कब तक मंडराते रहेंगे भारत पर आतंक के बादल?

भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय से लेकर आजतक एक भी दिन ऐसा नहीं बीता है जब भारतवासियों और पाकिस्तान वासियों के कानों में किसी के मौत की खबर नहीं गई हो. ब्रिटेन के द्वारा डाले गए इस दरार का असर आज तक कम नहीं हुआ है. दोनों दलों के बीच एक छोटा ही सही मगर समझौता होने के बावजूद भी शांति नहीं है. आए दिन हमें दोनों देशों के सैनिकों के बलिदान की झांकी मिलते रहती है.

11 अक्टूबर 2021 को कश्मीर के पूंछ जिले में 5 फौजियों की हत्या एक मुठभेड़ (एनकाउंटर) के दौरान हो गई. इसमें 4 फौजी और एक जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) थे. नायब सूबेदार जसविंदर सिंह, नायक मनदीप सिंह विल, सिपाही गज्जन सिंह, सिपाही सराज सिंह और सिपाही वैशाख एच., उन पांच सिपाहियों के नाम हैं जिन्हें अपनी जान का बलिदान आतंकियों के खिलाफ देना पड़ा. सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र आनंद के मुताबिक मुठभेड़ अभी भी जारी ही है. यह मुठभेड़ तब शुरू हुआ जब भारतीय सेना ने खुफिया जानकारी के अनुसार डीकेजी के पास सुरनकोट क्षेत्र मेें घेरे लगा रहे थे. अब ये तो ज़ाहिर सी बात है कि अगर किसी देश के लोगों को अपने देश पर ख़तरा दिख रहा है तो वे उसे बचाने के लिए अपने तरफ़ से बखूबी प्रयास करेंगे. मगर इसी में अगर लड़ाई हो जाये और लोगों की मौत हो तो नुकसान दोनों तरफ झेलना पड़ता है.

कारगिल युद्ध से लेकर पुलवामा अटैक, उरी से लेकर आजतक,  भारत और पाकिस्तान ने ना जाने कितने युद्ध देखें होंगे और इन युद्धों के कारण दोनों पक्षों का कितना नुकसान हुआ होगा, इसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. हो सकता है कई समझौते भी इस बीच किए गए होंगे, मगर कुछ भी करने से इन दोनों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. या तो दोनों देश समझौता संपन्न करना नहीं चाहते या फिर इनके बीच एक बहुत बड़ी गलतफ़हमी है जो खत्म होने का नाम नहीं लेती. बहुत सारे देशों के समक्ष युद्ध होते हैं. वे लड़ते हैं झगड़ते हैं और कुछ दिनों में शांत हो जाते हैं. लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच का युद्ध ऐसा है कि लगातार बढ़ते जा रहा है और घातक होते जा रहा है.

भारत के बेटे हर रोज अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता. जब तक दोनों देशों के बीच एक शांत बैठक और बातचीत नहीं होगी, मिल-जुल कर नाज़ुक मामलों पर विचार विमर्श नहीं होगी, और दोनों पक्षों के लोगों के दिमाग से ‘दुश्मनी’ शब्द को हटाया नहीं जाएगा, तब तक स्थिति में बेहतरी और देशों में विकास नहीं हो पाएगा. इस गरमा-गर्मी के कारण दोनों देशों की राजनीतिक, अर्थतंत्र और भौगोलिक संरचना पर बहुत असर हो रहा है और इसे खत्म करने की सख्त आवश्यकता है.

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