क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्य अमेरिका का सबसे बड़ा देश है निकारागुआ. इसके साथ ही निकारागुआ दुनिया का एकमात्र देश है जिसने कोविड -19 महामारी के दौरान किसी भी समय सार्वजनिक कार्यक्रमों को रद्द नहीं किया. महामारी की शुरुआत में, राष्ट्रपति डेनियल ओर्टेगा की सरकार ने वायरस की गंभीरता से इनकार किया. सामूहिक और सार्वजनिक समारोह को बढ़ावा दिया, लॉकडाउन की निंदा की और स्कूलों को भी खुला रखा.
डॉक्टरों ने चुकाई भारी कीमत
जब सम्पूर्ण विश्व कोरोना महामारी के बीच लड़ाई लड़ रहा था उस समय, निकारागुआ में कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही थी. इस दौरान डॉक्टरों ने कोविड रोगियों के इलाज के लिए भारी कीमत चुकाई. मरीजों के इलाज के लिए उन्हे दंडित किया गया. एक स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रिचर्ड सेंज कोएन को जुलाई 2021 में आठ बार गिरफ्तार किया गया, पीटा गया और भोजन से भी वंचित रखा गया. अंततः उन्हें देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा.
ह्यूमन राइट्स वॉच नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा बताया गया कि सरकार ने उन सभी डॉक्टरों को दंडित किया जो कोरोना संक्रमितों का इलाज कर रहे थे. डॉक्टरों को काम से निकाल दिया गया, उनके मेडिकल लाइसेंस छीन लिए गए. यहाँ तक कि उन डॉक्टरों के घर पुलिस भेजा गया. बावजूद इसके डॉक्टरों ने मानवता के खातिर अपने खाली समय में रोगियों का इलाज किया.
कोरोना के आंकड़ों को छिपाया गया
कोरोना महामारी के दौरान निकारागुआ में कितने लोग मारे गए यह अबतक विवादों में घिरा विषय है. 66.2 लाख की आबादी वाले इस देश में कोरोना से मरने वालों का आधिकारिक आंकड़ा 217 है. लेकिन कम ही लोग इन नंबरों पर विश्वास करते हैं. देश के फ्रंटलाइन वर्कर्स सरकार के इन आंकड़ों पर विश्वास नहीं करते हैं. स्वास्थ्य कर्मियों को अपने काम के लिए खुद राष्ट्रपति ओर्टेगा के क्रोध का सामना करना पड़ा. उनका कहना कि आंकड़ों से लगभग 30 गुना अधिक लोगों की मृत्यु हुई है. मीडिया ने भी, 2020 की पहली छमाही में वायरस और अधिक मौतों की सूचना दी.
सरकार ने अक्टूबर 2020 से कोविड से एक दिन में एक मौत दर्ज की है, लेकिन माना जाता है कि आंकड़े गलत हैं. डॉ रिचर्ड सेंज कोएन के दावों के अनुसार देश भर में हर दिन सैकड़ों लोग मर रहे थे. ऑब्जर्वेटोरियो सियुडाडानो नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने 29 दिसंबर 2021 तक कोविड से 5,970 मौतों की सूचना दी. इस संगठन के मुताबिक सरकार ने आंकड़ें छिपाए क्योंकि सरकार अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती थी, पर्यटन को रोकना या स्वास्थ्य प्रणाली में कमजोरी नहीं दिखाना चाहती थी.
जबरन उतरवाए मास्क और पीपीई
द टेलीग्राफ के अनुसार स्वास्थ्य कर्मियों के पीपीई पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. जबरन फेस मास्क भी उतरवाया गया. सरकार द्वारा इसका कारण यह बताया गया कि पीपीई किट और मास्क जैसे सुरक्षात्मक गियर जनता में कोरोना के प्रति डर पैदा करते हैं. दमनकारी सरकार ने उन्हें “विज्ञान के प्रति प्रतिबद्धता और निकारागुआ के लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार” के कारण परेशान किया. जुलाई 2020 के अंत में देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉक्टरों को गिरफ्तारी या जेल की धमकी दी. जिन डॉक्टरों ने कोविड को गंभीरता से लिया उन्हे उनके अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया.

बीते दिनों विवादास्पद चुनावों के बाद डेनियल ओर्टेगा चौथी बार राष्ट्रपति बने. इस चुनाव को लेकर दुनियाभर में आलोचना हुई थी. जिन नेताओं ने डेनियल को चुनौती दी थी, उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया. ओर्टेगा की सरकार पर दमन और चुनाव में धांधली का आरोप लगाया गया. कोरोना के दौरान भी संक्रमण के मामलों और मौतों की संख्या को छिपाया गया. इतना ही नहीं, इंटर अमेरिकन कमिशन ऑन ह्यूमन राइट्स के अनुसार, पिछले चार वर्षों में विरोध और सरकारी कार्रवाई के बाद 200 से अधिक डॉक्टर देश छोड़कर भाग गए.