लालटेन में अब तेज को तवज्जो नहीं!

लालू यादव साढ़े तीन साल बाद बिहार वापस तो आ गए हैं लेकिन उनके आते ही जिस तरह उनके बेटे और पूर्व मंत्री तेजप्रताप ने हाई वोल्टेज ड्रामा किया, उससे ऐसा लग रहा है कि लालू की ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा अपने पारिवारिक कलह को शांत करने में खर्च होगा. हांलांकि लालू के बिहार आने को लेकर विपक्षी खेमों में इस बात की सुगबुगाहट तो थी ही कि उनका चुनाव प्रचार में होना भारी पर सकता है. इससे कोई शायद ही इंकार कर पाए कि इतने मसलों के बाद भी लालू की अब भी पूछ है और लोगों का एक हिस्सा उनको सुनने के लिए बेताब रहता है.

तेजप्रताप का तेज गुस्सा और अप्रत्याशित ड्रामा कोई नई चीज नहीं रही. दोनों भाइयों के बीच की दरार दिन-ब-दिन चौड़ी होती जा रही है. हांलांकि तेजस्वी ने इस मामले पर हमेशा एक संयत रुख अपनाया है लेकिन तेजप्रताप आये दिन कोई ना कोई बयान देकर उनकी और पार्टी की मुश्किलें बढ़ाते नज़र आते हैं. जगदानंद सिंह पर लगातार हमले के बाद तेजप्रताप ने अपने ज़ुबानी जंग का मुँह तेजस्वी के सलाहकार संजय यादव की तरफ कर दिया है. हाल ही में उन्होंने कहा कि संजय यादव हरियाणा के हैं और उनको बिहार में कोई नहीं जानता. तेज ने कहा कि तेजस्वी ऐसे लोगों को साथ लेकर चलेंगे तो काम नहीं चल पाएगा. ऐसे लोग पार्टी को हाईजैक करने का काम कर रहे हैं.

तेजप्रताप की जिद के बावजूद लालू का उनके घर ना जाना कई संकेत करता है. इससे पहले भी कुछ मौकों पर लालू सार्वजनिक रूप से तेजस्वी की तारीफ़ कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि तेजस्वी अच्छा काम कर रहे हैं, तभी तो बड़े-बड़े लोग उनसे मिलने पहुँचते हैं. यूं तो कई बार तेज ने भी अपने भाई की तारीफ़ की है लेकिन उनका निहितार्थ कुछ और होता है. दोनों भाइयों के टकराव में शुरू से ही ऐसा कोई भी मौक़ा नहीं रहा जब तेज ने तेजस्वी के सहयोगियों पर कड़ा तंज और हमला ना किया हो.

तेजस्वी का मनोविज्ञान समझने की कोशिश करें तो साफ़ दिखता है कि वह अपने बड़े भाई को कतई गंभीरता से नहीं लेते. कमोबेश यही भाव पूरे परिवार का भी है लेकिन लालू बतौर पिता अपने घर को निश्चित रूप से एकजुट रखना चाहते हैं. तभी वो राबड़ी के आवास से तेज के घर तो पहुंचे लेकिन घर के अंदर नहीं गए और गाड़ी में ही बैठे रहे. तेज ने उनके पैर धोए, कुछ बात की और अपने घर के बाहर शुरू किया धरना ख़त्म कर दिया. बयानबाजी भी की यह उन लोगों के मुँह पर तमाचा है जो परिवार को तोड़ने की मंशा रखते हैं.

निष्पक्षता से कहा जाय तो तेज का बचपना ही उनके परिवार के टूट के कगार पर खड़े होने की वजह बन रहा है. राष्ट्रीय जनता दाल के भीतर उनकी हालत अस्वागतयोग्य हो गई है. निकटभविष्य में भी ऐसे कोई आसार नहीं दिखते कि राजद का स्थापित नेतृत्व तेज को कोई तवज्जो देना चाहेगा. परिवार के भीतर क्या फैसला होता है, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन जो चीजें सतह पर दिख रही हैं, उनमे तेज अँधेरे की ओर बढ़ते नज़र आ रहे हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *