डुमरांव बिहार: शराबबंदी वाले बिहार में नहीं थमा जहरीली शराब से मौत का सिलसिला

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर बेहद सख्त है. बिहार की पुलिस पर इतना दवाब है कि शराब खोजने के लिए पुलिस दुल्हन के कमरे तक में घुस जाती है. पुलिस पर ऊपर से कार्रवाई का इतना डर है कि जहरीली शराब से मौत के बाद भी बिहार की पुलिस मामले को स्वीकार ही नहीं करती है.

जिस राज्य की पुलिस शराब खोजने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, वहाँ जहरीली शराब से मौत का सिलसिला रुक ही नहीं रहा. बक्सर जिले के डुमरांव के आमसारी गाँव में जहरीली शराब से 5 लोगों की मौत हो गई है और कई अन्य की हालत गंभीर है. नीतीश सरकार में बिहार पुलिस को शराबबंदी मामले में कार्रवाई होने से इतना डर है कि इन मौतों के लिए जहरीली शराब को कारण मानने से ही इंकार कर रही है.

ग्रामीण सूत्रों के अनुसार 26 जनवरी की शाम को इन लोगों ने शराब पी थी और देर रात से मौत का सिलसिला शुरू हो गया.

इसके पहले नालंदा और सारण से भी जहरीली शराब का मामला सामने आ चुका है. पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले में जहरीली शराब से 13 लोगों की मौत हो गई थी. सारण जिले में जहरीली शराब से 18 लोगों की मौत हुई है.

पिछले साल की बात करें तो गोपालगंज में 18 और बेतिया में 17 से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई थी.

2016 में शराबबंदी के बाद तकरीबन 200 लोगों की जहरीली शराब से मौत हो चुकी है.

नवंबर महीने में जब नीतीश कुमार सचिवालय में शराबबंदी कानून की समीक्षा कर रहे थे तब उसी सचिवालय के बाहर शराब की खाली बोतले बरामद हुई. इतना ही नहीं पिछले वर्ष शीतकालीन सत्र के दौरण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कक्ष से महज सौ मी की दूरी पर शराब की खाली बोतलें बरामद हुई थी. इस महीने राजधानी पटना के कोतवाली थाना क्षेत्र के दरोगा राय पथ में बिहार सरकार के भवन निर्माण विभाग के सेंट्रल एक्सक्यूटिव इंजीनियर के कार्यालय से भी शराब की खाली बोतलें बरामद हुई.

इतना ही नहीं शरबबंदी मामले में जमानत से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि शराबबंदी के केसों से अदालत का दम घूंट रहा है!

पटना हाईकोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी के अनुसार वर्तमान में 39, 622 जमानत के आवेदन पड़े हैं. इनमें 21 ,671 अग्रिम और 17,951 नियमित जमानत याचिकाएं लंबित हैं. इसके अलावा 20, 498 अग्रिम और 15, 918 नियमित जमानत याचिकाओं साहित 36,416 ताजा जमानत आवेदनों पर विचार किया जाना बाकी रह गया है.

जिस कानून को लागू कराने के लिए राज्य भर की पुलिस के साथ खुद मुख्यमंत्री मजबूती के साथ खड़े हो, और उस कानून से जेल भरने लगे, अदालतों पर बोझा लदने लगे, सैकड़ों बिल्डिंग सील करना पड़े, करोड़ों की संपति को जब्त करना पड़े और उसके बाद भी सैकड़ों की संख्या में लोग मरने लगे तो फिर एक बार रुक कर सोचना पड़ता है.

क्या इस कानून से नीतीश सरकार सिर्फ अपने नंबर बढ़ा रही है?

अब हम आपको वक्त में थोड़ा पीछे लेकर चलते है. बिहार में शराब के जीवन-यापन की बात करें तो 2002 से 2003 के पहले बिहार में शराब अपने बचपने में खेल-कूद रहा था. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद ही शराब की दुकानें खुलवा कर इसे अचानक से यौवनावस्था में पहुंचा दिया और जब ये वयस्क होने लगा तब 2016 में नीतीश ने इसे अवैध घोषित कर दिया.

सरकारी आँकड़ों की मानें तो बिहार में 2002-03 में शराब की 3,095 दुकानें थीं जो 2013-14 तक बढ़कर 5,467 हो गई. सबसे ज्यादा शराब की दुकानें ग्रामीण क्षेत्रों में खुली जिनकी संख्या 779 से बढ़कर तीन गुनी ज्यादा 2,360 हो गई. नीतीश सरकार ने हर पंचायत में टेंडर दे-दे कर शराब की दुकानें खुलवाई. और जब गांव की अधिकांश आबादी शराब के नशे में डूब चुकी थी तब अप्रैल 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की गई. तो क्यों न कहा जाए कि नीतीश सरकार ने ही लोगों को शराब ने नशे में धकेला.

शराबबंदी कानून के वैज्ञानिक पक्षों को सरकार ने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है. आमतौर पर नशे की हालत में गिरफ्तार लोगों की काउंसलिंग कराई जाती है और उन्हें नशा मुक्ति केंद्र ले जाया जाता है. जबकि बिहार सरकार द्वारा इन सब बातों को दरकिनार कर दिया गया है. इसके विपरीत सरकार द्वारा पूरी व्यवस्था शराब ढूँढने और उससे उगाही करने में लगा दी गई है. ऐसे हालत में सवाल उठना तो लाज़मी है कि आखिर बिहार में शराबबंदी कानून कितनी जायज है? और सरकार कितनी सफल?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *