ग्लोबल वार्मिग: सदी की मुख्य समस्या, कारण और बचाव

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान में हुई वृद्धि को वैश्विक तापन/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है. ग्रीनहाउस गैस पृथ्वी से बाहर जाने वाले ताप अर्थात दीर्घतरंगीय विकिरण को अवशोषित कर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा देती हैं, इस प्रक्रिया को ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ कहते हैं.

ग्रीन हाउस गैसों में मुख्यतः कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, ओज़ोन आदि शामिल हैं. ग्लोबल वार्मिंग के कहर से पृथ्वी की सतह का लगातार गर्म होना अब कोई नई बात नहीं रह गई है, बल्कि एक हकीकत बन चुकी है. ग्लोबल वार्मिंग यानी धरती के तापमान में बढ़ोतरी और इसकी वजह से मौसम में बदलाव. इस समस्या को सदी की सबसे बड़ी समस्या कहा जा रहा है और यह भी आशंका जताई जा रही है कि इसके कारण देश के कई हिस्से सूखा और भुखमरी के शिकार हो जाएंगे.

 क्रिश्चियन एड की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से दुनिया को 2020 में अरबों डॉलर की हानि हुई है. इसके साथ ही बाढ़, सुखाड़,तूफान, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और जंगलों में लगी आग ने दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले ली. फिलहाल मानव इतिहास में अब तक का सबसे गर्म साल 2020 को कहा जा रहा है.

यूरोपीय संघ के पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने घोषणा कर दी है कि अल-नीना (एक आवर्ती मौसम की घटना, जिसका वैश्विक तापमान पर ठंडा प्रभाव पड़ता है) के बावजूद 2020 के दौरान असामान्य उच्च तापमान रहे और 2020 सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया पर मौसम के तेवर बता रहे हैं कि 2021 इससे बाजी मार ले जाएगा.

यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति की निरंतरता की पुष्टि करती है, पिछले छह वर्ष लगातार रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहे हैं. यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए देशों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है, जो मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं.

वैश्विक तापन बढ़ने से संभावित परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं –

1. ग्लेशियरों का पिघलना –

ताप बढ़ने से ग्लेशियर पिघलने लगते हैं और उनका आकार कम होने लगता है और ग्लेशियर पीछे हटने लगते हैं।

2. समुद्री जलस्तर में वृद्धि –

ग्लेशियरों के पिघलने से प्राप्त जल जब सागरों में मिलता है तो समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो जाती है.

नदियों में बाढ़- ग्लेशियरों से कई बारहमासी नदियां निकलती है और ग्लेशियर के जल को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं. यदि ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ जाएगी तो नदी में जल की मात्रा बढ़ जाएगी जो कि बाढ़ का कारण बन सकती है.

3. वर्षा-प्रतिरूप में परिवर्तन –

वर्षा होने और बादलों के बनने में तापमान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अतः ताप में वृद्धि के कारण वर्षा-प्रतिरूप या पैटर्न भी बदल जाएगा अर्थात कहीं वर्षा पहले से कम होगी तो कहीं पहले से ज्यादा होने लगेगी. वर्षा की अवधि में भी बदलाव आ जाएगा.

4. प्रवाल भित्ति का विनाश –

समुद्री-जल के ताप बढ़ने से प्रवाल भित्ति का विनाश होने लगता है. वर्तमान में लगभग एक तिहाई प्रवाल भित्तियों का अस्तित्व ताप वृद्धि के कारण संकट में पड़ गया है.

5. समुद्री-जल के ताप बढ़ने से प्लैंकटन का विनाश –

समुद्री-जल के ताप बढ़ने से प्लैंकटन का विनाश होने लगता है. प्लैंकटन समुद्री जल प्राथमिक जीव हैं. अल्युशियन द्वीप का पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें व्हेल, समुद्री शेर, मछलियाँ, सी अर्चिन आदि अन्य जलीय जीव शामिल हैं, अब प्लैंकटन की कमी के कारण सिकुड़ गया है.

6. प्रवसन में वृद्धि:

ताप में वृद्धि होने से सागरीय जलस्तर ऊपर उठेगा तो तटीय क्षेत्र व द्वीप जलमग्न हो जाएंगे और तटीय क्षेत्र के निवासी आंतरिक भागों की ओर प्रवास करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.

ग्लोबल वार्मिंग कम करने के उपाय –

  1. CO2 का स्तर कम किया जाए
  2. विभिन्न माध्यमों से कूड़ा-करकट कम करें
  3. बिजली के उपकरणों के अनावश्यक प्रयोग से बचें
  4. वनों का संरक्षण करें
  5. आम बल्बों के स्थान पर सीएफएल का प्रयोग करें
  6. वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया जाए
  7. ऑक्सीजन के लिए वनों का बचाव आवश्यक

आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि समस्त विश्व के पास ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए मात्र 10 वर्ष का समय और है. यदि ऐसा नहीं होता है तो समस्त विश्व को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा. कुछ वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि वैश्विक तापन से पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की गति में लगातार कमी होती जा रही है.

निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा सकता है कि पर्यावरण से सम्बद्ध किसी समस्या को हल करने में वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों को आमतौर पर वर्षों लग जाते हैं, फिर भी समाधान आंशिक ही निकल पाता है और कभी-कभी तो किसी सिद्धान्त के विकास, उसे लागू करने और उसके इस्तेमाल में कई दशक लग जाते हैं.

दूसरी ओर समाज लगातार पर्यावरण सम्बन्धी नयी समस्याएँ चिन्ताजनक ढंग से पैदा करता रहता है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के बारे में वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी विषयक अनुसंधान के प्रति बढ़ती जागरुकता के बावजूद उसके वांछित परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं.

हमें खुद को भी जागरूक करना होगा तथा साथ ही साथ लोगों को भी जागरूक करना पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर भी सभी देशों को इस समस्या के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा.

ये लेखक के निजी विचार है.

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