शत्रुघ्न महतो खेती-किसानी करते थे और ट्रैक्टर चलाते थे. बड़ा बेटा मानसिक रोगी है जिसका इलाज चल रहा है. छोटा बेटा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. अब इस परिवार पर आफत आ गई है. ऐसे कई परिवार हैं जो मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल की घटना के बाद जीवन निर्वाह के लिए संघर्ष कर रहे है.
मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल कांड के एक महीना बीत जाने के बाद भी आँख गंवाने वालों को ना तो कोई मुआवजा मिला है और ना ही कोई उनकी सुधि ले रहा है. अधिकांश परिवार ऐसे हैं जिनमें कमाने वाले व्यक्ति की ही आँख जा चुकी है. ऐसे परिवार अब तबाह हो गए हैं.
सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आर्थिक सहयोग की घोषणा तो कर दी लेकिन अभी तक जमीन पर उसकी कोई प्रक्रिया नजर नहीं आ रही है. इन परिवारों का आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण भी कराया जा चुका है. इसके बाद भी मुआवजे को लेकर चुप्पी से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
“परिवार के सारा खर्चा तS हम ही चलSवई रलिअई ह, अब तS हमरा से कुछो होए वाला त नS हई”
– शत्रुघ्न महतो

शत्रुघ्न महतो
बेटे की छूट गई पढ़ाई, अब जीवन निर्वाह भी मुश्किल
मुजफ्फरपुर के झपहाँ के शत्रुघ्न महतो के आँख गंवाने के बाद परिवार की पूरी जिम्मेवारी अब छोटे बेटे नीरज के कंधों पर आ गई है. पूरे परिवार के साथ फूस के कमरे में जीवन बिताने को मजबूर नीरज की पढ़ाई छूट गई है. अब परिवार की बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है.

दैनिक क्रियाओं के लिए भी शत्रुघ्न महतो को अब अपने बेटे और बहु पर आश्रित रहना पड़ता है. बेटा जब बाहर होता है तब ये काम उनकी बहु गुंजा कुमारी को करना पड़ता है. उनकी बहु ने बताया कि अब घर में खाने के लिए अनाज की भी कमी होने लगी है.
प्रेमा देवी को अपने भविष्य को लेकर है चिंता
“हम सS तS अब कवनो काम के नS रह गेली, जीवन तS हमर सब के खराब हो गेल.”
– प्रेमा देवी

प्रेमा देवी का कहना है कि अब वो अपने परिवार पर आश्रित हो गईं हैं. उनकी देख-भाल के लिए परिवार के सदस्य लगे रहते है. इस से उनका जीवन प्रभावित हुआ है. उन्होंने बताया कि मुआवजा मिलने से उनके परिवार को आर्थिक मदद होगी.
असली आँख के बदले पत्थर की आँख का आश्वासन
मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में ऑपरेशन से इन्फेक्टेड आँख को एसकेएमसीएच मुजफ्फरपुर में निकाला गया था. प्रेमा देवी के बेटे राजेश रंजन ने बताया कि उन्हें एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ. बी. एस. झा से पत्थर की आँख का आश्वासन मिला है जो 3 महीने बाद लगाया जायेगा.
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें कांड की जाँच के लिए बनी कमिटी पर भी भरोसा नहीं है. उनके अनुसार कमिटी ऑपरेशन करने वाले डॉ. को बचाने का प्रयास कर रही है.
जाँच कमिटी ने ओटी को संक्रमित पाया था
गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग की चार सदस्यों की टीम ने जाँच रिपोर्ट में अस्पताल के ओटी एक में बैक्टीरिया संक्रमण ओटी टेबल और ओटी ट्रॉली पर और ओटी दो में बैक्टीरिया का संक्रमण माइक्रोस्कोप और ओटी टेबल पर बताया है.
पीड़ितों के मुताबिक इस जाँच रिपोर्ट से ऑपरेशन करने वाले डॉ. को क्लीन चीट दे गई है.
घटना की बात सुनकर मां की तबीयत बिगड़ी- राममूर्ति सिंह
शिवहर के राममूर्ति सिंह के दोनों आँखों में मोतियाबिंद था. उन्होंने बताया कि पहले वो दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते थे. एक आँख खोने के बाद अब उनका जीवन पहले जैसा नहीं रहा. आँख खोने की खबर सुनकर उनकी मां की तबीयत बिगड़ गई. परिवार में कमाने वाले वे अकेले थे. उन पर दो बच्चों के साथ पत्नी और मां की जिम्मेवारी है.

मीडिया के नाम पर जगती है उम्मीद
इन पीड़ित परिवारों में गम का माहौल है. आस-पास के क्षेत्र में हर जगह इस बात की चर्चा है. पीड़ितों ने बताया कि कोई भी जन-प्रतिनिधि इनके घर पर इनकी सुधि लेने नहीं आया और अब एक माह बीत जाने के बाद मीडिया में भी इनकी चर्चा कम हो गई है.
ऐसे में जब इनको पता चलता है कि कोई मीडिया से आया है तो इन परिवारों के साथ आस-पास के लोग भी उम्मीद से भर जाते हैं.
मोतीपुर प्रखण्ड के सुखदेव सिंह के पड़ोसी ने बताया कि सुखदेव सिंह का परिवार अब बर्बाद हो गया. उनका बेटा बाहर रह कर कमाता है और आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा मदद नहीं कर पाता. सुखदेव ही किसी तरह परिवार का खर्च निकाल रहे थे.

“अब बेसी करमS तS हम दुरा पर बइठल रहम, ये से बेसी का कर सकीले”
– सुखदेव सिंह
सूबे के मुख्यमंत्री ने बीते 14 दिसंबर को पीड़ित परिवारों के लिए सहायता राशि देने की बात कहते हुए सवाल किया था कि आखिर लोग प्राइवेट अस्पताल में जाते क्यों है? जिस पर राजद से मीनापुर के विधायक मुन्ना यादव ने सवाल किया कि “अगर नीतीश कुमार को बिहार के सरकारी अस्पतालों पर इतना ही भरोसा है तो अपने मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए दिल्ली क्यों गए थे.”
संसद में उठी थी आवाज
बीजेपी से मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद ने संसद में इस मामले को उठाते हुए बिहार सरकार से आग्रह किया था कि पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता दी जाए. साथ ही उन्होंने सील अस्पताल को चालू करवाने की भी मांग रखी थी.
अभी भी है परेशानी
पीड़ितों ने ट्रस्ट न्यूज से बातचीत में बताया कि उन्हें अभी भी आँख वाले स्थान पर दर्द होता है, पानी आता है. कुछ मरीजों ने दूसरी आँख में भी तकलीफ की बात कही.
हालांकि एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ. बी. एस. झा ने बताया कि ज्यादा तकलीफ होने पर मरीज अस्पताल आ कर अपनी जाँच करवा सकते हैं.
क्या है पूरा मामला
ज्ञात रहे कि बीते 22 नवंबर को मुजफ्फरपुर के जूरन छपरा स्थित आई हॉस्पिटल में 65 लोगों की मोतियाबिंद की सर्जरी हुई थी. उन 65 लोगों में से अधिकतर की आँखें निकाली जा चुकी है.
मानकों का उल्लंघन करते हुए किया जाता रहा है ऑपरेशन
ऑपरेशन के लिए कान्ट्रैक्ट पर डॉ एनडी तिवारी को बुलाया गया था. घटना के दिन एनडी तिवारी ने 65 मरीजों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया था जबकि तय मानकों के अनुसार एक दिन में एक डॉ. को 30 से ज्यादा ऑपरेशन नहीं करना होता.
पीड़ितों को मुआवजे का है इंतजार
किसी भी पीड़ित परिवार को अभी तक कोई भी आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई है. सामान्यतः इस हॉस्पिटल में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग ही आँखों का ऑपरेशन करवाने आते थे. ऐसे में उन परिवारों को अभी भी सरकार की ओर से मुआवजे या आर्थिक सहयोग की उम्मीद है.
सरकार ने सहयोग की घोषणा करने के बाद चुप्पी साध ली है ऐसे में उन परिवारों का क्या होगा जिनमें अब कमाने के लिए समर्थ सदस्य ही अपनी आँख खो चुके है?