दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अभिनव प्रयोग और आंशिक सफलता के बाद महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तो ख्याति पा ही चुके थे, साथ ही भारत में उभर रहे आज़ादी के राष्ट्रीय आंदोलन में जिस एक राष्ट्रीय शख्सियत की कमी महसूस की जा रही थी, वह भी पूरा होता दिख रहा था. चम्पारण भारतीय सत्याग्रह की पहली प्रयोगभूमि बनी.
गाँधी जी के सत्याग्रह के इस नितांत भारतीय प्रयोग ने उत्पीड़ित किसानों के आंदोलन को एक राष्ट्रीय स्वरुप प्रदान किया. यह गौर करने लायक तथ्य है कि 1915 में स्थापित साबरमती आश्रम में शामिल शरुआती 25 नवजात गांधीवादियों में से 13 तमिलनाडु के थे. किसी भारतीय नेता पर यह एक राष्ट्रीय स्वीकार्यता की मुहर भी कही जा सकती है और गांधी जी ने इसका बेहतर इस्तेमाल भी किया.
एमर्सन, थोरो और टॉलस्टॉय के विचारो के प्रभाव को गांधी जी ने अपने मौलिक प्रयोगों और विचार से मिलाकर एक ऐसे आंदोलन की रूपरेखा सुनिश्चित की जिससे महज़ कुछ लोगों के हाथ में सिमटा अभिजन राष्ट्रवाद आम गरीब, मजलूम जनता का राष्ट्रवाद बन गया. परिवर्तन का यह भ्रूण बिहार के चम्पारण में ही निषेचित हुआ. इस सत्याग्रह से पहले भी चम्पारण में किसानों के असंतोष का लंबा इतिहास रहा है.
चम्पारण का सत्याग्रह उस लॉन्च पैड की तरह साबित हुआ इससे छोटे शहरों के बौद्धिक, मसलन राजेंद्र प्रसाद, ए. एन. सिन्हा और जे. बी. कृपलानी जैसे नेता उभरे, जिन्होंने आगे चलकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी भूमिकाएं निभाईं. इतिहासकार जूडिथ ब्राउन ने इन्हे आकार ले रहे गांधीवाद का ‘सब-कॉन्ट्रैक्टर’ कहा है जो इस नए विचार को गली-मोहल्लों और मुख्यधारा से दूर प्रसारित कर रहे थे.
इस सत्याग्रह में हमें स्थानीय स्तर के धनी और माध्यम वर्गीय किसानों की भूमिका भी देखनी होगी. राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ जाकर गाँधी को चम्पारण आने का आग्रह किया था. हांलांकि गांधी जी को अंग्रेजी प्रशासन द्वारा कहा गया कि वह चम्पारण ना आएं, जिसकी उन्होंने अवज्ञा की और उन पर मुकदमा दर्ज़ हुआ. जुलाई 1917 में गांधी ने ओपन इन्क्वायरी शुरू की, जिसमें 25,000 से अधिक किसानों ने अपना बयान दर्ज़ किया. यह सत्याग्रह तिनकठिया जैसे काले क़ानून की ताबूत पर आखिरी कील साबित हुआ और इसे वापस ले लिया गया.
इस आंदोलन की सफलता ने भौतिक नतीजों के साथ ही भारतीय मानस में बड़े स्तर का मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का काम किया. राष्ट्रीय राजनीति में अहिंसात्मक सत्याग्रह को नैतिक उपकरण के रूप में चम्पारण से ही पहचान मिली, जिसका प्रभाव हमारे देश में ना सिर्फ आज़ादी मिलने तक रहा बल्कि आज भी यह हमें प्रेरणा देता है और भविष्य के कठिन रास्तों पर बढ़ने की रौशनी बिखेरता है.
ये लेखक के अपने विचार है.