शराबबंदी वाले बिहार में बीते तीन दिनों के दरम्यान जहरीली शराब पीने से 28 लोगों की मौत हो चुकी है. गोपालगंज में बुधवार को आठ लोगों की मौत की खबर अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि गुरुवार से शुक्रवार के बीच और 15 लोगों की मौत हो गई. घटना के बाद से इलाके में हड़कंप मच गई है.
हालिया दिनों में बिहार में पंचायत चुनाव की वजह से शराब की डिमांड बढ़ी. इस वजह से शराब माफिया ने ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए शराब में स्प्रिट की मात्रा बढ़ा दी. पंचायत चुनाव की वोटिंग से ठीक पहले यहां शराब बांटी गई थी. इस ज़हरीली शराब को पीने से कई लोगों की मौत हो गई और कई अब भी अस्पताल में भर्ती है. ऐसे में प्रशासन की लापरवाही और शराबबंदी का ज़मीनी स्तर पर शून्य होना साफ साफ देखा जा सकता है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ बिहार में 5 अप्रैल 2016 को शराबबंदी हुई थी. उस समय बिहार सरकार को तकरीबन 3300 करोड़ के राजस्व की हानि हुई थी. बिहार सरकार द्वारा शराबबंदी को एक कड़े कदम की तरह लिया गया फैसला माना गया. लेकिन ज़मीनी स्तर पर शराबबंदी अब भी एक बड़ा सवाल है.
साल 2016 से अब तक 128 लोगों की मौत जहरीली शराब से हो चुकी है. इस साल जनवरी से अब तक 93 लोगों की मौत हो चुकी है.
शराबबंदी से 2020 तक इस मामले में 35 लोगों की मौत हुई थी जबकि बीते 48 घंटों में ही 23 लोगों की इससे मौत हो चुकी है. साथ ही 14 लोगों की स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है. ये आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि किस प्रकार बिहार प्रशासन शराबबंदी को लेकर अपनी उदासीनता दिखाता आ रहा है. इस वजह से शराब माफिया का एकाधिकार कायम हो गया है.
जहां एक ओर बिहार में शराब माफिया को रोकने में बिहार सरकार पूरी तरह से नाकामयाब साबित हो रही है. वहीं दूसरी ओर शराब से होने वाली मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है. इस विषय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार के ज्यादातर लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो गड़बड़ी कर रहे हैं. वहीं विपक्ष शराबबंदी को बड़ा फ्लाप बताते हुए सरकार पर हमला करने से चूक नहीं रही.