प्रसिद्ध साहित्यकार मन्नू भंडारी का 90 वर्षों की उम्र में निधन

हिन्दी साहित्य के आसमान का एक तारा आज टूटा तो सबकी आंखे नम हो गई. सुप्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का आज 15 नवंबर को 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. मन्नू भंडारी के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है. मन्नू भंडारी बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न थी. अपने लेखनकाल में मन्नू भंडारी ने बहुत सारी बेहतरीन कहानियां और उपन्यास हिंदी साहित्य को दिये. मन्नू भंडारी को श्रेष्ठ लेखिका होने का गौरव हासिल है.

हिन्दी की सुप्रसिद्ध कहानीकार मन्नू भंडारी का जन्म 03 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा नामक गाँव मे हुआ था. इनके बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था. लेखन के लिए उन्होंने “मन्नू” नाम को अपनाया. मन्नू के पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे. इस तरह मन्नू को लेखन की कला विरासत के तौर पर मिली.

अजमेर के सावित्री गर्ल्स हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अजमेर कॉलेज से इन्होंने इंटर किया तत्पश्चात कोलकाता से बीए की डिग्री भी प्राप्त की और आगे उन्होंने एमए तक शिक्षा पाई और वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापिका भी रहीं. वैवाहिक जीवन में उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह कर समाज को संदेश दिया. उन्होंने चर्चित साहित्यकार राजेंद्र यादव से शादी की. मगर कुछ समय के बाद वे उनसे अलग भी हो गयी थीं.

अपनी लेखनी से मन्नू भंडारी ने हिन्दी साहित्य को एक अलग ऊंचाई तक पहुंचाया है. कहानी और उपन्यास दोनों ही क्षेत्रों में मन्नू भंडारी का नाम अपना एक अलग स्थान रखता है. रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य के क्षेत्र मे दिया गया उनका योगदान स्वर्ण अक्षरों मे याद किया जाएगा. उनकी रचनाओं मे

रचनाएं

एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ, आँखों देखा झूठ और नायक खलनायक विदूषक मुख्य कहानी-संग्रह हैं. प्रसिद्ध उपन्यासों में आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा मुख्य है.

बिना दीवारों का घर (1966), महाभोज का नाट्यरूपान्तरण (1983), आत्मकथा- एक कहानी यह भी (2007), सवा सेर गेहूं (1993) उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें हैं. मन्नू जी ने रजनीगंधा, निर्मला, स्वामी और दर्पण जैसे फ़िल्म पटकथाएं भी लिखीं.

वैसे तो मन्नू भंडारी की सारी ही लेखनी प्रसिद्ध रही है, मगर आपका बंटी नामक उपन्यास सबसे महत्वपूर्ण रहा है. यह मन्नू भंडारी का प्रथम स्वतंत्र उपन्यास है. उन्होंने विवाह टूटने की त्रासदी पर घुट-घुट कर जी रहे एक बच्चे को केंद्रीय विषय बनाकर उपन्यास आपका बंटी लिखा था. जिसने इन्हे हिन्दी साहित्य के शिखर पर पहुंचाया. इस पर ‘समय की धारा’ नाम की फिल्म भी बनी थी.

आगे चलकर इस किताब का अनुवाद बांग्ला, अंग्रेजी और फ्रांसीसी में भी हुआ. हिन्दी साहित्य मे अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए वे हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान आदि द्वारा सम्मानित रह चूकी हैं.

एक कहानी यह भी

इनकी एक अन्य प्रसिद्ध रचना रही है, एक कहानी यह भी. एक कहानी यह भी नामक पुस्तक में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपने लेखकीय जीवन की कहानी उतार दी है. एक प्रसिद्ध लेखक की जीवन-संगिनी होने का रोमांच और एक जिद्दी पति की पत्नी होने की समस्याएं. एक तरफ अपनी लेखकीय जरूरतें और दूसरी तरफ एक घर को सँभालने का दायित्व, जैसे विषयों का उन्होंने बखूबी वर्णन किया है.

मन्नू भंडारी की यह कहानी, उनकी लेखकीय यात्रा के कोई छोटे-मोटे उतार चढ़ावों की ही कहानी नहीं है, बल्कि जीवन के उन परिस्थितियों कि कहानी है, जो एक इंसान के जीवन को तंग करने के लिए काफ़ी होता है.

मन्नू भंडारी की बेटी रचना यादव ने बताया कि मन्नू भंडारी करीब 10 दिन से बीमार थीं. उनका हरियाणा के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था, जहां आज दोपहर को उन्होंने अंतिम श्वांस ली. रचना ने बताया कि मन्नू भंडारी का अंतिम संस्कार मंगलवार को दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में किया जाएगा. निश्चित ही मन्नू भंडारी जी के निधन से हिन्दी साहित्य में बड़ा शून्य पैदा हुआ है, परंतु देश और हिन्दी साहित्य के प्रति उनका योगदान सदैव अमर रहेगा.

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