बिहार में शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब से मर रहे लोग, तबाह हो रहे परिवार…

सिवान जिले के बेलौड़ी गांव के चमटोली में बीते 24 अक्टूबर को 4 लोग जहरीली शराब पीने की वजह से दम तोड़ चुके हैं. एक शख्स अपने आंखों की रोशनी गवां चुका है. पूरे गांव में मातम पसरा है. वहां पहुंचने पर समझ में नहीं आता कि किससे बात की जाए.

गोपालगंज के मोहम्मदपुर गांव के चमटोली और लगायत टोलों में 9 लोग जहरीली शराब का शिकार बन चुके हैं. मोहल्ले में इस बीच नेताओं और मीडियाकर्मियों की आवाजाही जारी है. कई पीड़ित परिवारों के घरों को सील कर दिया गया है.

मनोज राम की (गोपालगंज) की पत्नी

बेतिया के तेल्हुआ गांव के चमटोली और दुसाध टोली के साथ ही यादव टोले से दीपावली के एक रात पहले (जमदियरी के रोज) 12 लाशें उठाई गईं. मोहल्ले के लोगों का कहना था कि यदि यह घटना एक दिन बाद होती तो कोई लाश उठाने वाला नहीं मिलता. यहां तो कभी शराब मिलनी बंद ही नहीं हुई.

अब जरा ठहरिए. थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं. थोड़े से थोड़ा और पीछे. पांच साल पहले. साल 2016. बिहार में शराबबंदी लागू की गई. तब सूबे के मुख्यमंत्री और सूबे के नेता प्रतिपक्ष से सम्बद्ध दलों की साझा सरकार थी. महागठबंधन वाली. सूबे के मुख्यमंत्री अब किसी और गठबंधन का हिस्सा हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन. इस गठबंधन में शराब पीने और पिलाने को लेकर दोनों मुख्य दलों के बीच नूराकुश्ती जारी है. जनता चित पड़ी है. महापर्व छठ की तैयारियों के बीच पूरा सूबा सिसक रहा है, लेकिन कौन है जो उसके आंसू पोछे?

यहां हम आपको यह बताते चलें कि सूबे में चल रहे पंचायती चुनाव के प्रचार और शोर के बीच बीते 15 दिनों में 60 लोग जहरीली शराब की भेंट चढ़ चुके हैं. 60 मौतें सरकारी आंकड़ा है और वास्तविक आंकड़ा क्या होगा इसका अंदाजा आप स्वत: ही लगा सकते हैं.

तब सूबे के मुखिया ने कहा था कि वे महिलाओं के गुहार पर शराबबंदी लागू कर रहे हैं. जैसा कि उन्होंने चुनावी वादा किया था. हालांकि शराबबंदी को लेकर अपनी पीठ थपथपाने वाले सूबे के मुखिया इस बात को बड़े शातिराना अंदाज में छिपा ले जाते हैं कि सूबे में गली-गली और चौक-चौराहों तक शराब पहुंचवाने वाला कौन था? वो किसकी सरकार रही जो लोगों को शराब पिलाकर राजस्व वसूलती रही?

वैसे तो उपरोक्त तीनों मामले तीन अलग-अलग जिलों के हैं, लेकिन इन तीनों जिलों+ तमाम जिलों (जगहों) में एक समानता है कि जहरीली शराब की जद में आने वाले लोगों में से अधिकांश लोग अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते हैं, और महिलाएं इन मौतों से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रही हैं. कई परिवारों में तो एक मात्र कमाने वाला शख्स अचानक से उनके बीच नहीं है. सिवान जिले के बेलौड़ी गांव में ही हमें उषा कुंवर मिलीं. उनके दो बेटों में से एक बेटा जहरीली शराब का शिकार हो चुका है. उषा कुंवर हमसे बातचीत में कहती हैं,

“हमरा मालिक के मुअला 20-25 साल हो गइल. हमार पांच गो लड़की और दू गो लड़िका रहे. दूगो लड़िका में एगो लड़िका ओरा गइल. हमार अब कोई अलम नइखे.”

उषा कुँअर

तब (साल 2016) सूबे के मुखिया ने कहा था कि वे महिलाओं के गुहार पर शराबबंदी लागू कर रहे हैं. जैसा कि उन्होंने चुनावी वादा किया था. हालांकि शराबबंदी को लेकर अपनी पीठ थपथपाने वाले सूबे के मुखिया इस बात को बड़े शातिराना अंदाज में छिपा ले जाते हैं कि सूबे में गली-गली और चौक-चौराहों तक शराब पहुंचवाने वाला कौन था? वो किसकी सरकार रही जो लोगों को शराब पिलाकर राजस्व वसूलती रही? और यह मौतें एक ऐसे राज्य में हो रही हैं जहां ‘शराबबंदी’ के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई को न जाने कितने अलग-अलग तरीके से खर्च किया जा चुका है. सूबे में ‘मानव श्रृंखला’ में खड़े लोगों को आप भूल तो नहीं गए ना?

शराबबंदी के बावजूद होम डिलिवरी-


वैसे तो बिहार में ‘पूर्ण शराबबंदी’ लागू है (कागज पर) लेकिन इस बात को सभी शराबखोर जानते हैं कि उन्हें कब, कैसे और कहां से शराब मिल सकती है. होम डिलिवरी जैसे शब्द आम हो गए हैं. उचित रोजगार और कमाई के अभाव में कई छात्र और नौजवान शराब की सप्लाई में लगे हैं. जहां शराब आसानी से नहीं मिल पा रही, वहां नौजवान गांजा, स्मैक, हिरोइन और ब्राउन शुगर के नशे की गिरफ्त में हैं. एक पूरी पीढ़ी तबाही के कगार पर खड़ी है.

पीजिएगा तो गड़बड़ तो होगा ही- नीतीशे कुमार


जहरीली शराब से होने वाली मौतों को लेकर उठ रहे सवालों पर सीएम नीतीश कुमार यह कहते नजर आए कि पीजिएगा तो गड़बड़ तो होगा ही. यह हर जगह न होता है. जहां शराब चल रही है- वहां भी इस तरह की गड़बड़ चीजें होती रहती हैं, और ऐसा करिएगा तो कोई गड़बड़ तरीके से आपको पिला देगा और चले जाइएगा.

वहीं सूबे की मुख्य विपक्षी पार्टी (राजद) ने सीएम के इस बयान की प्रतिक्रिया में कहा कि लोग गड़बड़ चीजें न पीयें इसकी व्यवस्था हो. बाजार में सही चीज उपलब्ध हो- और सरकार में साझेदार सबसे बड़ी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने शराब से होने वाली मौतों पर जो प्रतिक्रिया दी वह सरकार में शामिल दोनों दलों के बीच जारी नूराकुश्ती का अप्रतिम उदाहरण है- संजय जायसवाल ने इस बीच प्रेस से रूबरू होते हुए कहा कि उनके लोकसभा (बेतिया) में हालात भयावह हैं. कई जिलों में पुलिस शराब खरीद-बिक्री का पार्ट बन चुकी है. जहां घटनाएं हो रही हैं, वहां पुलिस कड़ी है, लेकिन जहां नहीं हो रहीं वहां एक नंबर की शराब बिक रही है.

गलती और समाधान-


बेतिया के दक्षिणी तेल्हुआ में अपने बेटे की लाश को कंधा देने वाले चोकट पासवान से जब हमने पूछा कि इस पूरे प्रकरण में आपको किसकी गलती लग रही. खुद की ओर से गलती हुई या फिर सरकार की गलती है? तो उन्होंने जो हमसे पूछा वह बात गर सरकार तक पहुंचे तो शायद वह अपना अड़ियल रवैया त्यागे. वे कहते हैं,

“सरकार के एमे गलती बा ना? पहिले भी लोग पियते रहल हs. हमनी के बाप-दादा के दौर से दारू अउर ताड़ी के साथ जनम-करम चलत रहल हs. पहिले भट्ठी से जवन समान मिले ऊ चेक कके मिले. लोग ओहके पिए. अब जे भट्ठी बंद हो गइल तs कोई कुच्छो लेआ के पिया देता. चोरी-चोरी. लोग पीके ओरा जाता”.

चोकट पासवान

शराबबंदी का समाजशास्त्र –


वैसे तो शायद इस बात को सभी जानते ही होंगे कि जहरीली शराब पीने से सबसे अधिक किन जाति/समुदाय के लोगों के जान अधिक जा रही है- फिर भी इस पूरी बात को समझने के लिए हमने समाजशास्त्री महेंद्र सुमन से बात की. हमसे बातचीत में वे कहते हैं,

“देखिए शराब जो है एक आदिम काल से चला आ रहा खानपान का हिस्सा रहा है. कई जगहों के संस्कृति का भी हिस्सा रहा है. अलग-अलग जगहों और समुदाय के लोग (आदिवासी) आज भी अपने घरों में शराब बनाते और पीते हैं. आज भी अलग-अलग राज्यों में बनने वाली शराब जैसे फेनी और महुआ के ढेरों चाहनेवाले हैं. रही बात बिहार के शराबबंदी कानूनी की तो यह कानून मूलत: गरीब विरोधी है. गरीब घरों के लोग ही जहरीली शराब की चपेट में सबसे अधिक आ रहे. उनका परिवार तबाह हो रहा. अमीर तो इस बात को जानता है कि उसे कहां से शराब पीनी है. वो उस नशे के लिए अधिक पैसे भी खर्च कर सकता है, लेकिन गरीब के लिए ऐसा कर पाना (अधिक खर्च कर पाना) संभव नहीं”.

महेन्द्र सुमन बिहार में शराबबंदी के कानून को सीएम नीतीश कुमार का पॉलिटिकल स्टंट करार देते हैं. वे कहते हैं,

“देखिए नीतीश शराबबंदी के नशे में हैं. वे इस शराबबंदी के माध्यम से महिलाओं के वोटबैंक को अपनी जद में रखना चाहते हैं, जिसमें वे कुछ हद तक सफल भी हुए हैं- लेकिन सरकार चलाने और समाज सुधारने की दिशा में चलने में फर्क है. नीतीश इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं कि आखिर कड़े कानूनों से कहीं अपराध रुका है, और सिर्फ शराब पी लेने भर से कोई कैसे अपराधी हो जाएगा? जबकि इस धंधे में संलिप्त लोगों के नेटवर्क को वे ध्वस्त नहीं कर पा रहे. पूरे राज्य में शराबखोरों को शराब आसानी से उपलब्ध है, और इस कानून के बनने के 5 साल बाद वे इसकी पुनर्समीक्षा की बात कह रहे. शराबबंदी एक कानून के तौर पर फेल है.”

कभी सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ और अब साथ चल रहे HAM पार्टी के मुखिया और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री इस बात को बराबर कहते रहे हैं कि शराब पीने से जहां अधिक मौतें महादलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोगों की होती है- शराबबंदी का कानून गरीब विरोधी है. JAP मुखिया पप्पू यादव ने भी हमसे बातचीत में ऐसी ही बातें कहीं थीं. साथ ही कहा था कि गरीबों की धरपकड़ से अधिक जरूरी है कि सरकार और प्रशासन की जवाबदेही तय की जाए.

मृतकों के परिवारजन से मिलते हुए पप्पू यादव

बाद बाकी इस रिपोर्ट के लिखे जाते-जाते सूबे के मुजफ्फरपुर और बक्सर जिले के अलग-अलग गांवों में इस बीच जहरीली शराब पीने से आधे दर्जन से अधिक लोगों (मुजफ्फरपुर में 5 और बक्सर में 2) से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. मुजफ्फरपुर में संबंधित थानाध्यक्ष और चौकीदार को निलंबित करके खानापूर्ती कर दी गई है. हालांकि बक्सर पुलिस अपने जिले में होने वाली मौतों को अब तक प्राकृतिक मौत बता रही है. वैसे बिहार में अब भी बहार है, क्योंकि सूबे में मुखिया ‘नीतीशे कुमार’ हैं- लोग ओराते रहें अपनी बला से…

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