मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की धीमी स्पीड ने उपभोक्ताओं और छात्रों को रुलाया

विभिन्न कंपनियों  द्वारा शहरों से लेकर गाँव तक अपने अपने मोबाइल टावर लगाए जा चुके हैं परन्तु उचित रखरखाव या इन्फ्रास्ट्रक्चर न होने के कारण जिला मुख्यालय से दूर के  ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ताओं को नेटवर्क कनेक्टिविटी और इंटरनेट की धीमी स्पीड का सामना करना एक गंभीर समस्या बनी हुई है.

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण पठन पाठन का कार्य ऑनलाइन ही हो रहा है तथा लगभग सारे कार्य इंटरनेट के द्वारा ही घर बैठे निपटाए जा रहे हैं. ऐसे में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की धीमी स्पीड परेशानी का सबब बना हुआ है.

वेबसाईट भी नही खुल पाता

ज्यादातर उपभोक्ताओं एवम छात्रों का कहना है कि ऑनलाइन कार्य करने के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उपभोक्ताओं का कहना है कि सर्विस इतनी खराब रहती है कि वे कही भी कॉल नही कर पाते हैं तथा सोशल मीडिया पर फ़ोटो भी अपलोड नही कर पा रहे हैं. यहाँ तक कि कोई वेबसाईट भी नही खुल पाता है. लोग अपना फोन लेकर सड़क तथा मोबाइल टॉवर के आसपास टहलते  रहते हैं. इसके बावजूद भी मोबाइल स्क्रीन पर इमरजेंसी कॉल दिखता है.

जब इस समस्या को लेकर कस्टमर केयर में शिकायत दर्ज कराई जाती है तो अगले 24 घंटे में समाधान किए जाने का भरोसा दिलाया जाता है परंतु कुछ होता नही है.

एक निजी टेलीकॉम कंपनी के इंजीनियर ने बताया कि उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने की वजह से इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उसने यह भी बताया कि वायरलेस नेटवर्क के साथ इस तरह की समस्या का होना आम बात है.

2G से भी खराब

अधिसंख्य इंटरनेट यूजर ने अपने अनुभव से बताया कि सारे नेटवर्क प्रोवाइडर ये दावा करते हैं कि 4G स्पीड दे रहे हैं पर स्पीड 2G से भी खराब रहती है. एक फोटो तक अपलोड नही हो पाता है वीडियो तो दूर की बात है. मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की स्पीड बहुत खराब रहने के कारण किसी डॉक्यूमेंट्स को अपलोड कर पाना भी संभव नहीं होता.


इस बीच ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर दिया जा रहा है. जब इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनियों का इंफ्रास्ट्रक्चर ही ठीक नहीं होगा तो छात्र कैसे पढ़ाई करेंगे!


जनता से पैसा ऐंठने के लिए पहले सब कुछ फ्री में दिया गया और बाद में डेटा पैक को महँगा कर दिया गया. महंगा करने के बावजूद ढंग से नेटवर्क नहीं मिलता, इंटरनेट का स्पीड नहीं बढ़ता.

इस सेक्टर में तो खुलेआम भ्रष्टाचार की बोलबाला है. कही भी कंप्लेन दर्ज कराएँ कोई सुनने वाला नही है. अब तो उपभोक्ताओं की मैनुअल शिकायत सुनने के बजाय कम्प्यूटराइज्ड संदेश सुनाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. तुर्रा यह कि इसी के बल पर डिजिटल इंडिया का ढोल बजाया जा रहा है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *