एक आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में जनता वंशवाद को नहीं, बल्कि स्व-अर्जित योग्यता आधारित समाजिक राजनीतिक व्यवस्था को पसंद करे यह स्वाभाविक है.
इस संबंध में मेरे चार ठोस सुझाव हैं:
1.इनहेरिटेंस टैक्स (Inheritance Tax) –
इसे मैं हिन्दुस्तान के विशेष सन्दर्भ में ‘बपौती कर’ कहता हूँ. इसका का समर्थन कीजिए. इसका मतलब है कि जब पूर्वजों से संपत्ति का हस्तांतरण अगली पीढ़ी को होगा तो उसका बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में देना होगा. जितना बड़ा हस्तान्तरण उतना अधिक टैक्स.
(हिन्दुस्तान के कुछ हिस्सों में माता की तरफ से भी वंश चलता है इसलिए बपौती कर पूरी तरह ठीक शब्द नहीं है. फिर भी आधुनकीकरण के साथ तमाम समुदायों में क्रमशः पितृसत्तात्मक समाज की ओर बढ़ने की प्रवृति देखी जा रही है.)
2. छात्र राजनीति
राजनीति में वंशवाद नहीं चाहते हैं तो छात्र राजनीति से चिढ़ना बंद कर दीजिए. एक लोकतांत्रिक देश में नेताओं की अगली पीढ़ी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में तैयार नहीं होगी तो नेताओं की कोठियों में ही तो तैयार होगी.
3. ट्रेड युनियन
ट्रेड युनियन की राजनीति से चिढ़ना बंद कर दीजिए. सिर्फ ग्राम पंचायत आदि से काम नहीं चलेगा, आधुनिक कार्यस्थलों पर भी भावी राजनीतिक नेतृत्व का निर्माण होना चाहिए.
4. सामाजिक आंदोलन
सामाजिक आंदोलनों का स्वागत कीजिए. चाहे वह विस्थापन विरोधी आन्दोलन हो, किसान आन्दोलन हो, पर्यावरण संरक्षण का आन्दोलन हो, स्त्री-समानता के लिए आन्दोलन हो या कोई और आन्दोलन हो. इन आंदोलनों से निकले नेता जब वोट माँगने आएँ तो उन्हें प्राथमिकता दीजिए.
ये कुछ तात्कालिक सुझाव हैं. इससे वंशवादी सत्ता समाप्त तो नहीं हो जाएँगी, लेकिन काफी कम प्रभावी रह जाएँगी.
आगे आपकी मर्जी. भारतीय मध्यवर्ग- खासकर सवर्ण भारतीय मध्यवर्ग वंशवाद के लिए राहुल गाँधी को और राजनीतिक भ्रष्टाचार के लिए सिर्फ लालू यादव को गाली देकर राहत महसूस करता है. अच्छा है. लेकिन यह वैसा ही है जैसा गैस के गम्भीर मरीज का बार-बार इनो (ENO) घोलकर पीना.
ये लेखक के निजी विचार हैं.