गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर नशीले पदार्थ की एक बड़ी खेप उतरी और संयोग अथवा दुर्योग से पकड़ी गयी. सब की तरह मुझे भी यह ख़बर लगी.
आजकल खबरों के साथ अनेक वारदात घटित होते रहते हैं. कभी ख़बर प्रसारित होती है, कभी बस ख़बर हो जाती है, कभी ख़बर बन जाती, कभी बना ली जाती है; तो कभी-कभी ख़बर लग भी जाती है। तो मुझे वह ख़बर लगी. ख़बर लगी कि टेलकम पाउडर कहकर हेरोइन लाया जा रहा. नाम बदलने का जमाना है. नाम बदलने भर से हर तरह की समस्याओं का अंत हो जा रहा है. इसलिए हेरोइन को यदि टेलकम पाउडर कहकर आयात किया जाए, तो इसका स्वागत ही किया जाना चाहिए. तब यह सौंदर्य निखारने वाला तत्त्व बन जाता है.
भारतीय मीडिया ने भी इस ख़बर को ऐसे ही लिया, जैसे टेलकम पाउडर की ही ख़बर हो. भारतीय मीडिया पर नज़र रखनेवाले बताते हैं कि वह रचनात्मकता से ऊभ-चूभ हुआ पड़ा है. कल्पना, नाटकीयता, रोमांच सब वहाँ भरे पड़े हैं। जहाँ ये सब नहीं, वहाँ वह भी नहीं. अब आप ही सोचिए कि पोर्ट है, तो कुछ-न-कुछ आएगा ही; इसमें कौन-सी बड़ी बात है? कोई पुड़िया भर गाँजा तो था नहीं कि पत्रकारों को खोजी पत्रकारिता करने का सुख मिलता, इसलिए यदि वे इसे सामान्य समझकर अपने-अपने ज़रूरी कामों में लगे रहे, तो उन्हें दोष नहीं दिया का सकता, दोष नहीं दिया जाना चाहिए.
तो मैं भी दोष की बात नहीं करूँगा और आप भी यह बात मत पूछिए कि उनके ज़रूरी काम कौन-से हैं.
मैं तो बस उस नशीले पदार्थ के बारे में सोचने लगा. जब से भारत में व्यवसाय करना आसान हो गया है और ‘इज आॅफ डूइंग बिज़नेस’ में क्रांतिकारी बदलाव आये हैं, तब से हर कोई हमारे साथ बिज़नेस करने के लिए मुँह बाये खड़ा है. अब जैसे सब, वैसे अफ़गानिस्तान. लेकिन बेचारा व्यवसाय करे तो किस चीज़ का? उसके पास तो एक ही चीज़ प्रचुरता के साथ उपलब्ध है, वह है नशा. तो लग गया इसी के व्यवसाय में. मैं सोच रहा था कि हम किस बात में कम थे। अपने न्यू इंडिया में तो नशे का व्यवसाय पहले से फलता-फूलता रहा है, वह भी शुद्ध देसी नशा. फिर आयात करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? हद है यार! ये किसी बात में आगे नहीं आने देते.
चाहे जो कहो, नशा होता बहुत मज़ेदार है. घर में बीवी आटा-दाल की प्रतीक्षा कर रही है और खसम दारू पीकर नाले में सोया पड़ा है. उधर बेटे की फीस जमा नहीं हो पा रही है और बाप गाँजा फूँक कर जयकारा लगा रहा है. बाप बिना दवाई के मरा जा रहा है और बेटा ड्रग्स लेकर डोल रहा है. यही तो ब्रह्मानंद है. मायाजनित सारे दुखों से मुक्ति.
इसलिए ऐसे नेक कार्यों में जो लगे हैं, हमें उनका आभार मानना चाहिए. उस देश का आभार जहाँ से आया, उस पोर्ट का आभार जहाँ उतरा और उस रास्ते का आभार जहाँ से चलकर हम तक पहुँचता.
मैं नशे के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे राजकुमार जी याद आने लगते हैं. हमारे गाँव में रहे. वे दिनोरात नशे में ही डूबे रहते. खेत बिके, गम नहीं हुआ. घर की एक-एक ईंट बेचकर खा गये, लेकिन चेहरे पर शिकन तक नहीं आई. एक रात का वाकया है कि उन्हें पेशाब लगी. वे खटिया से एक तरफ़ उतरे और उसकी आधी परिक्रमा करते हुए दूसरी ओर पहुँचे, फिर अपनी ही बिस्तर का अभिषेक कर दिया.
यही तो खास है, शयन की जगह पर शौच और शौच की जगह पर शयन. नशे में सब चल जाता है. जरा एक बार आँखें खोलकर देखिए, तो सही पूरे देश में यही चल रहा है. शयन की जगह शौच और शौच की जगह पर शयन. पूरे राष्ट्र पर एक ऐसा नशा तारी है कि मरघटों पर नाच चल रहा और भंडारों पर फ़ाका. हम एक राष्ट्रीय नशे में झूम रहे हैं.
सोचिए कि नशा पर निबंध लिखा जाए, तो कैसे लिखा जाएगा:- “भारत एक नशा प्रधान देश है. यहाँ नशे को बहुत सम्मानजनक स्थान प्राप्त है. नशे के कई पैर, कई हाथ और कई सिर होते हैं. अपने अनगिनत पैरों से यह वहाँ भी चला जाता है, जहाँ बैन किया गया है. अपने हाथों से यह उसे भी पकड़े रहता है, जो नशा-उन्मूलन आंदोलन चलाते हैं. नशे के अनेक प्रकार होते हैं. यह इनके बल पर अलग-अलग ढंग से सब पर काबिज़ होता है. धन के नशे का तासिर अलग है, धर्म के नशे का अलग. ताकत का नशा अलग किस्म का है, मूर्खता का अलग…”
अंततः यह समझना है कि चाहे जैसे हो, नशा आखिर नशा है.
नशा एक व्यक्ति का हो, तो उसे नींबू पानी देकर दूर किया जा सकता है, लेकिन जब यह सामूहिक चेतना पर हावी हो जाए, तब तो ईश्वर ही भला करे. ऐसे में क्या कर सकते हैं, बस खबरदार करने के सिवा. खबरदारी का जिम्मे जिन्होंने लिया है, वे तो स्वयं ही धुत्त पड़े हैं. ऐसी अवस्था में चेतावनी ज़रूरी है, वैधानिक चेतावनी:- यह नशा राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए बहुत ख़तरनाक है.बचें इससे.
ये लेखक के अपने विचार हैं