नई दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम’ के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिए सभी राज्यों के प्रधान सचिवों की बैठक बुलाने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि एक जुलाई, 2022 तक देश में घरेलू हिंसा के 4.71 लाख से अधिक मामले लंबित थे। उच्चतम न्यायालय ने अधिनियम के तहत संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि उसके सामने प्रस्तुत समग्र तस्वीर ”निराशाजनक” है।
न्यायमूर्ति एस. आर. भट और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि एक जिले के लिए ऐसे एक अधिकारी का होना पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि उनमें से प्रत्येक लगभग 500-600 मामलों से निपटेगा।
प्रताड़ित महिलाओं को प्रभावी कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए देशभर में पर्याप्त बुनियादी ढांचे के अनुरोध संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने शुक्रवार को कहा, ”इन परिस्थितियों में, यह जरूरी होगा कि भारत सरकार इस पहलू पर गहनता से विचार करे।”
उच्चतम न्यायालय ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को इस मुद्दे से निपटने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रधान सचिवों की बैठक बुलाने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि बैठक में वित्त, गृह और सामाजिक न्याय मंत्रालयों के सचिवों और राष्ट्रीय महिला आयोग तथा राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के अध्यक्षों के नामितों को भी भाग लेना चाहिए। पहली बैठक तीन सप्ताह के भीतर बुलाई जानी चाहिए।
पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि एक एकीकृत महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम ‘मिशन शक्ति’ के कार्यान्वयन के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट भी रिकॉर्ड पर रखी जाए।
पीठ ने पाया कि शीर्ष अदालत के पहले के आदेश के अनुसरण में नालसा द्वारा एक अध्ययन किया गया था, जिसमें संकेत दिया गया था कि अधिनियम के तहत दर्ज 4.71 लाख से अधिक मामले एक जुलाई, 2022 तक देश में लंबित थे। पीठ ने मामले को सुनवाई के लिए आठ सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया।