रविवार को, फ्रांसीसी प्रकाशन मीडियापार्ट ने बताया कि संदिग्ध अनुबंधों और झूठे चालानों का इस्तेमाल कर रफाल डील में एक बिचौलिए को करीब 64 करोड़ रुपए सीक्रेट कमिशन के तौर पर दिए गए. इसने फ्रांसीसी विमान निर्माता डसॉल्ट एविएशन को भारत को 36 राफेल जेट बेचने का सौदा करने में मदद की.
प्रकाशन ने दावा किया कि भारत के केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को अक्टूबर 2018 में इस बारे में पता था, लेकिन फिर भी उन्होंने इस मसले पर कोई जांच शुरू नहीं की.
2016 में, भारत ने फ्रांस के साथ एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर कर जेट विमानों के लिए 58000 करोड़ रुपये का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी.लेकिन कांग्रेस ने मोदी सरकार पर विमानों के लिए बहुत अधिक राशि भुगतान करने का आरोप लगाया. पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी, जिसका इस क्षेत्र में पहले कोई अनुभव नहीं रहा है ,के स्वामित्व वाली एक रक्षा फर्म को सौदे के तहत एक बड़ा अनुबंध देने में मदद की थी.
मीडियापार्ट ने बताया कि मॉरीशस के अधिकारियों ने भारत की सीबीआई और ईडी को कई दस्तावेज भेजने पर सहमति व्यक्त की थी. दस्तावेजों में अनुबंध चालान और बैंक विवरण शामिल थे. इस तरह भारतीय जासूसों को पता चला कि सुशेन गुप्ता ने भी राफेल सौदे को लेकर दसॉल्ट एविएशन के लिए एक मध्यस्थ के रूप में काम किया था। उनकी मॉरीशस कंपनी इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज को 2007 और 2014 के बीच फ्रांसीसी विमानन फर्म से कम से कम 7.5 मिलियन यूरो प्राप्त हुए.
मीडियापार्ट ने पहले बताया था कि आरोपों से अवगत होने के बावजूद, फ्रांस के वित्त अभियोजक पैरक्वेट नेशनल फाइनेंसर और भारत के प्रवर्तन निदेशालय ने मामले की जांच नहीं की. 14 जून को फ्रांस ने भारत के साथ राफेल सौदे की जांच शुरू की. प्रकाशन ने दावा किया कि इस मामले पर सफाई मांगने पर न तो सीबीआई और न ही ईडी ने स्पष्टीकरण की पेशकश की.