लंबे अरसे के बाद पटना लौट आए हैं लालू, चपरासी बनने से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर

एक लंबे अंतराल के बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव बिहार लौट आए है. उनकी देख-रेख के लिए पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती भी साथ रहेंगी. लालू यादव का संघर्ष उतार-चढ़ाव से भरा हुआ रहा है.

पटना यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन के इलेक्शन से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक और फिर कई घोटालों में फंसने तक का सफर काफी दिलचस्प रहा है. उनके विरोधी भी उनके मजाकिया ठेठ अंदाज के दीवाने रहे है. उनके जानने वाले उनकी लोकप्रियता के पीछे उनके इस अंदाज को एक महत्वपूर्ण कारक मानते है.

गोपालगंज के फुलवरिया में जन्में लालू यादव के पिता कुंदन राय दूध बेचते थे. बचपन में लालू भी अपनी मां के साथ गांव में दूध बेचने जाया करते थे. 1966 में पढ़ाई के लिए लालू अपने बड़े भाई के साथ पटना पहुंचे. पटना यूनिवर्सिटी के बिहार नेशनल कॉलेज से उनके राजनीतिक कैरियर की शुरुआत हुई.

1970 के पटना विश्वविद्यालय के छात्र संगठन के चुनाव में लालू यादव की हार हो गई. इसके बाद लालू यादव ने बिहार वेटेनरी कॉलेज में चपरासी की नौकरी कर ली. लेकिन लालू हार नहीं माने.

1973 के छात्र संगठन के चुनाव में लालू यादव आखिरकार पटना विश्वविद्यालय छात्र संगठन के अध्यक्ष बन ही गए. ये दौर उनके लिए बहुत ही भाग्यशाली रहा. अगले ही साल 1974 में जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति की घोषणा की. जिसमें लालू जयप्रकाश के चहेते हो गए और उन्हें खूब प्रसिद्धि भी मिली.

आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा में जनता पार्टी की टिकट पर छपरा से 29 साल के लालू देश में सबसे कम उम्र के युवा सांसद बने. हालांकि जनता पार्टी की सरकार गिर गई और अगले चुनाव में लालू यादव ने अपना पद गंवा दिया.

1985 में लालू ने बिहार विधानसभा का चुनाव जीता. और 4 महीने चले अंदरूनी संघर्ष के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली.

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