धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 2016 से भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश है, पिछले कुछ समय से चंद्रचूड़ काफी चर्चा में दिखाई दे रहे हैं. न्यायाधीश चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी इतिहास में भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्य न्यायाधिश रहे हैं.
चंद्रचूड़ सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश रह चुके है, उसके बाद साल 2000 में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप मे नियुक्त किया गया. वे महाराष्ट्र के न्यायिक अकादमी के न्यायाधिश भी रहे हैं.
चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय संवैधानिक कानून, तुलनात्मक कानून, मानवाधिकार लैंगिक न्याय, वाणिज्य कानून जैसे विषयों पर निर्णय किए हैं.
रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी के जमानत का निर्णय भी न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ही लिखा था जिसमें अर्नब को मुंबई पुलिस द्वारा एक व्यक्ति और उसकी मां की आत्महत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था.
वहीं न्यायधीश ने LGBTQ समुदायों से संबंधित व्यस्को के बीच वैध निजी सहमति से यौन संबंध के निर्णय में भी बयान दिया था कि “भारत वर्तमान में समान-लिंग संबंधों को सामान्य करने की दिशा में परिवर्तन कर रहा है, दुनिया भर के कई देश अभी भी समलैंगिकता के लिए मृत्युदंड का प्रावधान रखते हैं. एक अन्य उदाहरण पर विचार करते हुए, हम ध्यान दे सकते हैं कि भारत द्वारा वर्ष 1971 में गर्भपात को वैध बनाने के चालीस साल बाद अधिकांश लैटिन अमेरिकी देशों ने अभी तक इसे वैध नहीं बनाया है. इसलिए जबकि दुनिया के एक हिस्से के लिए सच्चाई यह होगी कि एक भ्रूण को जीवन का अधिकार माना जाता है फिर भी दूसरे के लिए यह एक झूठा दावा होगा.”
पिछले कई समय से कुछ विज्ञापन अलग-अलग कारणों से रद्द किए गए है या फिर चर्चा में रहे हैं. कहीं धर्म के नाम पर इन विज्ञापनों पर सोशल मिडिया में ट्रोल होना, तो कहीं किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचने के बाद इनपर केस हो जाता है.
इसी बीच कुछ समय पहले “फैब – इंडिया” ने अपने त्योहारी कपड़ों के नए संग्रह ‘जश्न – ए रिवाज’ को लांच किया तो सोशल मीडिया में हडकंप मच गया और जल्द से जल्द इस शीर्षक को रद्द करने की मांग होने लगी क्योंकि लोगों का कहना था कि ब्रांड “अनावश्यक रूप से धर्मों को फैलाने की कोशिश कर रहा है. यह एक हिंदू त्योहार पर एक धर्मनिरपेक्ष विश्व दृष्टिकोण को लागू करने की कोशिश कर रहा है. जिसके बाद ब्रांड को अपना शीर्षक रद्द करना पड़ा.
करवा चौथ हिंदूओं का एक त्योहार है जिसमें महिलाएं अपने पतियों के लंबे उम्र के लिए व्रत रखती है. इसी पर्व के दौरान डाबर कंपनी का एक विज्ञापन चर्चा में आ गया. जिसमे दो महिलाए एक दूसरे के लिए करवाचौथ करते नजर आ रही थी. मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा इस मामले को कोर्ट तक ले गए और जल्द से जल्द इस विज्ञापन को रद्द करने कि मांग की. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का यह बयान आया कि इस विज्ञापन में समलैंगिकता और सार्वजनिक असहिष्णुता को दर्शाया गया है जिसके बाद डाबर को अपना विज्ञापन वापस लेना पड़ा.
31अक्टूबर को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा कानूनी जागरूकत्ता के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण पर चंद्रचूड़ ने कहा कि “पिछले कुछ समय से कुछ विज्ञापन अलग-अलग कारणों से रद्द कराए जा रहे हैं हमारा संविधान एक परिवर्तनकारी दस्तावेज है जिसने पितृसत्ता में निहित संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने की मांग की है. यह भौतिक अधिकारों को सुरक्षित करने और महिलाओं की गरिमा और समानता की सार्वजनिक पुष्टि प्रदान करने का एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है.”
एक ओर न्यायधीश चंद्रचूड़ का कहना है कि राज्य अकेले लोकतंत्र मे सत्य का निर्धारक नहीं हो सकता हैं वहीं दूसरी ओर उनका ये बयान भी सामने आता है कि “अदालतें ऐसे समय में सत्य आयोगों की भूमिका निभा सकती है. जब सोशल मीडिया के प्रसार के साथ झूठ और फर्जी समाचारों का प्रचलन कई गुना बढ़ गया है और नागरिक लोकतंत्र में भी सच्चाई के लिए पूरी तरह से सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते हैं.”
दूसरी ओर जहाँ शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान को ड्रग्स क्रूज शिप मामले में हिरासत में लिया गया और लगभग तीन हफ्तों बाद उन्हें जमानत मिलने के बाद भी एक दिन और जेल में बितानी पड़ी क्योंकि रिहाई का आदेश समय पर आर्थर रोड जेल के बाहर जमानत बॉक्स तक नहीं पहुंचा था.
इसी संदर्भ में न्यायाधीश का कहना है कि “जमानत के संचार मे देरी हर विचाराधीन, दोषी की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है.”
बुधवार को कानूनी प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण पर जोर देते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि जेल अधिकारियों को जमानत के आदेशों के संचार में देरी एक बहुत गंभीर कमी है क्योंकि यह प्रत्येक विचाराधीन व्यक्ति की मानव स्वतंत्रता को छूती है. न्यायाधीश ने मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर द्वारा उड़ीसा उच्च न्यायालय में ई-हिरासत प्रमाणपत्र शुरू की जा रही एक पहल का उल्लेख करते हुए कहा कि “प्रारंभिक रिमांड से लेकर प्रत्येक मामले के बाद की प्रगति तक से हमें यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी कि जमानत के आदेश जैसे ही दिए जाते हैं, जहां से उन्हें सूचित किया जाता है, तत्काल कार्यान्वयन के लिए जेलों को सूचित किया जाए.”