मेटा: व्यावहारिक या तर्कयुक्त ?

फेसबुक और मार्क जकरबर्ग को आज के ज़माने में कौन नहीं जानता. दुनिया के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध व प्रचलित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के को-फाउंडर मार्क जकरबर्ग ने दुनिया का साबका एक चीज़ से करवाया है. फेसबुक को री-ब्रांड करते हुए जकरबर्ग ने इसकी पैरेंट कंपनी का नया नाम ‘मेटा’ रख दिया है. मेटा नाम प्रौद्योगिकी के दुनिया में उभरते हुए एक अनोखे अध्याय “मेटावर्स” से लिया गया है.

मेटावर्स क्या है?

मेटावर्स को हम आभासी वास्तविकता यानि ‘वर्चुअल रियलिटी’ के सिद्धांत से समझ सकते हैं. हम घर बैठे-बैठे ही आभासी दुनिया का लुत्फ उठा सकते हैं. इसका मतलब कि हम कहीं से भी कहीं तक का सफर तय कर सकते हैं लेकिन हमें मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है बल्कि हम घर से घूम सकते हैं और काम कर सकते हैं. यही नहीं, हम अपने स्थान पर होते हुए भी दूसरे लोग, जो कि मेटावर्स का इस्तेमाल करेंगे, उनकी  उपस्थिति महसूस कर सकते हैं.

दूसरे शब्दों में लोग कहीं भी अपने आप को आभासी तौर पर ‘टेलीपोर्ट’ कर सकते हैं. लोग डिजिटल स्पेस में रहने का अनुभव ऐसे कर सकते हैं, मानो वह असली हो.

मेटावर्स की संकल्पना फेसबुक से बहुत पहले की है. यह अवधारणा नील स्टीफेंसन द्वारा लिखी गई एक उपन्यास ‘स्नो कैश’ से उत्पन्न हुई है. इस पर फेसबुक से पहले भी कई तकनीकी व गेमिंग कंपनियों ने काम करना शुरू कर दिया था. माइक्रोसॉफ्ट, एपिक गेम्स, रोब्लोक्स इत्यादि कंपनियां मेटावर्स विकसित करने की कोशिश में हैं.

मेटावर्स केवल डिजिटल दुनिया में ही नहीं, असली दुनिया में भी कायापलट करने के योग्य है. मतलब की अगले एक दशक में हम मेटावर्स के जरिए किसी और ही ज़माने में जी रहे होंगे.

मेटा कैसे इस्तेमाल होगी?

यह बता दें कि मेटा सिर्फ एक कंपनी है, जिसके अंतर्गत फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और मेसेंजर एप्स रहेंगे. मगर मेटा के द्वारा पैदा की जाने वाली मेटावर्स इंटरनेट तक ही सीमित नहीं रहेगी. इसका मतलब है कि जिस तरह आप अभी सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं उस तरह मेटा में नहीं कर पाएँगे. मेटा का मुख्य उद्देश्य लोगों को स्क्रीन की दुनिया से निकाल कर उन्हें एक जीवंत डिजिटल दुनिया में ढालने का है. इस उद्देश्य के लिए मेटा द्वारा कुछ उपकरण भी प्रदान किए जायेंगे. इन उपकरणों के जरिए वर्चुअल रियलिटी का अनुभव करना संभव हो सकता है.

जुकरबर्ग क्यों जा रहे हैं मेटा की ओर?

विज्ञान कभी भी बढ़ोत्तरी से नहीं रुकता. हम जिस चीज़ की परिकल्पना भी नहीं कर सकते उस चीज़ को विज्ञान पहले ही विकसित कर देता है. बड़े-बड़े कॉरपोरेशन जो कि विज्ञान पर अनुसंधान करते हैं उनको नए वैज्ञानिक और तकनीकी तथ्य बहुत आकर्षित करते हैं. मार्क को भी इस चीज़ ने आकर्षित किया है. मगर एक और कारण है कि वे फेसबुक से, जो कि महज एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, उससे इतनी नई टेक्नोलोजी में स्विच कर रहे हैं.

उपभोक्ताओं और फेसबुक कर्मचारियों के अनुसार फेसबुक पर बहुत घृणा, फ़र्जी खबरें और देशद्रोह फैलाया जा रहा था. कोई भी नया यूज़र जब फेसबुक का प्रयोग करता था तो अनुप्युक्त खबरें व वीडियो उसे दिखाए जाते थे.

फेसबुक के लिए पहले काम करने वाली डेटा वैज्ञानिक फ्रांसेस होगेन को यह व्यवहार नहीं भाया और उन्होंने व्हिसल ब्लोअर बन कर फेसबुक के अंदरुनी कागजात को सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन और दुनिया के सामने लाया, जो कि यह सिद्ध करते हैं कि फेसबुक का नए उपभोक्ताओं और युवाओं पर बुरा असर हो सकता है. यह एक बहुत ही हिम्मती कदम था, जिसने मार्क जुकरबर्ग को फेसबुक की री-ब्रांडींग करने पर मजबूर कर दिया और ऐसे कॉंटेंट को हटाने पर भी.

इसी दौरान जकरबर्ग ने सोचा कि क्यों न फेसबुक की कायापलट कर दी जाए. तब उन्हें मेटावर्स की धारणा दिमाग में आई और उन्होंने दुनिया को इससे अवगत कराने के बारे में सोचा.

क्या मेटावर्स का उदाहरण कहीं देखने को मिल सकता है?

जैसा की हमने पहले भी बताया कि मेटावर्स एकदम नई टेक्नोलोजी भी नहीं है. बस अभी प्रभावी नहीं हुई है. मेटावर्स हमें कई फिल्मों, किताबों और यहाँ तक कि कार्टूनों में भी देखने को मिल सकती है. मगर यह अभी तक सिर्फ काल्पनिक तौर पर दिखाई गई है.

हॉलीवुड फिल्में जैसे की ‘आयरन मैन’, ‘माइनॉरिटी रिपोर्ट’, ‘द मैट्रिक्स’ जैसी फिल्मों में यह चीज़ दिखाई जा चुकी है. बॉलीवुड की फिल्म ‘रा. वन’ में भी यह चीज दिखाई गई है और बच्चों के पसंदीदा कार्टून ‘डोरेमॉन’ में भी यह चीज एनिमेशन के जरिए दिखाई गई है.

इन काल्पनिक फिल्मों व कार्टूनों में वर्चुअल रियलिटी के भरपूर दृश्य  हैं. डोरेमॉन में तो यह दिखाया  गया है कि एक रोबोट भविष्य से आकर  एक बच्चे की मदद अपने अतरंगी उपकरण व “गैजेट्स” से करता है. उसमें कई ऐसे गैजेट्स दिखाए गए हैं जिससे की टेलीपोर्टेशन और वर्चुअल रियलिटी की ओर जाना संभव है. तो अगर आपको मेटावर्स के बारे में और जानना है तो आप ये फ़िल्में व कार्टून देख सकते हैं. अब हम यह कह सकते हैं कि यह काल्पनिक कार्यक्रम भी भविष्य को नज़र में रखते हुए ही बनाये जाते हैं.

मेटा के साथ डेटा सुरक्षित है या नहीं?

फेसबुक अपने उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का ध्यान रखने के लिए आए दिन नए अपडेट्स लाते रहता है. पर सवाल यह है कि क्या मेटा जैसी “जीवंत ” दुनिया में भी यूजर्स को वैसी ही गोपनीयता मिलेगी. जुकरबर्ग ने सबको यह विश्वास दिलाया है. की मेटावर्स पूरे तरीके से ‘यूजर प्राइवेसी’ को दिमाग में रखते हुए बनाया जाएगा.

उन्होंने दुनियाभर के सरकार से और नीति निर्माताओं से चर्चा करने की योजना बनाई है. उनके साथ सारी गोपनीयता पॉलिसी और उपयोग की शर्तों की चर्चा करेंगे और उपभोक्ताओं की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखेंगे. यह अभी साफ नहीं है कि ये सब कैसे होगा मगर होगा जरूर.

नई दुनिया को देखते हुए ‘मेटा’ अपनी पूरी कोशिश करेगा की लोग इसपर सुरक्षित और सुखद महसूस करें. मेटा नए जमाने की एक नई तस्वीर के रूप में अपनी पहचान बनाने जा रहा है और हम उम्मीद करते हैं कि डिजिटल दुनिया में यह एक नई क्रांति होगी.

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