ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने साल 2021 के आंकड़े जारी किए है. विश्व गुरु भारत दुनिया में भूखा राष्ट्र बन कर उभरा है. दुनिया के 116 भूखे देशों में भारत का स्थान 101वां है.
पिछले वर्ष भारत इस सूची में 94वें नंबर पर था. सवाल उठेंगे और जवाब देने वाले भी अपने आंकडे़ दुरुस्त करने में लगे होंगे. लेकिन क्या आज़ादी के पचहत्तरवें साल में जब सरकार अमृत महोत्सव मनाने में लगी है, ये आंकड़े देश में अब तक की सभी सरकारों के लिये डूब मरने के समान है !
बहरहाल, ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने 135 देशों के आंकड़े जुटाए. 116 देशों के आंकड़े को जारी किया है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स के वेबसाईट पर लिखा है कि दूसरे देशों के पर्याप्त और जरूरी आंकड़े उपलब्ध नहीं होने के चलते उन देशों को इस सूची में शामिल नहीं किया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह दुनिया में भारत का नाम ऊँचा करने का दावा किया है ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़े उन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तमाम दावों की धज्जियां उड़ा दी है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की सूची में ऐसे 47 देशों की सूची तैयार की गयी है, जहाँ के नागरिकों को एक वक्त का भोजन बहुत मुश्किल से मिल रहा है.
ग़रीबी हटाओ का नारा आज से पचास साल पहले दिया गया था, लेकिन आज भी कोरोना जैसी महामारी होने पर देश के करोड़ों लोगों को खाने के लाले पड़ गये. देश की सरकार उनको मुफ़्त अनाज देने का ढिंढोरा पीट रही है. प्रधानमंत्री की तस्वीर लगे झोले के अनावरण से लेकर ‘गरीब सम्मान समारोह’ का फ़ीता काटने में पार्टी नेता, कैबिनेट मंत्री और कार्यकर्ता व्यस्त हैं. कार्यकर्ता व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से लेकर चौक चौराहे तक में शेखी बघारने में लगे हैं.
ऐसा भारत में ही हो सकता है, क्योंकि बहुसंख्यक यहॉ सर्कस के ज़मूरे हैं, जो बस ढोल बजते ही ताल पर झूमने लगते हैं. इस देश की सरकारें कभी भी भूख से हुई मौत को स्वीकार नहीं करती हैं. रोज़ी रोटी का साधन एकाएक ख़त्म होने पर सैंकड़ों किलोमीटर पैदल भूखे बच्चों और बीमार परिजनों के साथ अपने घर लौटने की जद्दोजहद करते लाचार लोग भी इस सरकार को नहीं दिखते हैं.
कुछ ही दिनों बाद पचासी करोड़ लोगों को मुफ़्त अनाज देने के सरकार के वादे का प्रधान सेवक के मुस्कुराते चेहरे के साथ फ़ुल स्केप होर्डिंग मुल्क के सभी प्रमुख चौक चौराहों पर दिखने लगता है.
इस वर्ष के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत Child Wasting Index (बाल निर्बलता सूचकांक) में दुनिया में सबसे आगे ( ख़राब) है. ये क्रम पिछले एक दशक से भी ज़्यादा समय से जारी है. 2011 में जहां ये 16.5 फ़ीसदी था, वहीं 2019 में ये बढ़ कर 20.8 फ़ीसदी हो गया, अर्थात् नौ वर्षों में 4.3 फ़ीसदी बढ़ गया. इस साल भी ये दुनिया में सबसे ज़्यादा है.
सौ में से नब्बे से ज़्यादा बच्चों का शारीरिक ग्रोथ मानक से कम हो रहा है, जो शारीरिक बीमारियों और कुपोषण के कारण है. ये संख्या कम की जा सकती है अगर स्वास्थ्य और पोषण की सुविधाओं का लाभ सभी के लिये समान रूप से उपलब्ध हों.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स को चार मानकों पर तैयार किया जाता है – पर्याप्त पोषण का अभाव (undernourishment), शिशु निर्बलता(child wasting index), शिशु बौनापन (child stunting) और शिशु मृत्यु दर (infant mortality rate)।इनमें से भारत शिशु निर्बलता में पिछले कई सालों से सबसे अव्वल है. ये हाल तब है जब सरकार आरोग्य मिशन और पोषण के कई कार्यक्रम शुरू करने और उनके सफल होने का स्वयं श्रेय लेने में लगी है.
देश का ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2012 में 28.8 से 2021 में 27.5 पर आया है, मतलब दस साल में 1.3 अंकों की मामूली कमी जबकि ये 2000 में 38.8, 2006 में 37.4 से घटकर 2012 में 28.8 हो गया.
इस लिहाज़ से 2006 से 2012 का समय सबसे सुकूनदायक था जब इसमें 8.6 अंकों की गिरावट आयी. ये वो समय था जब मनरेगा जैसी सफल और गरीबोन्मुखी योजना लागू हुई थी और देश के एक बड़े हिस्से को अपने घर में ही काम मिला था. लेकिन हमें याद है कि कैसे 2014 में सरकार बदलने पर प्रधानमंत्री ने संसद में मनरेगा को असफलता का स्मारक कहकर स्वतंत्र भारत की सबसे सफल योजना का मज़ाक़ उड़ाया था. सत्ताधारी आज ग्लोबल हंगर इंडेक्स की इस रिपोर्ट का भी मज़ाक़ उड़ायेंगे और इसे देश के ख़िलाफ़ साज़िश तक बता देंगे लेकिन देश का जो माखौल पूरी दुनिया में उड़ रहा है उसका कौन जवाबदेह होगा ?
दुनिया में ग़रीबी से लड़ने की कई सुखद कहानियाँ भी हैं. इसमें बांग्लादेश का उदाहरण हमारे सामने है, जहां का ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2012 के 28.6 से घटकर 2021 में 19.1 अंक हो गया है. दस सालो में में एक तिहाई घट गयी. आख़िर हम ऐसी सरलता के हक़दार क्यों नहीं हैं ? मुझे लगता है इसका उत्तर हमें अपने वोट में खोजना होगा, जब हम ये सोच कर वोट दे आते हैं कि पड़ोस के अब्दुल के घर के बाहर चार लड़के रोज़ भगवान का जयघोष और उसकी कौम को गाली देकर चले आते हैं, और ऐसा प्रधान सेवक के प्रताप से ही हो रहा है.
दुनिया में इस साल 116 देशों के आकड़ें दुनिया में ग़रीबी और कुपोषण ख़त्म करने वाले जर्मनी के संगठन Deutsche Welthungerlife e. V. और आइरिश संस्थान Concern Worldwide को प्राप्त हुए थे जिनके आधार पे ऊपर लिखे चार मानकों पे ये निष्कर्ष निकाला गया है. इन्हीं आकड़ों से ये भी सामने आया है कि दुनिया के चौदह देशों ने अपने इंडेक्स पच्चीस फ़ीसदी ये उससे ज़्यादा प्रतिशत से सुधारा है. आज दुनिया के 116 में से 50 देशों का जीएचआइ (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) 10 से कम है, 31 देशों का 10 से 20 के बीच है, जबकि भारत समेत सैंतीस देश 20 से 34.9 के बीच है. जिसमें अफ़्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के ज़्यादातर देश शामिल हैं. हमारे पड़ोसी देशों में बस अफ़ग़ानिस्तान हमसे पीछे (103वें स्थान) पर है। बाक़ी देशों में श्रीलंका 65वें, बांग्लादेश और नेपाल 76वें और पाकिस्तान 92वें नम्बर पर है.
सरकार बहादुर की दिलचस्प बहानेबाज़ी बस सभी चैनलों पे आने वाली है. ऐसे वक्त में अनवर देहलवी का ये शेर मौजू है-
‘किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
मेरी तरफ़ तो देखिये सरकार क्या हुआ.’
लेखक कवि हैं और ये उनके निजी विचार है.
इसे भी पढ़ें - 116 देशों में भारत का भुखमरी में 101वां स्थान, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी पीछे
अवश्यक है कि झूठ के शोर में दबे सच से देश को रूबरू कराया जाय। आवश्यक आलेख।