भारत असमानताओं वाले देशों में शीर्ष स्थान पर है: वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2022

भारतीय संविधान में उल्लिखित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य को यह जवाबदेही देते हैं कि वह अपनी नीतियों से लोगों के कल्याण तथा सुख सुविधाओं का अवसर प्रदान करे और आय की असमानताओं को कम करे लेकिन आज स्थिति यह है कि आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी असमानताओं की दृष्टि से भारत दुनिया के सबसे अधिक असमानता वाले देशों में शीर्ष स्थान पर है. इसे वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब, पेरिस द्वारा हाल ही में जारी वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट-2022 में देखा जा सकता है.

रिपोर्ट-2022 में यह बात सामने आयी है कि भारत विश्व के उन देशों में अग्रणी है, जहां सबसे अधिक असमानताएं हैं. भारत में आय असमानता बहुत ही ज्यादा है.यहाँ पर एक तबके के पास अकूत संपति है तो दूसरे तबके के पास इतना भी पैसा नहीं है कि वह अपने लिए थोड़ी सी जमीन खरीद सके.इन असमानताओं में एक वजह भूमि का समुचित वितरण का नहीं होना है.

ऐसा प्रतीत होता है कि आजादी के बाद अभी तक की सभी सरकारों ने इस असमानता को मिटाने के पर्याप्त प्रयास न करके हमारे संविधान को धोखा दिया है.

भूमि पर अधिकार से इंसान की आजीविका, रोजीरोटी,आर्थिक और सामाजिक विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है.भूमिहीन व्यक्ति के लिए सम्मानजनक जीवन जीना लगभग असंभव होता है. आवास का अधिकार संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा में भी शामिल है.मानव जीवन में भूमि के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि मानव इतिहास में लगभग सभी युद्ध भूमि पर अधिकार के लिए लड़े गए हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 17.7 लाख लोग बेघर और 14.43 करोड़ भूमिहीन कृषि श्रमिक हैं. सभी जानते हैं कि इनमे से ज्यादातर अनुसुचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) व गैर अधिसूचित घूमंतू जनजाति समुदायों से संबंधित हैं। ये बेघर/भूमिहीन लोग अपने ही देश में घर/जमीन के मालिक होने के बारे में सोच भी नहीं सकते क्योंकि इस देश की व्यवस्था ने इस जमीन को उनके लिए इतना महंगा बना दिया है कि उनका जीवन जमीन के एक छोटे से टुकड़े से भी सस्ता प्रतीत होता है.

वर्तमान में, सरकार गरीबों को सस्ती आवास प्रदान करने के उद्देश्य से एक योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना चला रही है, जिसके तहत निम्न/मध्यम आय वाले परिवारों को नए निर्माण और मौजूदा घरों आवासों के विस्तार के लिए रियायती आवास ऋण प्रदान किए जाते हैं.

इस योजना के तहत 12 लाख रुपये तक सब्सिडी वाला आवास ऋण दिया जा रहा है लेकिन लगभग सभी शहरों में एक कमरे के फ्लैट की कीमत भी इस राशि से कहीं अधिक है और गांवों में बिना जमीन के कोई इस कर्ज से घर कैसे बना सकता है? 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भूमिहीन लोग इतने गरीब हैं कि वे कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं हैं. सबसे पहले उन्हें जमीन दी जानी चाहिए और अगर सरकार जमीन नहीं दे सकती है तो उन्हें कोई भी संभावित आवास प्रदान किया जाना चाहिए. बिहार सरकार द्वारा भूमिहीन लोगों के लिए जमीन देने की बात की गई थी लेकिन इस योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने में काफी अड़चनों का सामना करना पड़ा और यह योजना भी सफल नहीं हो पाई.

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