नोटबन्दी: आर्थिक सुधार के नाम पर देशवासियों के साथ किया गया छल

नोटबन्दी इस सदी की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण परिघटना है, जिसकी त्रासदी से यहां के लोग/जनता आज तक उबर नहीं पाई है. सरकार तथा सरकार के चहेते मीडिया द्वारा नोटबन्दी के फायदे गिनाए गए थे. गिनाए गए फायदे तो इतने साल गुजरने के बाद भी नजर नहीं आए.

आतंकवादियों की कमर तोड़ने की बात हुई थी पर आज तक किसी भी आतंकी/आतंकवादियों की कमर नही टूटी उल्टे जनता की कमर जरूर टूट गई. आर्थिक सुधार की बातें हुईं थीं परन्तु आर्थिक सुधार की जगह आर्थिक असमानता ने ले ली.

बिना सोचे-विचारे सरकार द्वारा लिए गए इस नीतिगत फैसले के दूरगामी परिणाम, जो सम्भवतः देश के लिए हानिकारक ही साबित हुआ है, काफी दोषपूर्ण है. नोटबन्दी के फैसले ने देश की आर्थिक उन्नति के मार्ग में अवरोध पैदा करने का काम किया है. 

नोटबंदी: संगठित लूट और कानूनी डाका थी

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के शब्दों में “नोटबंदी: संगठित लूट और कानूनी डाका थी”. वे भले कम बोले, लेकिन झूठ कभी नहीं बोले. जब प्रधानमंत्री थे तब भी और जब पद से हट गए तब भी. वे पद पर रहते हुए भी झूठ के शिकार हुए लेकिन शांत रहे. उनके दामन पर कोई दाग नहीं था, लेकिन कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर उन्होंने अपने मंत्रियों तक को जेल भेज दिया था.

बाद में टूजी जैसे बहुचर्चित घोटाले भी गलत साबित हुए. हालांकि, वे विचलित नहीं हुए. रैली में रोए नहीं. नाटक नहीं किया. धैर्य के साथ बहादुर की तरह बस इतना कहा कि “इतिहास मेरा मूल्यांकन करने में नरमी बरतेगा”.


नोटबंदी पर उन्होंने जो कुछ कहा था, वह अक्षरश: सच साबित हुआ. नोटबंदी लागू होते ही उन्होंने कहा था कि “नोटबंदी एक संगठित लूट और कानूनी डाका है.” राज्यसभा में 25 नवंबर, 2016 को डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था, “नोटबंदी में बहुत बड़ा कुप्रबंधन देखने को मिला, जिसे लेकर पूरे देश में कोई दो राय नहीं है. हम नहीं जानते कि इसके अंतिम नतीजे क्या होंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 50 दिन रुक जाइये, लेकिन गरीबों और वंचित तबकों के लिए ये 50 दिन किसी प्रताड़ना से कम नहीं हैं. 60 से 65 लोगों की जान जा चुकी है. यह आंकड़ा बढ़ सकता है. कृषि, असंगठित क्षेत्र और लघु उद्योग नोटबंदी के फैसले से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और लोगों का बैंकिंग व्यवस्था पर से विश्वास खत्म हो रहा है.

इस योजना को जिस तरह से लागू किया गया, वह प्रबंधन के स्तर पर विशाल असफलता है। यहां तक कि यह तो संगठित और कानूनी लूट का मामला है. बाद में उन्होंने फिर कहा, नोटबंदी एक बिना सोचा समझा और जल्दबाजी में उठाया गया कदम है. नोटबंदी का कोई लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है. नोटबंदी एक संगठित लूट और कानूनी डाका था.

नोटबंदी और जीएसटी की वजह से जीडीपी में 40 फीसदी का योगदान देने वाले असंगठित क्षेत्र और छोटे पैमाने पर होने वाले कारोबार को दोहरा झटका लगा. नोटबंदी के बाद जल्दबाज़ी में लागू किए गए जीएसटी ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को बुरी तरह से प्रभावित किया है. नोटबंदी का जो मकसद बताया वह पूरा नहीं हुआ, कालेधन वालों को पकड़ा नहीं जा सका, वे लोग भाग गए। इन दोनों कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है.

जीएसटी के अनुपालन की शर्तें छोटे कारोबारियों के लिए बुरे सपने की तरह हैं. सबसे गौरतलब बात ये है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री डॉ• मनमोहन सिंह संसद में सरकार को आगाह करने की कोशिश कर रहे थे तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मर्यादाओं को ताक पर रखकर एक पूर्व प्रधानमंत्री, संसद सदस्य और सम्मानित अर्थशास्त्री के लिए ​घटिया भाषा का इस्तेमाल किया था.


मनमोहन सिंह ने जो भी कहा वह सच साबित हुआ. उन्होंने कहा था कि नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है और यह साबित हुआ. उन्होंने कहा था कि बड़े पैमाने रोजगार प्रभावित होंगे और यह साबित हुआ. उन्होंने कहा कि जीडीपी नीचे जाएगी और यह साबित हुआ. उन्होंने कहा कि बैंकिंग पर लोगों का भरोसा कम होगा और यह साबित हुआ.

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