केन्द्र में किसी एक विचारधारा या एक पार्टी के प्रभुत्व के कारण देश में उत्पन्न खतरे का मूल्यांकन

किसी भी पार्टी की सरकार को लम्बे समय तक सत्ता में रहने के बाद उसमें निरंकुशता और जनविरोधी प्रवृत्तियाँ बढ़ने लगती है. सरकार के नुमाइंदे अपने आपको सर्वेसर्वा समझने लगते हैं. उनको लगता है कि जनता को प्रलोभन और लालच देकर दुबारा से सत्ता हासिल किया जा सकता है और पिछले कई सालों से ये प्रवृत्तियाँ देखी जा रही है.

हर पांच साल पर बदले सरकार

इसलिए जनता को चाहिए कि हर पांच साल बाद सरकार को बदलने का काम करे तभी हम लोकतांत्रिक मूल्यों को बचा पाएंगे.
अगर एक ही पार्टी की सरकार बार बार बनती है तो कालान्तर में वह आत्मकेंद्रित हो जाती है या किसी खास विचारधारा को देश पर थोपने की कोशिश करने लगती है.

हम विगत कई सालों से यह देख रहे हैं. वर्तमान सरकार कॉरपोरेटपरस्त सरकार है और यह पूंजीपति वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों को तोड़ने का काम कर रही है. देश में संविधानिक मूल्यों को पूरी तरह से बर्बाद करने का काम वर्तमान सरकार के द्वारा किया जा रहा है.

बैंक मर्जर, नोटबन्दी,जीएसटी जैसे कानून बनने के बाद अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो चुकी है. जनता को गुमराह करने के लिए संचार माध्यमों के जरिए झूठे प्रचार और प्रोपगेंडा का सहारा लिया जा रहा है.

देश में अराजकता का माहौल

कोविड महामारी के दौरान भी वर्तमान सरकार की नाकामी की वजह से बहुत सारे लोगो की जान चली गई. अब मुआवजा देने की बात को सरकार पूरी तरह से खारिज कर दी है.

दूसरी बात ये है कि कोविड महामारी की वजह से लगभग शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर दिया गया है. समय पर सत्र पूरा नही हो पाया है. छात्र असमंजस की स्थिति में है. यूनिवर्सिटी से कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही है.पठन पाठन का कार्य जैसे तैसे पूरा किया जा रहा है.


देश मे महँगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, लूट खसोट,चोरी,मर्डर, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है पर सरकार धर्म और जाति में लोगो को उलझाए हुए हैं.

देश में चारो तरफ अराजकता का माहौल बना हुआ है. पढ़े लिखे युवाओं के सपने टूट रहे हैं. रोजी रोटी की समस्या आम हो गई है. जब युवा अपने रोजगार के लिए सरकार से बातचीत करना चाहते हैं तो बदले में सरकार द्वारा पुलिसिया दमन किया जाता है.

युवाओं को किस बात की सजा?

आखिरकार युवाओं को किस गुनाह की सजा मिल रही है. एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी गई सरकार से यह उम्मीद नहीं थी. देश पूरी तरह से फासीवादियों के हाथ में चला गया है. ये अपने और कॉर्पोरेट दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार है. देश की सारी सरकारी परिसंपत्तियों को औने पौने दामों पर बेचकर निजीकरण का रास्ता अख्तियार किया जा रहा है.

वर्तमान सरकार द्वारा सारी जनविरोधी नीतियों को धीरे धीरे देश तथा राज्यों पर थोपने का काम किया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश की जनता ने लोकतन्त्र के ताकत को दिखा दिया है. वहाँ पर हुए उपचुनाव में भाजपा हार गई है और उसी का असर है पेट्रोल और डीजल के दामों में कटौती होना. अब एक बार यूपी की जनता अपने ताकत को दिखा दे तो रहा सहा घमंड भी चकनाचूर हो जाएगा.

भाजपा लोकतन्त्र का आड़ लेकर सत्ता में आई और धीरे धीरे तानाशाही देश पर हावी होती गई. देश मे चारो तरफ अफरा तफ़री और कुव्यवस्था का आलम है. अराजकता सीमा से बाहर है.  

सरकार की कॉरपोरेट से दोस्ती

आज स्थितियाँ ऐसी हो गई है कि पूरे देश मे महंगाई, लूट, भुखमरी, बेरोजगारी चरम सीमा पर है. कॉर्पोरेटपरस्त  भाजपा सरकार अपने पूंजीपति/ कॉरपोरेट दोस्तों को फायदा पहुँचाने के लिए तमाम ऐसे नीतिगत फैसले ले रही है जिसका असर देश,राज्य,समाज और परिवार पर पड़ रहा है. भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश मे निजीकरण बेरोजगारी जैसी समस्या का हल नहीं हो सकता है.

तमाम सरकारी संस्थाओं को बेचकर कौन सा विकास किया जा रहा है ये हम पूरी तरह से समझ रहे हैं. देश के लोकतांत्रिक इंफ्रास्ट्रक्चर को बचाने के लिए  इन फासिस्टों को सत्ता से बाहर करना होगा तभी सही मायनों में संविधान की रक्षा कर पाएंगे.


इसलिए देश की जनता को हर हाल में संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए हर पांच साल में सरकार को बदल देने का निर्णय लिया जाना चाहिए.

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