मुजफ्फरपुर नूडल्स फैक्ट्री: सरकार देगी मुआवजा लेकिन हर बार फैक्ट्री मालिकों को क्यों बचाती है सरकार?

रविवार की सुबह मुजफ्फरपुर के बेला औद्योगिक क्षेत्र फेज 2 स्थित एक नूडल्स फैक्ट्री में बॉयलर के फटने से ब्लास्ट हुआ जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गई और 10 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी मृतकों के परिवारों के लिए चार-चार लाख रुपए मुआवजे की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी घटना पर शोक व्यक्त करते हुए मृतकों के परिवार को दो-दो लाख रुपए मुआवजा और घायलों को पचास-पचास हजार रुपए के आर्थिक सहयोग की घोषणा की है.

मृतकों में अधिकतर परिवार में अकेले कमाने वाले लोग थे जो गरीब-मजदूर वर्ग से आते थे. ऐसे में उन्हें अविलंब मुआवजा मिलने की खबर राहत देती है.

हादसे के लिए जिम्मेवार कौन?

हादसे में मृतक लालन यादव के बेटे विकास यादव के हवाले से दैनिक भास्कर ने लिखा है कि उनके पिता बॉयलार ऑपरेटर थे जो लगातार फैक्ट्री के आला-अधिकारियों को बॉयलर का मेंटेनेंस कराने को कह रहे थे लेकिन फैक्ट्री के मैनेजर और जीएम उनकी बातों को नजरंदाज कर देते थे.

जैसा कि नीतीश सरकार पर हमेशा से आरोप लगते रहे हैं कि नीतीश कभी भी बड़ी मछली को नहीं फाँसते, वो सवाल फिर से घूमने लगा है. हादसे के बाद सरकार ने मुआवजे की घोषणा तो कर दी लेकिन फैक्ट्री के मालिक की ना तो गिरफ्तारी हुई है और नाही फैक्ट्री मालिक की ओर से किसी मुआवजे की घोषणा हुई है. ऐसे में बिहार सरकार ने जाँच के लिए टीम तो बना दी है लेकिन फैक्ट्री मालिक और अधिकारियों के प्रति नीतीश सरकार का नरम रवैया कई सवाल खड़े कर रहा है.

मुख्यमंत्री कार्यालय

प्रधानमंत्री कार्यालय के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर के इस बात की जानकारी दी गई कि सभी मृतकों के परिवार को दो-दो लाख रुपए और घायलों को पचास-पचास हजार रुपए की मुआवजा राशि दी जाएगी.

फैक्ट्री मालिक की गलतियों को सरकार अपने माथे पर लेने की जल्दबाजी में?

समाज सुधार आंदोलन में व्यस्त नीतीश कुमार की सरकार फैक्ट्री मालिक की गलतियों को अपने सर पर लेने की जल्दबाजी में नजर आ रही है. सरकार ने फैक्ट्री मालिक और फैक्ट्री के अन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी को लेकर ना तो कोई बयान दिया है और नहीं कोई सख्त रुख अख्तियार किया है.

अहम सवाल ये है कि आखिर हर ऐसे मामलों में सरकार पहले दिन से ही फैक्ट्री मालिकों को बचाने में क्यों लग जाती है? कहीं नीतीश सरकार भी मामूली मुआवजे की घोषणा कर के मामले को रफा-दफा करने और फैक्ट्री मालिक को बचाने का प्रयास तो नहीं कर रही?

सदी की बड़ी त्रासदी माने जाने वाली 1984 में घटित भोपाल गैस त्रासदी के बारे में भी ऐसे सवाल उठते रहे हैं कि फैक्ट्री के मालिक वारेन एंडरसन को तत्कालीन सरकार का सहयोग प्राप्त हुआ था और वो देश छोड़ने में सफल हुए थे. कई रेपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और तत्कालीन केंद्र सरकार ने अपने संरक्षण में एंडरसन को देश के बाहर जाने दिया था.

सिर्फ कुछ हादसों पर ही सरकार की सक्रियता

बॉयलर हादसे में सरकार की ओर से मुआवजे की घोषणा थोड़ी राहत तो देती है लेकिन कई सवाल भी खड़े करती है. इसी मुजफ्फरपुर में एक महीने पहले 20 से 30 लोगों को अपनी आँखें गँवानी पड़ी थी लेकिन उस मामले में सरकार पूरी तरह से निष्क्रिय नजर आई. अभी तक उन परिवारों को कोई मुआवजा या राहत नहीं दी गई है.

जाहीर है आँख गंवाने वालों की खबर देश की संसद में भी उठी थी और संभव है कि इसकी जानकारी प्रधानमंत्री को भी हो लेकिन इस मामले से सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो सकते थे इसलिए राज्य और केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को ज्यादा तूल देना ठीक नहीं समझा. बिहार सरकार ने ना तो किसी मुआवजे की घोषणा की और नाही प्रधनमंत्री ने कोई ट्वीट किया.

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