राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ( एन एम सी) ने हाल ही में एक एडवाइजरी जारी कर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थानों को ऐसी पुस्तकों का इस्तेमाल करने से मना किया है जिसमें LGBTQIA+ समुदाय के बारे में गलत, असम्मानजनक और भ्रमित करने वाली जानकारी दी गई है. एडवाइजरी में पुस्तक के लेखकों को अपनी पुस्तक में LGBTQIA समुदाय, वर्जिनिटी और सेक्सुअलिटी से संबंधित विषयों पर जरूरी बदलाव करने को कहा गया है और साथ साथ विश्वविद्यालयों को ऐसे विषयों को पढ़ाते वक्त सावधानी बरतने को कहा गया है.
एन.एम.सी ने यह एडवाइजरी मद्रास हाई कोर्ट के उस बात को मद्देनजर रखते हुए जारी किया है जिसमें मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस आनंद वेंकटेश ने एक सुनवाई के दौरान कहा था कि चिकित्सा संबंधी विषयों में LGBTQIA समुदाय के बारे में गलत, भ्रामक और अवैज्ञानिक जानकारियां दी गई है. एन.एम.सी ने एडवाइजरी में कहा कि मेडिकल की किताबों, खासकर फोरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी और साइकियाट्री विषयों में वर्जिनिटी, सेक्सुअलिटी और LGBTQIA समुदाय के बारे में असम्मानजनक जानकारी दी गई है.
सवाल यह उठता है कि जब पुस्तकों में ही गलत जानकारी दी जाएगी तो समाज में LGBTQIA समुदाय के प्रति जो अवधारणा है, वो बदलेगी कैसे? समलैंगिक समुदाय के समाज में समावेश के तरफ यह एडवाइजरी एक जरूरी कदम है. लेकिन क्या यह काफी है?
इस एडवाइजरी में पुस्तकों में जरूरी बदलाव करने की आवश्यकता की बात तो कही गई है लेकिन बदलाव के स्वरूप के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. खुद एन.एम.सी द्वारा बनाए गए सीबीएमई पाठ्यक्रम में कई आपत्तिजनक बातें और जानकारियां शामिल हैं. जैसे कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में आईपीसी की धारा 377 हटाकर समलैंगिकता को वैध करार देने के बावजूद ट्रांसजेंडर होना, जो की एक सामान्य सी बात है, उसे एक बीमारी और समलैंगिकता को यौन अपराध बताया गया है.
विश्वविद्यालयों को ऐसी भ्रामक किताबों के इस्तेमाल से बचने की हिदायत तो दी गई है लेकिन पाठ्यक्रम को क्वीर – सकारात्मक बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.
चिकित्सा पाठ्यक्रम को क्वीर् – सकारात्मक बनाने के लिए एन.एम.सी को ठोस कदम उठाने की जरूरत है. खुद एन.एम.सी के संगठन में LGBTQIA समुदाय का कोई प्रतिनिधि नहीं है. ऐसे में सबसे पहले एन.एम.सी को इस समुदाय की भागीदारी बढ़ाने पर काम करना चाहिए साथ है साथ मेडिकल किताबों में जरूरी बदलावों की स्पष्ट रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए. इसके साथ ही इस बात की स्पष्टता भी होनी चाहिए कि हमारी चिकित्सा प्रणाली को LGBTQIA समुदाय के अनुकूल बनाने लिए कौन से कदम उठाए जा रहे हैं. इन बदलावों के बगैर, LGBTQIA समुदाय के व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुंच एक दूर का सपना बनकर रह जाएगा.