क्रिकेटर तो रहे ही हैं. नेता हैं ही. कॉमेडी शो कर ही चुके. आखिर क्या यह सवाल नहीं है कि नवजोत सिंह सिद्धू जीवन में चाहते क्या है? क्या वे इमरान खान की तरह देश के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं. अच्छा ही है. इससे दोनों देशों के बीच एकता और भाईचारे का भी संचार हो. क्रिकेट दोनों देशों के बीच एकता और भाईचारे का माध्यम भी रहा है.
एक क्रिकेट प्रेमी की निगाह से इसको कैसे देखा जा सकता है. भारत-पाकिस्तान किकेट मैच के रोमांच को क्या भूल जाय जाए? जाड़े की नम्र धूप में रेडियो या टेलीविजन पर मैच सुनने या देखने की उत्सुकता कहाँ चली गई? या ऐसा सिर्फ शहर में बैठे लोगों को लग रहा है. या मोबाइल ने क्रिकेट का रोमांच ख़त्म कर दिया. ऐसे में एक क्रिकेटर का राजनीती में ऊँचे मुकाम तक पहुंचना मायने रखता है. इमरान खान इसके लिए बधाई के हकदार हैं कि वे प्रधानमंत्री बने. सिद्धू मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए.
मामला कांग्रेस की दलित पॉलिटिक्स ने बिगाड़ा और चन्नी मुख्यमंत्री बन गए. राहुल गाँधी ने अपने भाषण में बोले कि पंजाब को सबसे ज्यादा जरुरत शांति कि है और वे चन्नी जी लेकर आएँगे. अब शांति तलाशते युवाओं का दल भी चन्नी जी की तरफ शिफ्ट हो गया. क्रिकेट तो वे अब खेलते नहीं. तो अब वे कहाँ जाएंगे, क्या करेंगे यह सवाल है.
कांग्रेस क्यों नहीं सिद्धू को पार्टी अध्यक्ष बना देती है. खेलने का अनुभव तो उनके पास है ही. कहने का मतलब है कि सिद्धू को पंजाब से निकालकर राष्ट्रीय जिम्मेदारी दी जाए. ऐसा तब होगा तब पंजाब चुनाव में कांग्रेस जीत हासिल करेगी. इस क्या होगा-नहीं होगा के फेर से निकलकर बात करें तो क्या सिद्धू में वो बात है जो इमरान खान में है. बात टीम को लीड करने को लेकर हो रही है. क्या एक समय बहुत काम बोलने वाला सिद्धू लॉफ्टर शो से होते हुए राजनीती में किस मुकाम पर पहुँच पाया है?