वैश्विक स्तर पर पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. भारत में भूमि जल की कमी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि विशेषज्ञों के मुताबिक हम अगले 10 साल में चीन से आगे निकल जाएंगे. भारत की लगभग 80% आबादी भूमि जल पर निर्भर है. लेकिन वर्तमान में, भारतीय आबादी का एक तिहाई हिस्सा पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रह रहा है, जिसके भविष्य में और बढ़ने की उम्मीद है.
मानवीय गतिविधियाँ, इंडस्ट्रियल वेस्ट के अलावा वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज हो रहा है. धरती दिन पर दिन सूखती जा रही है और यदि हम एक बार आंकड़ो पर नज़र डाले तो इस संकट का एक अलग परिप्रेक्ष्य सामने आता है.
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय संसाधन मूल्यांकन केंद्र की रिपोर्ट से पता चलता है कि कुल आबादी के लगभग आधे हिस्से के लिए भूमि जल ही पीने के पानी का मुख्य स्रोत है. विश्व स्तर पर उपलब्ध भूमि जल का 67% सिंचाई और खाद्य उत्पादन, 22% घरेलू उद्देश्य और शेष 11% इंडस्ट्रीज में उपयोग होता है. लेकिन पृथ्वी पर ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां पीने का पानी या ताजा पानी नहीं है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लाखों लोग पानी और स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए पीड़ित हैं. कुल आबादी के 23% के पास पीने के पानी की सुविधा नहीं है.
कम विकसित देशों में 74% ग्रामीण आबादी सुरक्षित पीने के पानी के अभाव में जी रही है. भारत में भी जल संसाधनों की कमी बहुत तेजी से बढ़ रही है. एक कृषि प्रधान देश होने के कारण, भूमि जल भारत में सिंचाई और खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
विश्व संसाधन संस्थानों का उल्लेख है कि भारत दुनिया के उन 17 देशों में से एक है जो उच्च जल तनाव की स्थिति से गुजर रहा है. पांचवीं लघु सिंचाई जनगणना के अनुसार 2007 और 2017 के बीच भारत में भूमि जल स्तर में 61 फीसदी की गिरावट आई है. इससे स्पष्ट है कि सिंचाई का सीधा प्रभाव भूजल पर पड़ रहा है.
यह सब देखकर हम कह सकते हैं कि भूजल प्रबंधन के लिए तत्काल नीतियों की जरूरत है. हालांकि भारत सरकार कई कदम उठा रही है, लेकिन इसमें तेजी लाने की जरूरत है. एक नागरिक के रूप में हमें भी जागरूकता फैलानी चाहिए और भूमि जल की कमी को रोकने के लिए स्वयं भी काम करना चाहिए.
भूमि जल के दोहन को रोकना महत्वपूर्ण है ताकि हमारे देश के विकास पर इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से बचा जा सके.