगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है और इसी दौरान सरसों तेल, एलपीजी गैस, पेट्रोल, डीजल, मोबाइल रिचार्ज और तमाम बुनियादी सामानों के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इसकी जवाबदेही सरकार के मंत्री, विधायक या नौकरशाह नहीं ले रहे हैं, उल्टे वे अनर्गल बयानबाजी करते हैं.

यह सरकार जनता की आवाज को दबाने के लिए शोषण और उत्पीड़न के हर पैंतरे को आजमा चुकी है और हर बार इसकी चालाकियों को इस देश की जनता समझ जाती है. परन्तु जब भी चुनाव आते हैं तब साम्प्रदायिक हिंसा और धर्म से जुड़े मुद्दे को गोदी मीडिया के द्वारा प्रचारित किया जाता है और सब कुछ भुलाकर जनता दुबारा से सत्ता की बागडोर एक अलोकतांत्रिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के हाथ में दे देती है.

हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि यहाँ के लोग ओहदा पैसे, नौकरी और शराब के चक्कर में अपना बहुमूल्य मत ऐसे व्यक्ति को दे देते हैं जो आपराधिक पृष्ठभूमि से होता है. दूसरी बात यह है कि यहाँ की लगभग दो तिहाई जनसंख्या संविधान में वर्णित अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में नही जानती है.


जब लोगों को अपने हक और अधिकार की जानकारी ही नहीं होगी तो वे कैसे विरोध कर पाएंगे? वे हमेशा नेताओं की लच्छेदार बातों में फंस जाते है. शिक्षा ही वह महत्वपूर्ण औजार है जो देश में आमूल चूल परिवर्तन ला सकता है. अतः शिक्षा को बचाना हर हाल में जरूरी है. एक शिक्षित व्यक्ति ही शिक्षित परिवार, समाज एवं देश का निर्माण कर सकता है.

ये लेखक के निजी विचार है.

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