यह विलक्षण घटना 21 मार्च, 1947 को घटी थी. उस वक्त गांधी जी पटना के मसौढ़ी में थे और वे वहां के ग्रामीण इलाकों में घूम-घूमकर लोगों को सांप्रदायिक तनाव खत्म करने के लिए समझा रहे थे. तभी उन्हें यह सुखद खबर मिली.
दरअसल अक्तूबर-नवंबर, 1947 में बिहार में भीषण सांप्रदायिक दंगा फैला था. यह दंगा बंगाल के नोआखली में हुए भीषण रक्तपात की प्रतिक्रिया में हुआ था. जब गांधी जी दिल्ली से नोआखली जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्हें बिहार में भी दंगा होने की खबर मिली. इस खबर से उनका मन काफी उदास हो गया. वे बिहार के लोगों को अपना मानते थे, चंपारण में सत्याग्रह की शुरुआत करने की वजह से वे इसे भारत में अपनी पहली कर्मभूमि भी कहते थे. वे कहते थे कि बिहार के लोग काफी भोले और सीधे होते हैं. वे रामायण की भूमि के हैं, इसलिए वे कितने भी बुरे हों, उनके मन में उस पवित्र ग्रंथ की ध्वनियां गूंजती रहती हैं। इसलिए उनके लिए यह निराश करने वाली खबर थी.
उन दंगों में पांच हजार से अधिक लोगों की हत्या हुई थी और हजारों लोगों को अपने घर छोड़कर लंबे समय तक रिलीफ कैंपों में रहना पड़ा था.
उन्होंने बिहार के दंगो को रोकने के लिए अपील जारी की, आधे दिन के उपवास का सिलसिला शुरू किया. मगर दोनों उपाय बेअसर रहे. आखिरकार यहां पीस मिशन चलाने के लिए पांच मार्च, 1947 को वे पटना आये. गांधी की इस यात्रा ने बिहार के लोगों का दिल बदल दिया.

तसवीर – बिहार स्टेट आर्काइव से साभार
उन्होंने अपनी प्रार्थना सभाओं में बार-बार अपील की कि आपने जो पाप किया है, उसका प्रायश्चित यही है कि अपराधी सामने आयें और अपने पापों का खुले रूप में स्वीकार करें, प्रायश्चित स्वरूप अपने लिए दंड की मांग करें. लोग पीड़ितों को भरोसा दिलायें कि वे अपने घर लौट जायें. गांव के लोग उनके सुरक्षा की गारंटी लें.
उनकी अपील के असर डालना शुरू किया. लोग पत्र लिखकर गांधी से अपने कर्मों के लिए क्षमा मांगने लगे. कई लोगों ने उन्हें गुमनाम पत्र लिखे. बीस मार्च को मसौढ़ी में हुई प्रार्थना सभा में उन्होंने अपील की कि मेरे पास बहुत सारे हिंदू भाइयों के पत्र आने लगे हैं, उन्होंने माफी मांगी है. इसी तरह मुसलमान भाईयों के भी पत्र आये हैं कि उन्हें हिंदुओं ने बचाया. कल एक हजार का चंदा रेजगारी में हुआ, चंदे के पैसों को गिनने में इस लड़की(मनु बेन) को किसी रात एक या डेढ़ तक बज जाता है. इन सबके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं.
परंतु मैं तभी खुश होऊंगा, जो लोग पैसे देने के लिए होड़ करते हैं, वे कुदाली और फावड़ा लेकर गांवों से मलबे को हटायें, फिर से रहने लायक झोपड़ों को तैयार करें. बरबाद परिवार को फिर से बसायें.
गांधी जी की इस अपील का भी असर हुआ. उनके निर्देशन में आइएनए के मेजर जनरल शाहनवाज जिस गांव में काम करते थे, वहां एक पंचायत का गठन हुआ. वे लोग पटना आकर राहत शिविरों से अपने गांव के पीड़ितों को वापस ले गये. उन्हें सुरक्षा की गारंटी दी. जब शाहनवाज वहां रिलीफ बांटने पहुंचे तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि यह हमारे लिए शर्म की बात होगी कि हमारे गांव के अपने भाईयों की मदद रिलीफ से हो. हम इनके खाने-पीने का इंतजाम करेंगे.
इसी सिलसिल में सबसे महत्वपूर्ण घटना तब हुई जब दंगों के लिए नामित 50 लोग, जिनकी विभिन्न मामलों में तलाश हो रही थी और वे पुलिस को मिल नहीं रहे थे, उन लोगों ने थाने जाकर आत्मसमर्पण कर दिया. यह गांधी के बिहार पीस मिशन की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी. उसी शाम थालपुर गांव में प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा- आज सुबह जिन पचास लोगों ने थाने जाकर आत्मसमर्पण किया उन्हें खूब बधाई. उन्हें मैं निर्भय रहने कहता हूं. साथ ही मेरा यह भी कहना है कि जिन्हें अफसरों के सामे हाजिर होने में डर लगता है, वे मेरे, खान साहब(अब्दुल गफ्फार खान) या जनरल शाहनवाज के पास जब चाहे आकर बात कर सकते हैं.
ये लेखक के अपने विचार हैं
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बहुत यादगार विवरण है,जिसे आज के महानतम शासकों को पढ़ना चाहिए